आगरा । पूरे देश में जैन धार्मिक शिविरों के प्रचारक एवं प्रशिक्षक, पाठशाला वाले गुरु जी के नाम से विख्यात, जैनजगत् के मूर्धन्य विद्वान्, पं. श्री रतनलाल बैनाडा का 16 अगस्त को प्रातः 9.30 बजे णमोकार मंत्र का जप करते हुए आकस्मिक स्वर्गवास हो गया है ।
वे गत 15 दिवसों से अस्वस्थ चल रहे थे, आज प्रातः काल जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तो वे बार-बार पूज्य मुनि श्री के सान्निध्य में सल्लेखना धारण करने हेतु जोर दे रहे थे परंतु डॉक्टरों के द्वारा उन्हें यात्रा आदि के निषेध करने पर उन्होंने चतुर्विध आहार का त्याग कर दिया और णमोकार मंत्र के जप में लीन हो गए तथा पंच परमेष्ठी का ध्यान करते हुए देह का त्याग कर दिया ।
श्री दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान के शिरोमणि संरक्षक, जैन गौरव श्री अशोक जी पाटनी, भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रभात चंद्र जी जैन, भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के कार्याध्यक्ष व महामंत्री श्री राजेंद्र कुमार जी गोधा, साँगानेर संस्थान के अध्यक्ष श्री गणेश कुमार जी राणा, आदि उनकी चिकित्सा की पूरी निगरानी कर रहे थे। उनके स्वास्थ्य लाभ हेतु पूरे भारत का दिगंबर जैन समाज जूम एप पर भक्तामर जी का पाठ एवं णमोकार मंत्र की माला जपते हुए पंडित जी के दीर्घ आयुष्य की कामना कर रहा था,
परन्तु विधि की विचित्र विडंबना है कि आज उनका देह परिवर्तन हो गया।
उनके निधन का समाचार पाकर देशभर के जैन समाज में शोक की लहर फैल गयी है।
भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रभात चंद्र जी जैन ने अपने संदेश में पंडित जी को जिनवाणी के प्रचार प्रसार की नयी क्रांति का प्रवर्तक बताया है और उनके निधन को समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया है और अश्रुपूर्ण नेत्रों से श्रद्धांजलि अर्पित की है। अध्यक्ष महोदय का पूरा संदेश इस समाचार में संलग्न है।
भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के कार्याध्यक्ष व महामंत्री श्री राजेंद्र कुमार जी गोधा ने भी पंडित जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि पंडित जी जैसे विद्वान युगों में जन्म लेते हैं। उनका जाना जैन जगत् के लिए एक शून्य पैदा कर गया है।
संपूर्ण संस्थान परिवार, अखिल भारतवर्षीय दि.जैन विद्वत्परिषद् और पूरे भारतवर्ष की अनेकानेक सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा श्रद्धांजलि समाचार प्राप्त हो रहे हैं।
प्रा. अरुण कुमार जैन
प्राचार्य सांगानेर संस्थान जयपुर
चित्र सौजन्य- श्री सुबोध कमार जैन संघी, जबलपुर
अध्यक्ष महोदय का पूरा संदेश
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
जैन धर्म के मूर्धन्य विद्वान, जिनवाणी के वरद पुत्र, जन सामान्य में जिनवाणी की अलख जगाने में अभूतपूर्व योगदान देने वाले, हम सभी के प्रिय पं. श्री रतनलाल बैनाड़ाजी का आज प्रातः णमोकार मंत्र का जप करते हुए आकस्मिक स्वर्गवास हो गया है, यह समाचार पाकर मैं स्तब्ध हूँ। कल ही तो उनके बेटे से बात हुई थी कि वे स्वस्थ हो रहे हैं और चिकित्सक ने कहा है कि 2-3 दिनों में अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी पर आज सुबह ही यह शोक समाचार पाकर विश्वास सा नहीं हुआ। काश कि यह समाचार सच न होता।
पर नियति के आगे किसकी चली है। आज पंडितजी साहब हमारे बीच नहीं है, यह बात मन में कौंधती है तो मन व्यथित हो जाता है। इस संसार में जो आया है वह अपना आयुकर्म पूर्ण करके एक न एक दिन अवश्य ही जाता है, जानता हूँ। शोक मनाना भी तो कर्मबंध और संसार परिभ्रमण का कारण है।
*गुरुदेव आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज* व उनके सुयोग्य शिष्य मुनिपुंगव *निर्यापक श्रमण श्री 108 सुधासागर जी महाराज* के मार्गदर्शन में पंड़ित जी ने धार्मिक संस्कार शिविरों की परंपरा का प्रवर्तन किया, जिससे बच्चों और युवाओं में जैनधर्म की शिक्षा का जबर्दस्त प्रभाव हुआ। देशभर में उनके मार्गदर्शन में हजारों की संख्या में शिविर आयोजित होने लगे और जिनवाणी के प्रसार की एक नयी क्रांति का सूत्रपात हुआ। साँगानेर संस्थान उनके प्रयासों से ही पल्लवित और पुष्पित हुआ, जो आज सफलता के नये आयाम गढ़ रहा है।
वे अत्यंत सरल और सहज स्वभावी थे, हर किसी के प्रश्नों का वे अत्यंत सरल शब्दों में समाधान करते थे। पारस चैनल पर पाठशाला कार्यक्रम कितना लोकप्रिय है, इसका अनुमान हम इस बात से लगा सकते हैं कि देश-विदेश से श्रावक श्राविकाएँ अपनी जिनवाणी संबंधी शंकाओं के समाधान के लिए हजारों पत्र लिखते थे। वर्तमान समय में आबाल वृद्ध सभी में वे अत्यंत लोकप्रिय जैन विद्वान थे।
उनका निधन जैन जगत् के लिए अपूरणीय क्षति है। दिवंगत् आत्मा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
प्रभात चंद्र जैन
अध्यक्ष, भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी
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