विश्व इतिहास में आर्य समाज का विशेष स्थान है| जब हम विश्व के इतिहास पर दृष्टि डालते हैं तो यह बात भी स्पष्ट होती है कि विगतˎ लगभग सवा सौ वर्ष के अल्प काल में आर्य समाज ने जितने बलिदानी वीर देश, धर्म, जाति और समाज को दिए, इतने समय में विश्व की कोई अन्य संस्था नहीं दे पाई| इन की संख्या इतनी अधिक रही कि इसे अँगुलियों से गिन पाना संभव ही नहीं है| आर्य समाज के बलिदानियों की एक लम्बी और कभी न समाप्त होने वाली अबाध परम्परा रही है| इस परम्परा का आरम्भ स्वयं आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने अपना बलिदान देकर किया था| फिर उनके बलिदान के पश्चातˎ उनके शिष्यों तथा उन के अनुगामी लोगों ने बलिदान के इस मार्ग का निरंतर अवलंबन किया| इस बलिदानी परम्परा को देखते हुए कवि को बाध्य होकर यह पंक्तियाँ लिखनी पड़ीं:-
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा|
इन पंक्तियों पर जब विचार करते हैं तो इनका जो भाव हमारे सामने आता है, उस से स्पष्ट होता है कि बलिदानियों के समाधि स्थल पर केवल पुष्प मालाएं अर्पित करने से नहीं लिया गया अपितु प्रति वर्ष ही नहीं प्रतिक्षण इन बलिदानी वीरों के बलिदान को याद करते रहने तथा उनके बलिदानी जीवनों से प्रेरणा ले कर स्वयं भी तथा अपने परिवार तथा परिजनों को भी उसी बलिदानी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है| यह सत्य भी है कि विश्व की वही जातियां जीवित रहती हैं जो अपने पूर्ववर्ती बलिदानियों के जीवनों से प्रेरणा लेती रहती हैं| बालिदानियों को स्मरण रखने की परम्परा को अक्षुणˎण बनाए रखने के लिए हमने यह लेखमाला आरम्भ की है ताकि इन के अति संक्षिप्त जीवनों से प्रेरणा लेकर हम भी अपने जीवन में कुछ करने की लालसा के साथ आगे आवें तथा स्वामी दयानंद सरस्वती जी के स्वप्न को साकार करने के लिए स्वार्थ तथा पदलोलुपˎता से ऊपर उठकर जन कल्याण, देश सेवा, धर्म, जाति की रक्षा के कार्यों में जुट जावें| इस प्रकार जन जन में वेद का सन्देश और ऋषि का उपदेश पहुंचाने का कार्य करें|
स्वामी दयान्द सरस्वती जी का बलिदान
स्वामी दयानंद सरस्वती जी का नाम विश्व का कौन व्यक्ति नहीं जानता| गुजरात के टंकारा नामक स्थान पर जन्मे स्वामी जी अपने जीवन की चिंता किये बिना १८५७ के भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की योजना तैयार करने करने वाले नायक बने| अपनी शिक्षा पूर्ण कर गुरु विरजानंद जी के आदेश पर समाज से अज्ञान, अन्याय और अविद्या का नाश करते हुए, नारी कल्याण, अछूतोद्धार, गो रक्षा, शिक्षा के प्रसार, सच्चे शिव के की जानकारी, वेद प्रचार, आर्ष ग्रंथों का प्रचार आदि कार्य किये तथा अंधविश्वासों, रुढियों, कुरीतियों का खुल कर विरोध किया| इन सब कार्यों को तीव्र गति देने के लिए पहले आर्य समाज और फिर परोपकारिणी सभा की स्थापना की| इन सब कारणों से जीवन में अनेक संकटों का सामना करना पडा| अंग्रेज की कुटिलता ने उन्हें जोधपुर में तेज विष देकर गंभीर रूप से रुग्ण कर दिया गया| शरीर का रोम, रोम फूट गया, अविरल रक्त निकलने लगा| इस सबके परिणाम स्वरूप दीपावली के दिन सनˎ १८८३ ईस्वी को आपका बलिदान हो गया|
जन्म बलिदानी नंदलाल जी
लाहौर में माता भगवानˎ देवी ने ३ नवम्बर १९०६ ईस्वी को जिस बालक को जन्म दिया, यही बालक आगे चल कर बलिदानी नंद लाल के नाम से विख्यातˎ हुआ| नंदलाल जी कुछ बड़े हुए तो लाला गणेशी लाल जी के सहयोग से आर्य समाज बिछोवाली के सदस्य बने तथा नियमित रूप से आर्य समाज का कार्य करने लगे| जिन की प्रेरणा से आर्य समाज में आये, उनकी ही प्रेरणा से कुरआन भी मौखिक रूप से स्मरण कर लिया| अब आप कुरआन पर बहस( शास्त्रार्थ) भी करने लगे| आपकी इस बहस से मुसलमानों का अप्रसन्न होना स्वाभाविक ही था, वह आपकी जान के प्यासे हो गए| १२ नवम्बर १९२७ ईस्वी को जब आप फेरी से कपड़ा बेचने गए तो वापिस न लौटे| खोज करने पर १५ नवम्बर को आपका शव रावी नदी में मिला| आपके शरीर पर लाठियों से पीटने के निशान भी थे किन्तु आपकी मृत्यु का कारण पीटने के पश्चातˎ गला घोंटना ही था|
देहांत स्वामी सर्वानन्द जी
स्वामी सर्वानंद सरस्वती जी परदे के पीछे रहते हुए समाज की सेवा करने वाले निराभिमानी वीर सन्यासी थे| सब पकार के यश, कीर्ति और एषणाओं से सदा दूर रहते थे| उन्होंने धन को भी कभी छूने की कामना नहीं की| अपने कोमल तथा मधुर स्वभाव से आपने लोगों में आर्य समाज के प्रति अनुरक्ति पैदा की| दयानंद मठ दीनानगर आज भी आपके बिना सूना ही दिखाई देता है| आपका देह्गांत १०४ वर्ष की अवस्था में सनˎ २००५ ईस्वी को दीपावली के लगभग ही हुआ|
जन्म वासुदेव बलवंत फडके
सनˎ १९४५ ईस्वी में जन्मे वीर बलिदानी वासुदेव बलवंत फडके स्वामी दयानंद सरस्वती जी के समकक्ष ही थे| उन्होंने स्वामी जी से बहुत कुछ सीखा| भारत को स्वाधीन करवाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहे| पूरा जीवन स्वाधीनता के स्वपˎन को साकार करने के लिए आपने खूब परिश्रम किया और इसके लिए कार्य करते हुए आपने लगभग स्वामी जी के साथ ही सनˎ १८८३ में ही अपने शरीर को त्याग दिया|
चाँदकरण शारदा का देहांत
शारदा जी स्वामी दयानंद जी के अनन्य भक्त तथा आर्य समाज के एकनिष्ठ सेवक थे| आपने आर्य समाज के लिए अनेक कार्य किये, जिनसे आर्य समाज के गौरव की वृद्धि हुई| परोपकारिणी सभा अजमेर के कार्यों में आपका खूब सहयोग रहा| ४ नवम्बर १९५७ को आपका देहांत हो गया|
बलिदानी लाला लोरिन्दाराम
बन्नू नामक स्थान पर लाला आयाराम साहब अतरा के यहाँ १८८६ ईस्वी को जन्मे लोरिन्दाराम बड़े होकर भाई लद्धाराम के साथ वकालत करने लगे तथा कैम्बल पुर मे सरकारी वकील बने| नगरपालिका के उप प्रधान भी रहे| मिलनसार, दयालु, सत्यवादी तथा सेवाभावी होने के कारण संपन्न लोग आपka शत्रु बन गए| एक बार आपको मारने की इच्छा से झूठे से खोड ले जाया गया किन्तु मार्ग में ही वर्षा आ जाने के कारण रास्ता बदलने के कारण बच गये| फिर एक बार ५ तथा ६ नवम्बर की रात्री को किसी ने आपको घर पर आकर बुलाया तथा दरवाजा खुलते ही आगंतुक ने आपको गोली मार दी| उपचार के लिए रावlpiलपिण्डी ले जाते हुए मार्ग में ही आपका देहांत हो गया| आप निडर तथा कर्मठ आर्य समाजी थे| आपके अंतिम संस्कार में अत्यधिक भीड़ थी और संस्कार पूर्ण रूप से वैदिक विधि के अनुसार किया गया|
वीर वेदप्रकाश जी का बलिदान
हैदराबाद के गुन्जोटी पायगा में फाल्गुन शुक्ल ५ शाके १८२७ को शिव बसप्पा तथा रेवती बाई जी के यहाँ बसप्पा का जन्म हुआ| यही बालक आगे चल कर आर्य समाज के वीर बलिदानी वीर वेदप्रकाश के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ| यह नाम आपको आर्य समाज में आने पर आर्य समाज के लोगों ने ही दिया| आपके अत्यंत उत्साह का परिणाम था कि गुन्जोटी में आर्य समाज की स्थापाना हुई| शस्त्रों में आप अत्यधिक निपुण थे इस कारण अनेक बार आपने मुसलमानों से अपनी रक्षा स्वयं ही की| आपके क्षेत्र में एक छोटेखान नाम का मुसलमान स्त्रियों पर बुरी नजर रख़ता था, जिसे आपने सुधर जाने के लिए कहा तथा आपने वहां हिन्दुओं के लिए एक पान की दुकान आरम्भ कर दी| इस कारण वहां का पान फरोश चाँद खान भी आपका शत्रु बन गया| जब मार्ग शीर्ष ४ संवतˎ १९९४ बिक्रमी को लगभग ३०० मुसलमानों ने आर्य समाज पर आक्रमण किया तो आप निहत्थे ही अपने साथियों को बचाने के लिए आर्य समाज की और भाग पड़े| मार्ग में ही मुसलमानों से सामना हुआ और उनसे दो दो हाथ करते हुए आप का बलिदान हो गया|
जन्म पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति जी
आप आर्य समाज के सुप्रसिद्ध नेता संन्यासी और गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद जी सरस्वती के सुपुत्र तथा गुरुकुल कांगड़ी के प्रथाम छात्र थे| आपने आर्य समाज सहित देश के लिए अत्यधिक कार्य किया| आपने कभी भी और कहीं भी अपने पिता जी के नाम को निचा नहीं होने दिया| आपने अनेक पुस्तकें भी लिखीं| आर्य समाज का इतिहास तथा मेरे पिता आपकी अभूतपूर्व कृतियाँ हैं| २२ अगस्त १९५० को आपका देहांत हुआ| आप गुरुकुल कांगड़ी के प्रथम स्नातक भी थे|
जन्म स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती जी
पंजाब के लुधियाना जिला के जगरांव नगर में पंडित रामप्रताप जी के यहाँ माघ कृष्ण दसवीं को जन्मे बालक का नाम नेकराम रखा गया| बाद में इस बालक को कृपाराम नाम से पुकारा जाने लगा| मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में इस बालक का विवाह भी कर दिया गया| विरक्त स्वभाव के कृपाराम एक दिन घर को विदा कहा कर चुचाप चल दिए| अमृतसर में स्वामी दयानंद सरस्वती जी के विचार सुने तथा उनके ही रंग में रंग गए| काशी में सस्ते मूल्य में संस्कृत साहित्य का प्रचार और विक्रय कर छात्रों में सुप्रसिद्ध हो गए| अब पुस्तकें लिखना और शास्त्रार्थ करना उनके जीवन का मुख्य भाग बन गया| १९०१ में संन्यास की दीक्षा लेकर स्वामी दर्शनानद बन गए| आपने एक दर्जन पत्रों का सम्पादन का कार्य भी किया| आपने अनेक गुरुकुलों की भी स्थापना की| ११ मई १९१३ को हाथरस में आपका देहांत हो गया|
बलिदान लाला लाजपत राय जी
देश हित सर्वाधिक बलिदान देने वाले वीरों में एक लाला लाजपत राय जी का जन्म पंजाब के जिला मोगा के गाँव ढूढीके में लाला राधाकृष्ण जी के यहाँ २८ नवम्बर १८६५ में हुआ| लाला साईंदास जी की प्रेरणा से आर्य समाज से जुड़े| डी.ऐ.वी. की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान रहा| कांग्रेस के अनेक आन्दोलनों में जेल गए| अनेक बार पुलिस कि लाठियां खाईं| आपने आर्य समाज के माध्यम से अनेक जनहित के कार्य किये| आर्य समाज से आपका इतना अनुराग था कि आप आर्य समाज को अपनी माता और इसके संस्थापक स्वामी दयानंद जी को अपना धर्म का पिता मानते थे| आप उत्तम लेखक, वक्ता, समाज सेवक, शिक्षा शास्त्री तथा विचारक थे| आपने अनेक पुस्तकें भी लिखीं| १७ नवम्बर १९२८ को आपका देहांत हो गया|
देहांत पंडित प्रकाश वीर शास्त्री जी
चौधरी दिलीपसिंह त्यागी निवासी ग्राम रहटा जिला मुरादाबाद के यहाँ ३० दिसंबर १९२३ को जन्मे पंडित प्रकाशवीर शास्त्री आर्य समाज के उच्चकोटि के उपदेशक थे किन्तु जब उन्होंने देखा कि राजनीति के बिना धर्म अधूरा है तो राजनीति में आये तथा संसद सदस्य बन गए| उनकी व्यख्यान कला,भाषा, विषय प्रतिपादन का ढंग आदि ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचा दिया| २३ नवम्बर १९७७ को रेल दुर्घटना में आपका देहांत हो गया|
देहांत पंडित क्षितीश वेदालंकार जी
१६ सितम्बर १९१५ को दिल्ली में आपका जन्म उस दिन हुआ, जिस दिन रामलीला में भरत मिलाप किया जा रहा था| आप उच्चकोटि के लेखक, पत्रकार तथा देशभक्त थे| पत्रकार और यात्री के रूप में भी आपकी अत्यधिक ख्याति थी| जब हैदराबाद में सत्याग्रह का शंखनाद हुआ तो गुरुकुल कांगड़ी से पंद्रह ब्रह्मचारियों का जत्था आप ही के नेत्रत्व में वहां सत्याग्रह के लिए गया| साप्ताहिक आर्य जगतˎ का जो स्वरूप आज दिखाई देता है, उसका श्रेय आपको ही जाता है| २४ दिसंबर १९९२ को नश्वर देह त्याग कर चल बसे|
देहांत महात्मा हंसराज जी
पंजाब के जिला होशियारपुर के गाँव बजवाडा के लाला चुनीलाल जी के यहाँ १९ अप्रैल १८६४ को आपका जन्म हुआ| स्वामी दयानंद जी के विचारों से प्रभावित होने के कारण मिशन स्कूल में ईसाई अध्यापक ने जब वैदिक धर्म और आर्य समाज पर आक्षेप किये तो अध्यापक को प्रत्युत्तर देने पर स्कूल स्कूल से निकाल दिया किन्तु शीघ्र ही वापिस भी ले लिया| आपने आर्य समाज की खूब सेवा की| आजीवन डी ए वी स्कूल के अवैतनिक रूप से प्राचार्य बने| १५ नवम्बर १९३८ को आपका देहांत हो गया|
जन्म स्वामी ब्रह्मानंद जी
माघ शुक्ला पंचमी १९२५ को बिहार के जिला आरा के गाँव ठुमरा के रामगुलाम श्रीवास्तव जी के यहाँ आपका जन्म हुआ| आपने १६ वर्ष की आयु में आर्य समाज में प्रवेश किया| वैदिक यन्त्रालय अजमेर, गुरुकुल कांगडी, आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब आदि के माध्यम से कार्य किया| हरियाणा में बारह हजार नए लोगों को आर्य समाज में लेकर आये| कई पत्रिकाओं का सम्पादन किया| लाखों रुपये दान दिए| गुरुकुल झज्जर के आचार्य भी रहे| मथुरा अर्ध शताब्दी के अवसर पर आपने संन्यास लेकर आपका नाम स्वामी ब्रह्मानंद हुआ| अनेक गुरुकुलों की स्थापना आपने की| १९४६ के अंत में अस्सी वर्ष की आयु में आपका देहांत हुआ|
छोटे लाल जी
आपका जन्म गाँव अलालपुर जिला मैनपुरी निवासी पंडित सभोके प्रसाद तथा माता त्रिवेणीदेवी जी के यहाँ मार्गशीर्ष शुक्ला १० संवतˎ १९६१ विक्रमी को हुआ| बालक को आरम्भ से ही साधुओं की संगति पसंद थी| गाँव के ही कुंवर हरिभजन सिंह जी की संगति से वह आर्य समाज के सदस्य बने| सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा| आपने गाँव के जाटव लोगों को ईसाई होने से बचाया| १९३७ में ननिहाल में आर्य समाज की स्थापना के साथ ही इसके साहयक बन गए तथा वर्षों से ईसाई बने जाटव परिवारों को शुद्ध किया| आपने हैदराबाद सत्याग्रह का नाद सुना तो तत्काल धुरेन्द्र शास्त्री जी के साथ गुलबर्गा में जाकर सत्याग्रह किया| जेल में बीमार होने पर भी आपको यातनाएं देने का क्रम रुका नहीं| इस कारण ३ मई १९३९ को आपका बलिदान हो गया| आपके शव का किसी को नहीं लेने दिया और न ही पार्थिव शरीर दिया और जेल में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया|
पुण्य तिथि स्वामी वेदानद सरस्वती जी
आपका जन्म कृष्ण मोहन ज्येष्ठानंद चतुर्वेदी जी के यहाँ एक धनाढ्य परिवार में हुआ| दो वर्ष की आयु में गई आँखों की ज्योति तीन वर्ष बाद पुन: लाई जा सकी| आप उच्चकोटि के महानˎ मनीषी तथा विश्व की अनेक भाषाओं को जानते थे| उपदेशक विद्यालय के आचार्य होते हुए भी भिक्षा लेकर भोजन किया करते थे| आपने अनेक गुरुकुल चलाये| आर्य विरक्ताश्रम के प्रधान स्वरूप आपने अनेक कार्य किये| आर्य समाज में आरम्भ किये जा रहे अन्धविचारों का खुलकर विरोध किया| २७ नवम्बर १९५६ में सब्जी मंडी दिल्ली की दयानंद वाटिका में आपका देहांत हुआ|
जन्म पंडित शान्ति प्रकाश जी शास्त्रार्थ महारथी
पंडित जी का जन्म ३० नवम्बर १९०६ को एक पौराणिक परिवार में हुआ| पंडित मूलशंकर जी के मार्गा दार्शन में आर्य बने| आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के महोपदेशक रहे| शास्त्रार्थों की एसी धुन सवार हुई कि अपने विवाह संस्कार से ही पुस्तकों की पेटी उठा कर सीधे शास्त्रार्थ के लिए चल दिए| पाकिस्तान बनने पर गुरुग्राम को केंद्र बनाकर कार्य किया| अंतिम दिनों जयपुर में रहे| आर्य युवक समाज अबोहर से प्रकाशित आपके शास्त्रार्थों का संग्रह मैंने ही प्रकाशित किया|
यह आर्य समाज का सौभाग्य ही था कि छोटे से जीवन में ही इस संस्था ने इतने अधिक त्यागी, तपस्वी, शौर्यवानˎ तथा विद्वानˎ व्यक्तियों का न केवल समर्थन अपितु नियमित सहयोग भी प्राप्त किया| इन में से अनेकों ने तो आर्य समाज को ही अपना सब कुछ मानते हुए, इसीके लिए जीने और इसी के लिए मरने का संकल्प लिया| इस का ही परिणाम था कि आर्य समाज का एक छोटा सा पौधा कुछ काल में ही वटवृक्ष बन गया| आज तो हम कुर्सीनिष्ठ हो गए हैं| इन स्वार्थी लोगों से आर्य समाज को बचाने के लिए, आर्य समाज के इन महापुरुषों के जीवनों तथा कार्यों से प्रेरणा लेते हुए, अपने जीवन में भी वैसा ही तप तथा त्याग पैदा करने की आवश्यकता है| पद लौलुप तथा कुर्सीनिष्ठ का त्याग कर केवल आर्य समाज के एकनिष्ठ इन सेवकों के जीवनों से प्रेरणा लेने के लेते हुए, अपने जीवन में भी वैसा ही तप तथा त्याग पैदा करने की आवश्यकता है| पदलौलुप तथा कुर्सीनिष्ठ लोगों का त्याग कर केवल आर्य समाज का विस्तार, वेद प्रचार तथा समाज की सेवा ही एक मात्र हमारा ध्येय बने| एसा संकल्प बना कर हम सभी मिलजुल कर केवल आर्य समाज की उन्नति का मार्ग खोलें|
हमें निश्चय ही ऐसा करना होगा| इसके बिना स्वामी का स्वपन साकार नहीं हो सकता| अत: आओ हम प्रतिज्ञा लें कि हम अपने जीवन से धन, बल, पद आदि किसी भी प्रकार की षणा को घुसाने नहीं देंगे| आर्य समाज के लिए ही हम जियेंगे और आर्य समाज के लिए ही हम मरेंगे| यह संकल्प ही हमारे बलिदानियों की सच्ची पूजा और सच्ची श्रद्धांजलि होगा|
डॉ.अशोक आर्य
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