इंदौर (नईदुनिया)। कबाड़ में पड़े पुराने सामान से इंजीनियरिंग छात्र ने मोबाइल-फाइल को कोरोना वायरस से बचाने के लिए एक उपकरण बनाया है। बाजार में चार से पांच हजार रुपये कीमत वाले यूवी बॉक्स पर छात्र ने सिर्फ 400 रुपये खर्च किए है। लगभग 15 दिन की मेहनत के बाद छात्र ने ‘कोरोलाइजर” तैयार किया है। इस्तेमाल के लिए छात्र ने पहले बनाए दो उपकरण अपने शिक्षकों को दिए हैं। कम खर्च वाले ‘कोरोलाइजर” के लिए अब छात्र को ऑर्डर मिलने लगा है। तीन महीने के भीतर करीब 12 उपकरण बनाए हैं, जो अपने मित्र और परिचितों को बांटे है।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (डीएवीवी) के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (आइईटी) से इलेक्ट्रॉनिक एंड इन्स्टूमेंटल ब्रांच में इंजीनियरिंग कर रहे छात्र प्रमोद कायस्थ ने बनाया है।
तीसरे साल के छात्र प्रमोद का कहना है कि चौथे सेमेस्टर की पढ़ाई के दौरान कोरोना वायरस तेजी से बढ़ रहा था। तब सामान से वायरस को खत्म करने के लिए सैनिटाइजर का उपयोग हो रहा था। मगर कुछ मोबाइल,चार्जर, घड़ी, फाइल, नोट जैसी वस्तुओं को लिक्विड सैनिटाइजर से डिसइंफैक्ट करना संभव नहीं है। वस्तुओं को वायरस से बचाने के लिए बाजार से यूवी बॉक्स खरीदने पहुंचा, लेकिन उनका मूल्य काफी अधिक है। तब मैंने देखा कि काफी लोग इसे खरीदने में लगे हैं। संक्रमण काल में ये आवश्यक वस्तु में शामिल किया। फिर मैंने तय किया है कि यूवी बॉक्स को खुद तैयार कर सकता हूं। फिर घर में पड़े सामान को निकाला, जिसमें इस्तेमाल होने वाले सामान को इकट्ठा किया। यूवी बॉक्स को बनाने के लिए प्रोफेसर डॉ.अमित झा से मार्गदर्शन लिया। लगभग सात दिन तक यूवी बॉक्स डिजाइन किया। फिर घर में पड़े कबाड़ से बॉक्स, आइना, बल्ब और पेंट इकट्ठा किया। दस दिन में काम तक काम किया। बॉक्स बनने के बाद प्रो. झा को बताया। उसके बाद यूवी बॉक्स का नाम ‘कोरोलाइजर” रखा।
एचओडी डॉ.अजय वर्मा और प्रो.अमित झा को ‘कोरोलाइजर” बताया। 48 घंटे तक लैब में टेस्ट किया। प्रो.झा का कहना है कि बॉक्स से जुड़े रिजल्ट काफी सकारात्मक मिले। वायरस खत्म हो रहे थे। छात्र की पहल अच्छी थी। छात्र प्रमोद ने बताया कि उसके बाद मुझे लगा कि विभाग में कोरोलाइजर की आवश्यकता अधिक पड़ती है। यहां फाइल या अन्य वस्तुएं अधिक है। इसलिए मैंने दो उपकरण तैयार कर शिक्षकों को भेंट किए। एक डायरेक्टर रूम में तो दूसरा स्टॉफ रूप में रखा है।
छात्र प्रमोद ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान यह बनकर तैयार हो चुका था। तब ऑनलाइन पढ़ाई नहीं चल रही थी। मुझे अपने दोस्तों ने बनाकर देना का ऑर्डर दिया। उन्हें देने के लिए मुझे कुछ सामान बाहर से खरीदना पड़ा। यहां तक ‘कोरोलाइजर” को फिनिशिंग की जरूरत महसूस होने लगी। फिर बाहरी व्यक्तियों से संपर्क किया। इसके चलते ‘कोरोलाइजर” की कीमत थोड़ी बढ़ गई। अभी तक 12 ऑर्डर बनाकर दिए हैं।
आइईटी के डायरेक्टर डॉ. संजीव टोकेकर का कहना है कि यूवी बॉक्स ‘कोरोलाइजर” बनाने के बाद छात्र दिखाने आया था। इनोवेशन काफी अच्छा होने से विभाग की लैब में बाकी विद्यार्थियों को दिखाने के लिए रखा है। विभाग ने नए इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है। छात्र की इस पहल को प्रोजेक्ट के रूप में शामिल कर दिया है।
साभार – https://www.naidunia.com/ से