Friday, November 29, 2024
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निजाम को उसके ही गढ़ में ललकारने वाले हैदराबाद के अमर बलिदानी भाई श्यामलाल

विगतˎ लेखों में भी इस बात की चर्चा की गई है कि हैदराबाद के निजाम अपने समय के एक ऐसे निजाम थे, जो हिन्दुओं के लिए औरंगजेब से भी कहीं अधिक क्रूर शासक थे और वह प्रतिदिन ही नहीं प्रतिक्षण हिन्दुओं पर अत्याचार करना, उन्हें अपमानित करना, उन्हें अकारण जेल में डाल देना तथा उनकी मां बहिनों की इज्जत लूटना अपना अधिकार समझते थे| जब निजाम के इस क्षेत्र में आर्य समाज की स्थापना हो गई तो आर्य समाजियों ने हिन्दुओं में जागृति लाने का काम करना आरम्भ कर दिया और निजाम के आतंक का खुलकर विरोध करना भी उन्होंने आरम्भ कर दिया|

मुट्ठी भर आर्यों द्वारा निजाम का खुलकर विरोध हुआ तो हिंदुओं में भी जान आ गई| इस कारण ही पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने कहा था कि आर्य भागेगा तो हिन्दू चलेगा, आर्य चलेगा तो हिन्दू बैठेगा, आर्य बैठेगा तो हिन्दू लेटेगा और यदि आर्य ही लेट गए तो निश्चित है कि हिन्दु मर ही जावेगा| इस उक्ति के परिणाम अब हैदराबाद रिआसत में दिखाई दे रहे थे| जब आर्यों ने निजाम के अत्याचारों का खुल कर विरोध आरम्भ किया तो हिन्दुओं में भी कुछ जान आ गई और वह भी निजाम के अत्याचारों के विरोध में खडा होने की हिम्मत करने लगा| इसका यह परिणाम हुआ कि निजाम के अत्याचारों में आर्यों की हत्याएं भी सम्मिलित हो गईं| इन बलिदानों से भी हिन्दुओं में जान आ गई| इस प्रकार ही निजाम का विरोध करने वाले बलिदानी आर्य वीर भाई श्यामलाल जी की आज हम यहाँ चर्चा करते हैं|

हैदराबाद के इस बलिदानी वीर भाई श्यामलाल जी का जन्म दिसंबर १९०३ को हुआ| उनका जन्म स्थान हैदराबाद रियासत के जिला बीदर में स्थित भालकी नामक गाँव था और उनके पिता का नाम श्री भोला प्रसाद तथा माता का नाम श्रीमती छुटटोबाई था| आप पांच भाई और बहनें थे| भाई श्याम लाल जी आरम्भ से ही अस्वस्थ रहते थे| आप के अस्वस्थ होते हुए भी माता ने बड़ा धैर्य रखा और इसका परिणाम ही था कि आप समाज सेवा के कार्यों में बहुत आगे निकल गए| अभी आप अल्पायु ही थे कि आपके पिता का देहांत हो गया| परिणाम स्वरूप आपके पालन का जिम्मा मामा जी पर आ गया| मामा जी ने आपका पालन पौषण करने के साथ ही साथ आपकी शिक्षा की भी उत्तम व्यवस्था की| वह आर्य समाज के सहयोगी थे, इस कारण वह कुरीतियों के विरोध में सदा अपनी आवाज उठाते रहते थे|

भाई श्याम लाल जी के प्रयास से गुलबर्गा में भी आर्य समाज की स्थापना हो गई| आप इस समाज के लम्बे समय तक मंत्री रहे और मंत्री स्वरूप आपने युवकों में आर्य समाज के लिए बहुत काम किया| जब १९२५ में आपने वकालत पास कर ली तो उदगीर में आकर वकील के रूप में अभ्यास करने लगे| यह व्यवसाय करने के साथ ही साथ आप आर्य समाज के प्रचार तथा प्रसार के कार्यों में भी लगे रहे| आपने पठान बहुल क्षेत्र हुसनाबाद में शिवरात्री का पर्व पूर्ण वैदिक रीती से सफलता पूर्वक संपन्न किया ओर फिर इस नगर में होली का जुलूस निकाला, यह नगर कीर्तन होली के अवसर पर प्रथम बार निकाला गया था| इस सब के कारण वहां की हिन्दू जनता ने आपकी अत्यधिक प्रशंसा की और आपके साथ जुट कर कार्य करने लगी| आपको १९२३ से एक भ्यानक चर्म रोग हो गया था, यह रोग अब तक अत्यंत भयंकर रूप धारण कर चुका था| अत: इस रोग के उपचार के लिए आप लाहौर गए| लाहौर से लौटने पर आपने आजीवन आर्य समाज की सेवा का संकल्प लिया| आपके इन कार्यों से निजाम सरकार के अधिकारी आपसे अत्यधिक कुपित थे और इस कोप का परिणाम यह हुआ कि वहां के मुस्लिम तहसीलदार ने एक दिन आपके घर पर आक्रमण करवा दिया किन्तु वीर पुरुष मुसीबतों से कभी घबराया नहीं करते| अत: इस आक्रमण के एक दम बाद जब दुशहरा का पावन पर्व आया तो आपने बड़े साहस के साथ इस पर्व की शोभायात्रा भी इस नगर में निकलवा दी, जो कि इस नगर में प्रथम बार निकाली गई| इस शोभायात्रा को निजाम के सरकारी तंत्र ने रोकने के भरपूर प्रयास किये किन्तु उनके सब प्रयास भाई श्याम लाल की सूझबूझ के आगे बेकार गए|

भाई श्यामलाल जी को पता था कि मुसलमान किसी भी समय किसी भी आर्य अथवा हिन्दू को हानि पहुंचा सकते हैं, इस कारण वह उनका प्रतिरोध करने के लिए प्रतिक्षण स्वयं को तैयार रखते थे| जब आपके यहाँ मुसलमानों ने आक्रमण किया तो अन्दर से आर्य युवकों के जयघोष की ध्वनि से मुसलमान भयभीत होकर भाग खड़े हुए| इससे लोगों का आर्य समाज के प्रति विशवास और निष्ठा दोनों ही बढ गए| आप स्त्रियों तथा दलित लोगों की सहायता के लिए सदा सबसे आगे रहते थे| इस कारण इन समुदायों की दृष्टि में आपके प्रति विशेष रूप से सम्मान था| एक बार उदगीर में आपने आर्य समाज का वार्षिक उत्सव आयोजित किया, इस कारण आप पर एक झूठा अभियोग लगाया गया और इस दोष में आपको पकड़ लिया गया किन्तु आरोप सिद्ध न हो पाने के कारण हाईकोर्ट ने आपको बरी कर दिया| इस केस में विजय से उताहित भाई श्याम लाल जी ने पूरे क्षेत्र में साइकल पर सवार होकर आर्य समाज के प्रचार के कार्य को तीव्र गति देते हुए आरम्भ कर दिया| इस साइकल प्रचार यात्रा के अवसर पर आप पर अनेक बार मुसलमानों के आक्रमण भी किए किन्तु तो भी आपका कभी बाल भी बांका नहीं हो सका| आपके पास एक पिस्तौल हुआ करती थी, ज्यों ही आप पिस्तौल निकालते तो हमला करने वाले मुसलमान भाग जाते थे| इस प्रकार ही एक बार आप अघोरी गाँव की और जा रहे थे कि मार्ग में मुसलमानों ने फिर से आप पर आक्रमण कर दिया किन्तु ज्यों ही आपकी पिस्तौल सामने आई, उन्होंने भागते देर न लगई|

इस प्रकार ही आर्य समाज का प्रचार करने के लिए आप घोड़े पर जा रहे थे कि अकस्मात् घोड़ा नदी में बह गया किन्तु यह देवयोग ही था कि आप बाल बाल बाच गए| आपने आर्य समाज हलामी खेडा के उत्सव के लिए आधार तैयार किया और उत्सव आरम्भ किया| इस उत्सव को ही दोष का आधार बनाकर निजाम के आदेश पर पंडित रामचंद्र देहलवी जी तथा आर्य समाज के अनेक कार्यकर्ताओं पर अभियोग चला दिया गया| इस अभियोग से आर्यों और निजाम सरकार के बीच एक लम्बे संघर्ष की नींव रखी गई| जब आर्य समाज निलंगा के भवन को गिराने के लिए निजाम के अधिकारियों ने योजना बनई तो आपने निजाम के इन चाटुकार अधिकारियों को मुंह तोड़ जवाब दिया| चिटगसपा नामक स्थान पर आप ने आर्यसमाज के प्रचार पर लगाए गए प्रतिबन्ध को तोड़ते हुए लगातार छ: दिन तक आर्य समाज का प्रचार किया| इस प्रकार के अनेक अभियोग आप पर चला करते थे और आप सदा ही इन अभियोगो में निर्दोष सिद्ध होते रहे|

आप रोगी थे और पुलिस के पास आपके नाम से वारंट था किन्तु इस सब की चिंता किये बिना आप ने यहाँ आर्य समाज के लिए खूब काम किया| इस समय पुलिस के पास आपकी गिरफतारी के लिए वारंट होते हुए भी आपको पकड़ पाने का साहस मुस्लिम पुलिस नहीं कर पाई|

मनिकनगर में एक मेला लगा| इस मेले में आपको देखकर मुसलमानों ने आक्रमण कर दिया किन्तु इस में भी आप बाल-बाल बच गए| जब कोहरी नगर में होली के अवसर पर नगर कीर्तन निकाला जा रहा था तो सामने से सशस्त्र मुसलमानों ने रास्ता रोक लिया| आपने सब आर्यों को बचाते हुए इन मुसलमानों से बचाकर उन में से मार्ग को चीरते हुए जुलूस के सब लोगों को निकाल कर ले गए|

उस समय हैदराबाद में मुसलमान निजाम की अत्याचारी सत्ता थी किन्तु अपनी सत्ता होते हुए भी आपके नाम मात्र से ही वहां के मुसलमान थर थर कांपते थे, इस प्रकार का प्रभाव और भय आपका मुसलमानों पर था| यह ही कारण था कि अनेक आक्रमणों के बाद और अनेक प्रकार के झूठे अभियोग चला कर भी वह आपका बाल भी बांका नहीं कर पा रहे थे किन्तु इन मुसलमानों ने एक बार फिर से झूठ और छल का सहारा लिया| उदगीर दुशहरा के अवसर पर वहां के गंगाराम जी लिंगायत से कुछ चूक हो गई| इस लिंगायत की भूल को आपका अपराध बना दिया गया और इस दोष में निजाम ने आपको जेल भेज दिया|

बाल्यकाल से ही भाई श्यामलाल नामक यह रोगी अनेक बार रोग के आक्रमणों से बचता रहा, अनेक बार दुष्ट मुसलमानों के आक्रमण का सामना करते हुए स्वयं भी बचता रहा और अपने साथियों को भी बचाता रहा| इस सब का वहां की मुसलिम सरकार तक पर भी इस प्रकार का प्रभाव पड चुका था कि स्वयं निजाम तक भी भाई जी के नाम से थर थर कांपने लगा था| इस प्रकार के निर्भीक भाई श्यामलाल जी को निजाम की जेल में भरपूर यातनाएं दी जाने लगीं| निजाम की जेल में उसके इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिल पाता था| इस प्रकार की सुरक्षा अथवा सी आई डी निजाम ने लगा रखी थी| इतनी अधिक देख रेख के अन्दर भी पता ही नहीं चल पाया कि कैसे इन दी जा रही यातनाओं का विस्तृत व्यौरा भाई श्याम लाल जी ने लिख कर बाहर आर्य समाज के अधिकारियों के पास भेज दिया| उन्होंने कहाँ से कागज़ और कलम लिया होगा और किस प्रकार किस के हाथ यह सब बाहर भेजा होगा, इस का आज तक कोई अनुमान भी नहीं लगा पाया?

भाई जी भयंकर रोगो से तो बाल्यकाल से ही पीड़ित रहते थे| इस कारण उनके दांत भी नहीं रहे थे| इस अवस्था में जेल में मिलने वाली जुआर जैसी कठोर रोटी को वह कैसे खा सकते थे? इस बीच ही आप जिस जेल में थे, इस जेल में एक नए जेलर की नियुक्ति कर दी गई| यह नियुक्ति कोई साधारण अवस्था में नहीं की गई थी किन्तु इसका उद्देश्य आपकी जीवन लीला को समाप्त करना था| इस जेलर ने आते ही अत्यधिक भयंकर रोगों से घिरे भाई श्यामलाल जी का दूध बंद कर दिया| केवल जुआर की सुखी रोटी, जिसे भाई जी किसी प्रकार भी नहीं खा सकते थे, इसे खाने के लिए उन्हें बाधित किया गया|

उनके रोग को देखते हए डाक्टर ने उनके लिए जो दूध की खुराक निश्चित कर रखी थी, उसे तो पूरी तरह बंदकर दिया गया| ऊपर से जुआर की सूखी रोटी खाने क लिए बाध्य किया जाने लगा और इस सूखी रोटी को न खाने पर उनकी खूब पिटाई की जाने लगी| इस सब का परिणाम यह हुआ की जो पेट पहले से ही खराब था, उसे भूखा भी रहना पडा, इससे वह शक्तिहीन हो गए| रोगी होते हुए भी अत्यधिक पिटाई और भूखे पेट के कारण भाई श्याम लाल जी ने कुछ दिनों में ही अपने शरीर को त्याग दिया|

आपके साथ इतना अन्याय किया गया कि आपको जेल के अन्य कैदियों से पूरी तरह से अलग रखा गया| मिलना तो क्या किसी को आपकी और देखने तक की आज्ञा नहीं थी| इस अवस्था में जब आपकी मृत्यु हो गई तो इस दु:खाद समाचार का सुराग किसी को मिलना और फिर उस सूचना को बाहर आर्यों तक पहुंचाना, यह सब भी उनकी एक बहुत बड़ी योजना की सफलता का ही परिणाम था|

निजाम नहीं चाहता था कि भाई जी की मृत्यु का समाचार आर्यों तक पहुंचे किन्तु यह समाचार तो मृत्यु होते ही आर्यों तक आ गया| अब निजाम ने एक अन्य निर्णय लिया कि भाई जी का पार्थिव शरीर भी आर्यों को न दिया जाए| वह नहीं चाहता था कि उनका पार्थिव शरीर जेल से बाहर जावे और उनको एक बलिदानी के रूप में सम्मान देते हुए उनके पार्थिव शरीर की नगर यात्रा निकाली जाए किन्तु आर्यों की योजना निजाम की योजना से कहीं अधिक सफल रही|

इन योजनाओं के अरन्तर्गत निजाम की इन योजनाओं को धत्ता बताते हुए आर्य समाज के लोगों ने अपनी सूझ बूझ का परिचय देते हुए न केवल भाई श्यामलाल जी के शरीर को जेल से बाहर ले जाने में ही सफल हुई अपितु इस शरीर की नगर में अत्यधिक सम्मान के साथ शव यात्रा भी निकाली गई| इस प्रकार बड़ी धूमधाम से भाई जी का पूर्ण वैदिक रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया|

जब भाई जी की शवयात्रा बड़ी धूमधाम से निकालने और बड़े सम्मान से अन्तिम संस्कार करने की सूचना निजाम को मिली तो वह अपनी योजनाओं के फेल होने पर दांतों में अंगुली दबा कर बैठ गया| वह सोचता ही रह गया कि यह सब कैसे हो गया? किन्तु पाछे पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत| जब भाई जी का पार्थिव शरीर आर्यों के हाथ आया तो उनका अंतिम संस्कार करने से पहले चिकत्सक को यह शरीर दिखाया गया| चिकित्सक ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उन्हें अनेक दिन तक भूखा रखा गया था| इससे उनका पेट कमर से चिपक गया था| उनके पार्थिव शरीर पर अनेक घाव बताते हैं कि उन्हें प्रतिदिन बुरी तरह से पीटा जाता था| इस प्रकार बुरी तरह से उन्हें मारा गया था|

उनके देहांत को हुए लगभग एक शताब्दी पूर्ण होने जा रही है किन्तु मुसलमानों में उनके नाम का आज भी इतना भय है कि आज भी जब मुसलमान अपने बच्चे को डराना चाहते हैं तो मुसलमान माताएं बोलती हैं कि संभल जा वो देख श्यामलाल आ रहा है| इस प्रकार के त्यागी, तपस्वी और निस्वार्थ आर्यों के जीवन ही वर्तमान आर्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत होते हैं| बस आज आवश्यकता है इन बलिदानियों को सच्चे ह्रदय से याद करने की| यदि आज भी हम अपने बलिदानी वीरों और वीरांगनाओं का सच्चे मन से स्मरण करते हुए उनका अनुसरण करें तो पद लोलुपता स्वयं ही दूर भाग जावेगी| इससे हमारे अन्दर त्याग की वृत्ति आवेगी| इस सब से टूट चुके आर्यों के संगठन को फिर से शक्ति मिलेगी| अत: आओ हम एक बार फिर से अपने बलिदानियों के जीवनों का स्मरण करते हुए उनके कार्यों का अनुसरण करें|

डॉ. अशोक आर्य
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