अतुल अग्रवाल अपने आप में एक संपूर्ण व्यक्तित्व हैं। पेशे से बिल्डर , शौक़ से दोस्त और दिल से कवि , ये रोल क्षण क्षण में उल्टे पुल्टे होते रहते हैं . जिस तरह से पुराने जमाने के विद्यार्थी परीक्षाओं के लिए नक़ल की पर्ची बनाते रहते थे हमारे अतुल भई ऐसे ही रोज़ाना जहां भी मौक़ा लगता है कविताओं की पर्चियाँ बनाते रहते हैं, धीरे धीरे करके इन पर्चियों की संख्या अब तो पोथियों में बदल चुकी है लेकिन अतुल भाई को विश्राम नहीं , अभी भी अपनी उम्र को धता बताते हुए निरंतर कविता का भंडार बड़ा करने में लगे हुए हैं.
प्रस्तुत संग्रह ख़ास मोटा बन पड़ा है , लेकिन इसकी न कोई प्रस्तावना है न ही क़िसे बड़े कवि की सम्मतियाँ या भूमिका है . यह अच्छी बात है संकलन की कविताएँ अपने बारे में खुद ब खुद बोलती लगती हैं .
अतुल भाईं से परिचय हुए ४५ वर्ष हो चुके हैं , शुरुआती दौर में वे अच्छे शायरों की रचनायें बहुत ही दिलकश अंदाज में सुनाया करते थे , उनका यह अंदाज लोगों को उनसे दोस्ती करने के लिए मजबूर कर देता था , इसी सब के बीच वे खुद भी कविताएँ करने लगे यह तो बहुत बाद में पता चला , नौकरी की , अच्छी भली नौकरी छोड़ कर अपने व्यवसाय में कूद पड़े , अपने इलाक़े के शीर्ष बिल्डर बन गए , इन सब में दिन प्रतिदिन तनाव , समझौते झेलने पड़े लेकिन उनके भीतर बैठा कवि उन्हें एक ऊर्जा प्रदान करता रहा , शायद यही उनके व्यक्तित्व का सबसे सकारात्मक पक्ष है , उत्तर प्रदेश के छोटे से क़स्बे चन्दौसी के सीमित दायरे से महानगर बम्बई में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने का जो सफ़र अतुल ने शुरू किया था वह अभी तक जारी है उनका प्रकल्प यूनाइटेड एम्परर उनकी शख़्सियत का ही विस्तार है. साइकिल से मर्सिडीज़ एक लग्ज़री ट्रान्सफ़ोरमशन ज़रूर है लेकिन उनमें अपने मित्रों के प्रति वही उंसियत है , उनके कवि हृदय ने दोस्ती की बैटरी को निरंतर चार्ज रखा है .
हाँ , जो लोग इन कविताओं में बड़ा हाई फ़ंडु चिंतन तलाशने की कोशिश करेंगे उन्हें निराशा मिलेगी , लेकिन अतुल भाई की रचनायें बहु आयामी हैं आम आदमी के जीवन को छूती लगती हैं , यही उनकी रचनाओं की ऊर्जा है.