भोपाल का इतिहास महिलाओं के शासन करने का इतिहास है!
पूरे विश्व में कहीं भी एक के बाद एक ४ महिला शासिकाएँ नहीं हुईं…
भोपाल का इतिहास २४० वर्ष पुराना है, जिसमें से १०७ वर्ष यहां महिलाओं ने शासन किया!
सेंट्रल लाइब्रेरी की यह बिल्डिंग सुल्तान जहां बेगम ने इसलिए बनवाई थी कि एक बार जब भारत के वाइसरॉय का क़ाफ़िला यहाँ से पसार हो रहा था, तब उन्होने यहाँ एक महिला को बिना दुप्पटे के कपड़े धोते देख लिया था!
भोपाल में कोई भी भोपाल वाला नहीं है – यह अनोखा शहर है, क्योंकि यहाँ का हर बाशिंदा कहीं ना कहीं बाहर से ही आया है!
भोपाल के जो असली निवासी थे, वे गोंड लोग थे, जिनका इस शहर में कोई नाम-ओ-निशान ही नहीं बचा है।
भोपाल ‘घोड़े की नाल की डिजाइन’ के ५ पहाड़ों पर बसा है, जिनके बीच कभी २ नदियां बहा करती थीं – कोलान्स एवं कुलझावन!
१०वीं सदी में परमार राजाओं ने दो पहाड़ों को जोड़कर एक बांध बनाया था, जिससे भोपाल के तालाब का निर्माण हो गया!
१०वीं सदी में बना यह बांध वही है, जहां कमला पार्क स्थित है!
१३वीं शताब्दी तक भोपाल के पास ही ‘भोपाल के बड़े तालाब’ से १० गुना बड़ा एक तालाब और था, जिसे ‘परगना तालाब’ कहते थे!*
भोजपुर का मंदिर इसी तालाब के किनारे स्थित था!
भोपाल हमेशा से ‘गोंड राजाओं’ का राज्य था, जिसकी अंतिम शासिका रानी कमलापति थीं!
भोपाल में मुस्लिम राज्य की स्थापना एक अफ़ग़ानी सैनिक “दोस्त मुहम्मद ख़ान” ने की थी! दोस्त मुहम्मद एक भाड़े का सैनिक था, जिसने पैसे लेकर रानी कमलापति के लिए कई लड़ाइयाँ लड़ी थीं!
भोपाल की रानी कमलापति ने दोस्त मुहम्मद के सहयोग से प्रसन्न होकर उन्हें भोपाल के पास २०० एकड़ ज़मीन भेंट की थी, व उनसे भोपाल में ही बस जाने का अनुरोध किया!
रानी के कहने पर दोस्त मुहम्मद ने एक नदी के किनारे कई हज़ार ठाकुरों को मारा था, जिसके कारण वह नदी “हलाली नदी” कहलाने लगी!
१७२१ में दोस्त मुहम्मद ने अपनी बीबी ‘फ़तेह बीबी’ की याद में फ़तेहगढ़ का क़िला बनवाया!
कई वर्षों तक भोपाल शहर इसी किले के अंदर बसा था!
हमेशा हिन्दू ही यहाँ दीवान बनता था:
भोपाल एक हिन्दू शहर था, इसलिए दोस्त मुहम्मद ने यहाँ एक परंपरा शुरू की, जिसके अनुसार भोपाल रियासत का प्रधान मंत्री हमेशा कोई हिन्दू ही बनेगा! भोपाल के पहले दीवान बजेराम से लेकर आख़िरी दीवान ‘अवध नारायण बिसारिया’ तक सब हिन्दू थे!
तब तालाब के किनारे एक विशेष तरह की घास उगती थी, जिसे काटने का काम कुछ विशेष लोगों को दिया जाता था। यही लोग आगे चल कर ‘बर्रुकाट’ कहलाए! कई पीढ़ियों से यहाँ रहने वाले भोपालियों को अभी भी बर्रुकाट भोपाली कहा जाता है!
भोपाल के दूसरे नवाब यार मोहम्मद ख़ान ने हाड़ौती की राजपूत लड़की से विवाह किया था! यह लड़की भोपाल में “माँजी मामोला” कहलाईं!
इनका भोपाल में इतना सम्मान था, कि पूरा शहर इन्हें माँजी कहता था!
एक बार जब माँजी साहिबा बीमार पड़ीं, तो एक प्रसिद्ध सूफ़ी संत ने उनके लिए प्रार्थनाएँ कीं, उस संत का नाम ‘अली शाह’ था! ये अली शाह जहां आराम करते थे वह जगह “अली शाह का तकिया” कहलाता है। बड़े तालाब के बीच में स्थित तकिया टापू अली शाह का ही टापू था!
१७९६ में फ़ैज़ मोहम्मद ने इस्लामनगर (पुराना नाम – जगदीशपुर) को भोपाल की राजधानी बनाया!
१८१३ में भोपाल की प्रसिद्ध घेराबंदी हुई थी, जिसमें मराठों ने ९ महीने तक भोपाल को चारों तरफ़ से घेर रखा था!
इस घेराबंदी को तुड़वाने में भोपाल के एक किन्नर “मस्तान शाह” ने बड़ी सहायता की थी!
“सदर मंज़िल” इसी मस्तान शाह के सम्मान में बनी है! सदर मंज़िल के दरवाज़े पर ही मस्तान शाह की मज़ार है।
फ़्रांस की क्रांति के बहुत पहले भोपाल में १८१३ में मराठों के विरुद्ध युद्ध का संचालन महिलाओं ने किया था! जो अपने आप में एक अनोखी घटना थी!
“शीरमाल रोटी” भोपाल में ही ईज़ाद हुई थी! असल में भोपाल में ५०० लोगों का एक फ़्राँसीसी समूह आकर रहने लगा था!
इनकी ब्रेड ही भोपाल के कल्चर से मिलकर “शीरमाल रोटी” बन गयी!
फ्रांसीसी लोगों जैसी हैं हमारी आदतें १८वीं शताब्दी में भोपाल आकर बस गए ‘बौरबन’ नामक फ़्राँसीसी समूह की आदतों का भोपाल के लोगों पर बड़ा असर पड़ा!
पूरा भोपाल मानों उनकी आदतों को अपनाने लगा! इसलिए भोपाल में लोग शाम को जल्दी खाना खाकर बाहर टहलने जाते हैं!
गुलाबी उर्दू व गोंडी भाषा का मिश्रण है- भोपाली भाषा!
१८१३ की घेराबंदी में भोपाल को बचाने वाले वज़ीर मोहम्मद ख़ान व भोपाल के नवाब ग़ौस मोहम्मद ख़ान के बीच एक समझौता हुआ! इसी समझौते के द्वारा भोपाल में बेगमों का शासन शुरू हुआ!
१८१९ में भोपाल की पहली बेगम ने शासन संभाला! नाम था क़ुदेसिया बेगम!
यह इंग्लैंड में विक्टोरिया के महारानी बनने के भी १५ वर्ष पहले की बात थी!
क़ुदेसिया बेगम की सुपुत्री “सिकंदर जहां” भोपाल की दूसरी बेगम थी!
इन्होंने १८५७ के विद्रोह में खुलकर अंग्रेजों का साथ दिया था, जिसके कारण झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से इनकी कहा-सुनी भी हो गयी थी!
सिकंदर बेगम ने अंग्रेज़ों से संधि करके उन्हें भोपाल के बाहर बसा दिया था! अंग्रेज़ जहां रहते थे उस जगह को ‘सी-४’ कहते थे।
इसी का नाम बिगड़ते-बिगड़ते सीहोर हो गया है!
पुराना पंप हाउस है, आजकल का सी एम हाउस। १८६४ में भोपाल के हर घर में पानी पहुँचाने के लिए एक योजना शुरू की गयी! विदेशी इंजीनियर्स की सहायता से एक पंप हाउस बनाया गया, और भोपाल के हर घर में २४ घंटे सप्लाई आरंभ की गयी!