सुसमाचारों के यीशु की प्रथम झाँकी मुझे 1956 ई. में मिली। मेरा एक जेसुईट मित्र, जिस ने मेरा धर्मांतरण करने की कोशिश की थी, वह अपने प्रयास में असफल हो चुका था। जब हम दोनों पुनः पटना के मिशन हेडक्वार्टर में थे तब हमारे बीच निम्न वार्तालाप हुआ।
“तुम मानते हो कि यीशु एक अवतार था?” उसने पूछा।
“हाँ, मैं मानता हूँ,” मैंनें उत्तर दिया।
“क्या अवतार झूठ बोल सकता है?”
“वह ऐसा नहीं बोल सकता।”
“यदि यीशु कहता है कि केवल वही एकमात्र परमेश्वर है तो?”
“वह ऐसा नहीं कह सकता।”
मेरे उस ईसाई मित्र ने न्यू टेस्टामेन्ट की एक कॉपी उठाई और सुसमाचारों में से कुछ वचन पढ़े। यीशु ने न केवल यह कहा था कि केवल वही एकमात्र परमेश्वर है, पर उसने यह भी कहा था कि जो लोग उसके इस दावे को स्वीकार नहीं करते वे हंमेशा के लिए नर्क की आग में जलते रहेंगे। तब मुझे दुःखद आश्चर्य के साथ प्रतित हुआ कि यीशु केवल ‘पर्वत पर उपदेश’ ही नहीं है, जैसा कि हमें यीशु के हिन्दू भक्तों द्वारा सीखाया जाता है।
बरसों बीत गए, और यीशु को पढ़ने के लिए मेरे पास समय नहीं था। जब राम स्वरूप ने मुझे [ईसाईमत और इस्लाम जैसी आक्रामक, साम्राज्यवादी] एकदेववादी विचारधाराओं के असली चरित्र के प्रति सजग किया, तब मैं 1980 के दसक में पुनः यीशु की ओर मुड़ा। मैंनें सुसमाचारों [बाईबल] का अध्ययन किया। मैं हक्का-बक्का रह गया। अब मुझे समझ में आया कि ईसाईयत का इतिहास ऐसा क्यों है। जहर का स्रोत सुसमाचारों के यीशु में था। मेरा अध्ययन चलता रहा।
कुछ साल पूर्व मैं एक गांधीवादी मित्र के साथ ईसाई मिशन रूपी समस्या पर चर्चा कर रहा था। वह मेरे साथ सहमत था कि यह एक समस्या तो है। मैंने उससे कहा कि ईसाई मिशनरी समस्या का हल करने के लिए हमें लोगों को यीशु की असलियत बतानी पड़ेगी। यह सुनकर वह हिल गया, और भावुक स्वर में मुझे कहने लगा, “सीताभाई, जीसस को कुछ मत कहिए!”
“आपने सुसमाचार पढे है?” मैंने उससे पूछा।
मुझ पर गुस्से होकर उसने कहा, “यह एक ‘व्यक्तिगत’ सवाल है।”
मुझे यह विषय बीच में ही छोड़ना पड़ा। जब भी मैं बात बात पर अपनी राय देने वाले हठधर्मी लोगों से किसी खास मुद्दे पर उनकी राय के स्रोत के बारे में पूछता हूँ, तब मुझ पर “व्यक्तिगत बनने” का दोष लगाया जाता है। मैं एक निबंध लिखने का विचार कर रहा हूँ— ‘गधा बनने के फायदे।’
(सीताराम गोयल एक राष्ट्रवादी लेखक रहे हैं जिन्होंने गंभीर शोध के बाद इस्लाम और इसाईयत के पाखंड को उजागर करने वाली कई पुस्तकें लिखी है)
(स्रोत: ‘Jesus Christ: An Artifice for Aggression’, पृ. V, संस्करण 1994, अनुवाद-प्रस्तुति: राजेश आर्य)