मैंने आज तक कुल मिला कर करीब १५० से भी अधिक साक्षात्कार लिए हैं, परन्तु इस विशेष साक्षात्कार के दौरान मुझे एक आंतरिक ख़ुशी मिलीl जब मैने शिकागो की संतोष कुलश्रेष्ठ कुमार जी का साक्षात्कार लिया तो मेरा मन इनके प्रति सम्मान और स्नेह से भर गया। मुझे लगा कि अभी तक मैं इनसे क्यों नहीं मिली? छोटी उम्र से ही इन्होने समाज सेवा करना प्रारम्भ कर दिया था। दूसरों का दुःख इनसे देखा नहीं जाता था और यह चल पड़तीं थीं उनको न्याय दिलाने। खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचना, अपने बहुमूल्य समय को जरूरतमंदों की सहायता करने में लगाना कोई आसान काम नहीं होता है। संतोष जी ने कभी पुरस्कारों और सम्मानों का नहीं सोचा। उनको तो बस यही धुन थी कि कैसे अपने प्रवासी भाई-बहनों के जीवन को अच्छा और आरामदायक बनाया जा सके और कैसे उनको सम्मान के साथ जीने की राह दिखाई जाये। कहते हैं न की, “मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया”। संतोष जी के साथ भी ऐसा ही हुआ। सिर्फ ५ क्लाइंट, ३ कार्यकर्ताओं और मन में एक सोच ले कर, संतोष जी ने लोगों की सहायता करने का सफर प्रारम्भ किया और आज लोगों के प्यार और आशीर्वाद से पूरे शिकागों में उनके १४ सेंटर हैं जिनमें ६ डे-केयर केंद्र, ३४० संतुष्ट वरिष्ठ क्लाइंट्स और होम केयर कार्यक्रम में ३००० क्लाइंट हैं और लगभग २५०० देखभाल करने वाले लोग हैं (यह ऐसे लोग हैं, जिनके पास कोई काम नहीं था)। ये जो लोग देखभाल कर रहे हैं, वह अपना काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं, इस बात का ध्यान रखने के लिए १५० अधिकारी हैं। इतना कुछ होने के बाद भी अभिमान का अंश मात्र भी आपको छू नहीं गया है, विनम्रता में आपकी मिसाल दी जा सकती है। इनका साक्षात्कार लेना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। संतोष जी से की गयी अन्तरंग बातचीत आप सबसे साझा कर रही हूँ।
रचना श्रीवास्तव की अन्य रिपोर्ट
संतोष जी, आप भारत में कहाँ से हैं और आपका बचपन कैसा था?
मेरा जन्म पहली फरवरी १९५० को भरतपुर राजस्थान में एक जमींदार परिवार में हुआ था। मेरी माता का नाम सत्यवती कुलश्रेष्ठा और पिता का नाम शम्भूदयाल कुलश्रेष्ठा है। मुझको मेरे पिता ने बहुत अच्छी शिक्षा दिलवाई। मैं आज जो कुछ भी हूँ या मैंने जो कुछ भी किया है, उसकी नींव तो बचपन में ही पड़ गयी थी। मेरे माता-पिता दोनों ही बहुत परोपकारी थे। वह दोनों, गाँव वालों और उनकी चीजों का (जैसे उनके गाय, भैंस और दूसरे जानवरों) का बहुत ध्यान रखते थे। मेरी माँ हमेशा कहतीं थीं “किसी की उपलब्धियों को इस बात से मापा जा सकता है कि उसने दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए क्या किया”? उनकी इस बात ने सामाजिक समानता और न्याय का बीज बचपन से ही मेरे अंदर बो दिया था।
आप अमेरिका कब और कैसे आयीं?
अपनी ११ सालों की वकालत की प्रैक्टिस और अध्यापन को छोड़ कर, प्रमोद कुमार जी से शादी कर के १९८५ में अमेरिका आ गयी थी।
विज्ञान से स्नातक करने के बाद आपका रुझान वकालत करने की ओर कैसे हुआ?
मैं डॉक्टर बनना चाहती थी, मेरी माँ के प्रभाव से, गाँधी जी और अब्राहिम लिंक की जीवनी के प्रति मेरे सम्मोहन और रुझान ने मेरे कैरियर को कानून व्यवसाय की तरफ मोड़ दिया। मैं कमजोर और असहाय औरतों को न्याय दिलाना चाहती थी। मैने मात्र २२ वर्ष की उम्र में LLB (१९७२) और LLM (१९७४) अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पूरा किया था। मैने क्रिमिनल डिफेन्स वकील की तरह अपनी प्रैक्टिस अलीगढ सेशन न्यायालय से प्रारम्भ की। अलीगढ के लॉ कॉलेज में प्रोफ़ेसर इन लॉ की तरह काम करना शुरू किया। १९७७ में जयपुर विश्वविद्यालय में वकालत पढ़ाने लगी तथा साथ में वकालत की प्रैक्टिस भी करनी शुरू कर दी थी।
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आप पिछले २५ सालों से लॉ की प्रैक्टिस कर रही है इस दौरान कोई ऐसी घटना जो आप हमारे साथ साझा करना चाहती हैं?
मेरी वकालत की प्रैक्टिस में बहुत सी घटनाएँ हुई। १९८५ में अमेरिका आने के बाद मैंने अपनी वकालत की प्रैक्टिस आप्रवासन (immigration) में जारी रखी। वरिष्ठ लोगों के बच्चे काम के लिए बाहर जाते थे और वृद्ध लोग घर में अकेले रह जाते थे। वह मेरे जीवन का निर्णायक मोड़ था। वरिष्ठ लोग घर में असहाय और अकेले रह जाते थे। उनको यहाँ की रसोई का प्रयोग करना भी ठीक से नहीं आता था और वे अपने बच्चों के आने तक भूखे रह जाते थे। मैंने देखा कि बहुत से और भी प्रवासी वरिष्ठ लोग यहाँ आकर उदास और अकेला जीवन जीते हैं। मैं बिखर गयी। इन लोगों को सहायता की कितनी जरूरत है, इस बात ने मुझको कई रातों तक सोने नहीं दिया। फिर मैने जरूरतमन्दों के लिए समय देना शुरू किया। जब मैंने ऐसा करना शुरू किया तो बहुत से और लोग भी मेरी सहायता करने के लिए आगे आये। परिवार, काम और स्वैक्षिक सहायता, सभी का दायित्व निभाते हुए मैं बहुत थक जाती थी परन्तु मैने अपने समाज के लिए काम करना नहीं छोड़ा।
लोगों की सेवा करना बचपन से ही मेरे स्वभाव में शामिल था। इसी कारण जब मैं प्रैक्टिस कर रही थी तो कुछ ऐसे प्रवासी मिले जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। उनको आप्रवासन (immigration) का फॉर्म भरना नहीं आता था। अपने खाली समय में, मैंने बिना फीस लिए उनकी सहायता की। लोगों ने यह बात एक दूसरों को बताई और बहुत से लोग मेरे पास आने लगे। इसी दौरान मैने भारतीय और उपमहाद्वीप के शिक्षित और अशिक्षित प्रवासियों की गंभीर स्थिति को देखा। लोग बहुत कुछ सह रहे थे, अपनी बात ठीक से न कह पाने के कारण, कम्प्यूटर का तथा दफ्तर के साधारण उपकरणों का प्रयोग न आने के कारण, उनको कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही थी। कुछ लोगों को बहुत छोटी नौकरी स्वीकार करनी पढ़ती थी और कठिन शिफ्ट में काम करना पड़ता था। जिसके कारण बच्चों और बुजुर्गों को घर में अकेला छोड़ना पड़ता था।
जब आप भारत में थीं तभी से आप उन महिलाओं की आवाज़ बनी, जिनको समाज और उनके अपनों के द्वारा प्रताड़ित किया जाता था। आपने ऐसा करना क्यों और कैसे शुरू किया?
जब मैं अपनी वकालत कर रही थी, उसी दौरान मैंने देखा कि बच्चों और महिलाओं के साथ बहुत अन्याय हो रहा है। महिलाओं के साथ उनके अपने गांवों में भी न्याय नहीं होता था। मैंने इस तरह हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज उठायी और भारतीय न्यायिक व्यवस्था में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हुए। मेरे लीगल सोशल ग्रुप के मजबूत बहस के कारण भारत सरकार ने धारा १२५ क्रिमिनल प्रोसीजर कोड को लागू किया जिसके अंतर्गत माँ/पिता, पत्नी तथा बच्चों को रख रखाव के लिए खर्च दिया जायेगा। मैं बेज़ुबान औरतों की आवाज बनी और उनके लिए न्यायिक लड़ाई लड़ी, जिनको अपने जीवन साथी, माता पिता या सास श्वसुर के द्वारा सताया गया था।
मैंने देखा कि बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं उनकी शिक्षा रुक गयी है। मैंने अपने परबाबा/परदादी के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए, राजस्थान में इन बच्चों के लिए स्कूल खोला। मैंने राजस्थान के विश्वविद्यालय की एक परियोजना के अन्तर्गत, गरीब महिलाओं को खुद उनके पैरों पर खड़ी होने में तथा आत्मनिर्भर होने में सहायता की। मैंने बहुत से छोटे-छोटे उद्योग प्रारम्भ किये जैसे पापड़ और अचार बनाना। मैने राजस्थान के दूर दराज़ के क्षेत्रों में हस्तशिल्प उद्योग लगाया, जिसमें हाथ की कढ़ाई तथा हाथ से बनी चीजों को बनाया जाता था और इनको बिकवाने के लिए भी सहायता की।
आदिवासियों तथा मध्यप्रदेश की पिछड़ी जातियों के लिए किये गये मेरे काम को बहुत सराहना मिली और इसके लिए मुझे मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री श्री श्याम चरण शुक्ला के द्वारा सम्मान मिला। जयपुर राजस्थान के मुख्य मंत्री श्री हरिदेव जोशी जी के करकमलों द्वारा मेरे समाज सेवा के लिए मुझको पुरस्कार मिला। मैंने भारत में जयपुर में “शक्ति” तथा उत्तर प्रदेश में महिलाओं के लिए सामाजिक कल्याण संगठन बनाया है। मैने अन्तर्जातीय और अंतरधर्म विवाह से उत्पन्न समस्यायों के लिए काम किया। हर साल मैं भारत जाती हूँ और गरीब बच्चियों की सामूहिक शादी करवाती हूँ तथा कुलश्रेष्ठ कल्याण समिति के तहत विधवाओं की सहायता के लिए अनुदान देती हूँ। प्रतिभाशाली बच्चों को आगे पढ़ने के लिए छात्रवृति प्रदान करती हूँ। अभी २०२० में मैंने जम्मू की साइंस एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलोजी में १० लाख अक्षयनिधि (Endowment) के रूप में दिए हैं।
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अमेरिका में आपने “मेट्रोपॉलिटन एशियन फैमिली सर्विसेज” नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्था का जन्म कैसे हुआ?
१९८५ में अमेरिका आने के बाद जैसा कि मेरा स्वभाव है, लोगों की मदद करना, इसी अभिलाषा के तहत मुझे एक संगठन शुरु करना था। इस संगठन को प्रारम्भ करने में मुझको बहुत सी समस्यायों का सामना करना पड़ा। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, प्रवासियों की सहायता करने के लिए मैने बहुत से नेताओं और कांग्रेस मैन तक अपनी बात पहुँचायी।
“Coalition of Limited English-Speaking Elderly” संस्था के साथ गठबंधन कर के स्वास्थ्य जांच करने की योजना आरम्भ की, जिसको Suburban area agency on aging ने आर्थिक सहायता प्रदान की। मैंने उस समय साउथ एशियन वरिष्ठ लोगों की स्वास्थ्य जांच करने के लिए दो आयोजन किये गए। एक आयोजन, Skokie की संस्था Rush North Medical Center में किया गया और दूसरा North West Community Hospital Arlington, Schaumburg के Heights Park Districts Senior Center में किया गया। दोनों आयोजनों में स्वास्थ्य और पोषण पर चर्चा की गई थी। यह दोनों आयोजन बहुत सफल रहे। इसकी सफलता के कारण मुझे अमेरिकन असोशिएशन ऑफ़ रिटायर्ड पर्सन ने समाज सेवा के लिए पुरस्कृत किया।
मैंने अकेले अपना सपना Des Plaines, IL के एक छोटे से ऑफिस से शुरू किया था। उस समय मेरे पास किसी भी तरह की कोई मदद नहीं थी। मेरे काम की चर्चा हुई और धीरे-धीरे लोग सहायता मांगने के लिए मेरे पास आने लगे। इन सभी की सहायता अच्छी तरह से कर सकूँ, इसलिए मैने 1993 में यूनिवर्सल मेट्रो एशियन सर्विसेज (UMAS) (www.umasinc.com) और मेट्रोपोलिटन एशियन फॅमिली सर्विसेज (Metropolitan Asian Family Services- MAFS; www.mafsinc.com) की स्थापना की। ये दोनों ही नॉन प्रॉफिट संस्थाएं हैं। इन दोनों संस्थाओं की स्थापना शिकागो के Illinois Department of Aging के अनुबन्ध से हई थी। यहाँ पर मैं यह कह सकती हूँ कि मैने अपने काम की पुनः शुरुआत की।
प्रारम्भ में मैने ५ मुक़दमे लिए, उस समय मेरे पास मात्र ३ लोग काम करने वाले लोग थे। धीरे-धीरे काम बढ़ता गया। जैसे-जैसे काम बढ़ा, मैंने अपना स्टाफ बढ़ाया। इसके बाद शिकागो में मैंने इन संस्थाओं की एक और शाखा खोली। यह एक बहुत महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि मैंने हाथ से किये जा रहे सारे कामों को (मैन्युअल) इलेक्ट्रॉनिक में बदल दिया। मैंने हमेशा यह माना है की पढ़ाई सफलता की कुंजी है। जब मैने देखा कि प्रवासी लोग प्रौद्योगिकी (technology) की जानकारी नहीं रखते हैं तो मैने उनकी सहायता के लिए संगणक (कंप्यूटर) प्रशिक्षण का कार्यक्रम प्रारम्भ किया। कुछ सहृदय लोगों ने इस योजना के लिए १४ संगणक (कम्प्यूटर्स) दिए और ७ संगणक (कम्प्यूटर्स) हमने ख़रीदे। यह कार्यक्रम बहुत सराहा गया और लगभग २०० लोगों ने इस को ज्वाइन किया। इस योजना से शिक्षा प्राप्त कर के बहुत से लोगों की नौकरी लग गयी। यह मेरे लिए बहुत ही बड़ा पारितोषिक था। धीरे-धीरे मेरी संस्था बढ़ने लगी और अब शिकागो में इसकी १४ शाखाएं हैं। मुझको Community Economic Development Association से कॉन्ट्रेक्ट मिला, जिससे मैंने कम आय या वेतन पाने वालों की यूटिलिटी बिल को चुकाने में सहायता किया। Chicago Department of Human Services ने इस संस्था को पहचान दी तथा मुझको आयुक्त (Commissioner) के द्वारा प्रशंसा का प्रमाणपत्र दे कर सम्मानित किया गया। इसी वर्ष मैं Coalition of Limited English-Speaking Elderly संस्था के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स (Board of Directors) की सदय भी बनी। साऊथ एशियन कम्युनिटी केयर कार्यक्रम (South Asian Community, Community Care Program (In-Home Services), इसके आलावा Bosnian community में भी फैल गया। इसके लिए मैने इस संस्था में Bosnian बोलने वाले लोगों को भर्ती किया।
जैसा की अभी आपने बताया कि यह संस्था बहुत से अलग-अलग कार्य करती है। अपने लक्ष्य को पाने में यह संस्था कितनी सफल है ?
मेरी संस्था ने बहुत से लोगों की सहायता की जिनको अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं था। मेरी संस्था ने हर साल १५०० से अधिक लोगों की सरकार के द्वारा चलाये जाने वाले Public Benefit Programs से लाभ लेने में सहायता की। ऐसे कुछ कार्यक्रमों के नाम हैं -टी Clip (Targeted to Culturally and linguistically Isolated Person), LIHEAP (Low Income Home Energy Assistance Program), SNAP (Supplemental Nutrition Assistance Program), SHIP (Senior Health Insurance Plan), ACA (Affordable Care Act– Obama Care), Immigration/N-400 Forms and SAHELI program. SAHELI कार्यक्रम के अंतर्गत हमारी संस्था ने नॉर्थ वेस्ट फेनबर्ग स्कूल ऑफ़ मेडिसिन (North West Feinberg school of medicine) साथ मिल कर (जो १५ साल से अनुसन्धान में लगा हुआ है, जिसमें साऊथ एशियन लोगों के हृदय रोग और मधुमेह पर अनुसन्धान किया जा रहा है) काम किया। एक और हमारा कार्यक्रम है, Congregate Meal (हॉट लंच).
अपने कार्यक्रमों के द्वारा हमने गरीब लोगों के यूटिलिटी बिल्स को चुकाने में सहायता की और SNAP कार्यक्रम के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को खाना प्रदान किया गया। मैं मानती हूँ कि सुखी और स्वस्थ परिवार ही एक मजबूत देश का निर्माण करता है। इस संस्था ने बहुत सारे बुज़ुर्गों को Medicare और Medicaid से बीमा दिलवाया जिनके पास बीमा नहीं था। हमने अपने स्टाफ को सिखाया है कि किस तरह से N-400, US citizenship, OCI form, और 130 फॉर्म को भरा जाये। जिन लोगों को पढ़ना लिखना नहीं आता है इस काम से उनको बहुत सहायता मिलती है। इन कामों की मैं कोई भी फीस नहीं लेती हूँ। मेरा स्टाफ लोगों को आप्रवासन दफ्तर जाने में उनको सहायता करता है। जिससे उनको वीसा मिलने में आसानी होती है। मेरी संस्था (MAFS) ने सोसल सिक्योरिटी चेक्स और Supplemental Security Income पाने में भी सहायता की है। इन कामों के कारण बहुत सारे लोग हमारे दफ्तर के खुलने से पहले ही आते हैं और पंक्तियों में खड़े रहते हैं।
इसके अलावा मैं देखती हूँ कि जो एडल्ट डे सेंटर और इन होम केयर सर्विसेज का इस्तेमाल कर रहें हैं उनकी देखभाल ठीक से हो रही है की नहीं, उनका आदर हो रहा है या नहीं। यह एडल्ट डे सेंटर ५०० से ज्यादा लोगों की सहायता करता है l यह सेंटर इस बात पर जोर देता है कि उनकी संस्कृति, भाषा और खाने का विशेष ध्यान रखा जाये। अपने घर के अकेलेपन को भूलने के लिए, जब उनके बच्चे काम पर चले जाते हैं, वह लोग सेंटर पर आते हैं दूसरों से बातें करते हैं,पत्ते खेलते हैं और कसरत करते हैं। यह सेंटर उनके बीते दिनों को वापस लाता है। इन होम केयर सर्विसेज में ३१०० लोगों की सहायता की है। हमारे स्टाफ के द्वारा उनकी देखभाल बहुत ही अच्छे तरीके से होती है। साथ ही साथ हम उनके परिवार वालों को भी सिखाते हैं कि किस तरह से उनकी देखभाल की जाये। हमारा साक्षरता कार्यक्रम प्रवासियों और वृद्धों को अंग्रेजी सिखाता है ताकि वह अपने पोते पोतियों से बात कर सकें, सामान ला सकें, डॉक्टर के दफ्तर में अकेले जा सकें और फॉर्म भर सकें। हमारा एक और कार्यक्रम है “Memory Café” जिसके अंतर्गत जो लोग डेमेंशिया (भूलने की बीमारी) से गुजर रहे हैं, हम उनको थेराप्यूटिक व्यायाम देते हैं, जिससे उनकी हालत में सुधार होता है और इसमें हम उनके परिवार के लोगों को भी शामिल करते हैं, जिससे इन बीमार लोगों को हौसला मिलता है। हमने Niles, Chicago और Schaumburg जगहों से “Tent Outreach” शुरू किया है जिससे आप्रवासन (Immigration) और नागरिकता (Citizenship) में सहायता हुयी है। हमने हाल ही में हिन्दी और संस्कृत की कक्षा भी शुरू की है जिसमें लोगों ने दिलचस्पी दिखाना शुरू किया है।
आप यूनिवर्सल मेट्रो एशियन सर्विसेज की एक्सिक्यूटिव डायरेक्टर (कार्यकारी निर्देशिका) हैं। कृपया बताइये कि यह संस्था क्या कार्य करती है ?
मेरी संस्था UNIVERSAL METRO ASIAN SERVICES (UMAS), शिकागो में वरिष्ठ डे केयर और घर में लोगों का ध्यान रखने का कार्य बहुत सालों से कर रही है। हमारा लक्ष्य है कि हम भारत और उसके उपमहाद्वीप, लैटिन अमेरिकन और यूरोप से आये प्रवासियों की सेवा कर सकें। पिछले ३० सालों से साऊथ एशियन प्रवासियों की आवश्यकताओं को हम पूरा कर रहे हैं। हमारा Adult Day Care Center, हमारे बुजुर्गों को बहुत सी मनोरंजक कार्यकलापों में मशरूफ रखता है। हम इन लोगों को नाश्ता, दिन का गर्म खाना और स्नैक उपलब्ध करवाते हैं। सेण्टर पर प्रशिक्षित नर्सों के द्वारा देख भाल की सुविधा उपलब्ध है तथा यहाँ पर योग फिटनेस का सत्र, सेहत शिक्षा, सेमिनार और मनोरंजन की गतिविधियां होती रहती हैं। हमारे यहाँ घर से सेंटर तथा सेंटर से घर ले जाने के लिए परिवहन की सुविधा उपलब्ध है। हमारे सेन्टर पर ३४० संतुष्ट वरिष्ठ क्लाइंट्स हैं और पूरे शिकागो में ६ डे-केयर सेण्टर हैं। होम केयर कार्यक्रम के अंतर्गत हम बुज़ुर्गों को उनके अपने ही घर में स्वतंत्रता और ख़ुशी से रहने में उनकी सहायता करते हैं। हमारे देखभाल से लोग घर के कामों में उनकी मदद करते हैं जैसे खाना बनाने, सामान लाने में इत्यादि। हमारे पास २९०० क्लाइंट हैं और २५०० देखभाल करने वाले लोग हैं।
आपने भारत में बहुत से विद्यालय खोले हैं, इनको स्थापित करने में और चलाने में क्या किसी तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
जैसा कि मैने पहले बताया है कि मैं ज़मींदार परिवार से ताल्लुक रखती हूँ तो मेरे परबाबा के द्वारा स्कूल पहले से ही खोले गए थे, मैंने उसमें कुछ नयीं कक्षाएँ खोलीं, ईमारत बनवायी, किताबें ले कर आयीं और पुस्तकालय खोला। मेरे सास-श्वसुर, स्कूल और विश्वविद्यालय खोलने में बहुत ही नामी लोग थे। मेरे पति के परबाबा स्वर्गीय राय बहादुर रोशनलाल जी के प्रयासों के कारण आगरा विश्वविद्यालय और आगरा का सेंट जोन्स कॉलेज खुला था और इन्होने ही बरहन, आगरा में लड़कियों का इण्टर कॉलेज खोला था। मैंने और मेरे पति ने प्रतिभावान बच्चों को चिकित्सक और अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) की पढ़ाई के लिए छात्रवृति प्रदान की।
आपने इतनी संस्थाएं खोली हैं और लोगों की सहायता की है और कर भी रहीं है, तो सामाजिक कार्य और गृहस्थी के बीच में आपने सामंजस्य कैसे बिठाया? समय कैसे मिला हर काम के लिए?
इसका श्रेय मैं अपने पति को देती हूँ जिन्होंने समाज सेवा करने के लिए मेरा समय और ऊर्जा लगाने के लिए मुझे पूरी स्वतंत्रता दी। मैं उस समय दो छोटे बच्चों (६ और ७ साल) की माँ थी और व्यापर का घर था, जिसके चलते व्यापर में हमारे सहयोगी, कभी हफ्ते और कभी महीनों के लिए भारत से आते रहते थे। प्रपोजल और रिपोर्ट, अंतिम तारीख तक तैयार करने के लिए मैं १६ से १८ घंटे तक काम करती थी।
आज पूरी दुनिया कोविड की महामारी से जूझ रही है? ऐसे में लोगों की सहायता करना कितना कठिन है?
आज पूरी दुनिया इस महामारी से जूझ रही है। मार्च १८, २०२० को UMAS Adult Day Service (UADS) centers को इलिनोइस स्टेट के निर्देश पर बंद कर दिया गया था पर हमने अपने क्लाइंट को भुलाया नहीं। उनसे अपना सम्पर्क बनाये रखा और प्रतिदिन उनको स्वास्थवर्धक खाना पहुंचाते रहे। नर्स लोग फ़ोन पर सभी का हाल चल पूछ कर उनका चेकअप करती रहीं। प्रबंधक और दफ्तर के मुलाज़िम, ज़ूम पर प्रत्येक केन्द्र के लोगों से अपना सम्पर्क बनाये हुए हैं। अपने क्लाइंट्स के लिए हम ज़ूम या वाट्सएप्प विडिओ कॉल पर ही विभिन्न तरह के कार्यक्रम करवाते रहते हैं जैसे प्रार्थना, कहानियां सुनाना, याददाश्त का खेल, बिन्गो, दिल से बातें, चुटकुले सुनाना, खाना बनाने की तरकीबें बताना इत्यादि।
एजेंसी के कार्यकर्ताओं ने संस्था के सदस्यों को ज़ूम पर कैसे जुड़ा जाये, ये बताया और सिखाया। हमारे सारे सदस्य ज़ूम पर जुड़ कर बहुत प्रसन्न होते हैं। जो सदस्य ज़ूम और व्हाट्सएप्प पर जुड़ नहीं सकते थे, हमारे कार्यकर्त्ता प्रतिदिन उनसे फोन पर बातें करते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि वो ठीक हैं। UMAS ने इस कठिन समय में भी लोगों की उम्मीदों को कायम रखा है। हमको यह बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि हमने करीब ६२००० भोजन का वितरण किया है। हमने पूरी सावधानी के साथ और प्रदेश के द्वारा जारी निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए ऐसा किया है।
http://hindimedia.in/ के पाठकों को आप क्या कहना चाहेंगी ?
हिन्दी मीडिया पढ़ने वालों को मैं बस यही कहना चाहुँगी कि हिन्दी में पढ़िए और अपने बच्चों को हिन्दी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित कीजिये। जीवन में चाहे जितनी भी भाषाएं सीखिए या जानिए परन्तु हर घर में हिन्दी का प्रचार कीजिये, हिन्दी हमारी भाषा, हमारी आत्मा, हमारी संस्कृति और हमारा संकल्प है।
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(रचना श्रीवास्तव अमरीका में रहती हैं व वहाँ रहने वाले भारतीयों के बारे में व भारतीय समाज द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के बारे में नियमित रूप से लिखती है)