मित्रों ! मंहगा प्याज हर युग में, बिना धर्म की हानि हुए, अवतरित होता रहा है। सन् 2003 में मैंने अपनी व्यंग्य रचना ‘ सुन बे प्याज’ में एक आरती लिखी थी।
प्याज प्रभु की हम पर कृपा बनी रहे इसके लिए मेरा परिवार रोज शाम यह आरती गाता है।
ओइम जय प्याज हरे , हरे हरे प्याज हरे ।
लाल लाल प्याज हरे , छोटे बड़े प्याज हरे ।
विरोधी दल के तुम रक्षक, तुम मुद्दा कर्ता।
सत्ताधारी की चिंता, स्टोरियों के भरता ।
ओइम जै प्याज हरे
तुम बिन चिकन न बनता तड़का न लग पाता ।
सलाद सूना रह जाता , स्वाद बिगड़ जाता ।
ओइम जै प्याज हरे ….
तुम सब्जियों के स्वामी , तुम इज्जत रखता ।
अपने दरस दिखावो , द्वार पड़ा मैं तेरे ।
ओइम जै प्याज हरे ….
तुम बिन पार्टी न होती , ब्याह न हो पाता ।
कितना जोर लगा ले ,खाने मे मजा नहीं आता।
ओइम जै प्याज हरे ….
प्याज जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत प्रेमानंद स्वामी मनवांछित प्याज पावे ।
ओइम जै प्याज हरे ….