घटना नासिक के भद्र काली मंदिर की है। यहाँ राम जन्मभूमि के लिए निधि समर्पण के कार्यालय का उद्घाटन कार्यक्रम था। ये मंदिर गाँव में है जहाँ कुछ पेड़ियाँ चढ़ कर दर्शन के लिए जाना होता है। यहाँ कार्यालय हो, ये कार्यकर्ताओं की इच्छा थी। त्यौहार, महोत्सव आदि अवसर पर यहाँ काफ़ी भीड़भाड़ रहती है , सामान्य दिनों में ज्यादा लोग नही रहते।
कार्यालय का उद्घाटन कार्यक्रम सम्पन्न होने पर कार्यकर्ता समेट व्यवस्था में लगे हुए थे। तभी वहाँ लगभग 80 वर्ष के आयु वाली एक दादीमाँ आयी, वहाँ आकर पूछताछ करने लगी- “आप लोग राम मंदिर के लिए समर्पण निधि इकट्ठी कर रहे हैं न?” उत्तर मिला- ” जीहाँ , दादीमाँ” उनका अगला प्रश्न था- ” आप में से संघ के कार्यकर्ता कौन – कौन हैं?” वहाँ जो 4/5 कार्यकर्ता खड़े थे, इस प्रश्न पर सभी चोंक कर बोले- “हम सभी संघ के कार्यकर्ता हैं।” ये सुन कर उस 80 वर्ष की दादीमाँ ने अपने पोते- पड़पोते की आयु के स्वयंसेवकों के पैर छूकर उन्हें प्रणाम किया। ये सब इतना अचानक हुआ कि सारे स्वयंसेवक हतप्रभ होकर रह गए। सावधान होकर सबने एक स्वर में दादीमाँ से पूछा- “आप ये क्या कर रही हैं? ” दादी अम्मा शुक्ल नानी के नाम से जानी जाती है। उनका पूरा नाम है श्रीमती शैलजा मार्तंड शुक्ल।
स्वयंसेवकों के कौतूहल भरे सवाल का जवाब देंते हुए दादीमाँ बोली- “अरे बच्चों , मेरे पिताजी संघ के स्वयंसेवक थे। डॉक्टर जी, गुरुजी हमारे घर आया करते थे, मेरे ससुर भी संघ में जाते थे, श्री गुरुजी तो हमेशा हमारे घर आया करते थे। मैंने अपना प्रणाम आपके माध्यम से उन महान विभूतियों को किया है।”
आगे दादीमाँ ने कहा- “आप समर्पण निधि एकत्रित कर रहें हैं, मैं भी मंदिर निर्माण के लिए कुछ समर्पण करना चाहती हूँ।” अपनी बात आगे बढ़ाते हुए दादी ने कहा-“मुझे, मेरे पतिदेव की आधी पेंशन हर माह सोला हजार रुपये मिलती है, मैं अपनी एक माह की पेंशन रु.16,000/- दे सकती हूँ। ”
दादी की भावनाओं को समझ कर सारे कार्यकर्ता उनसे चर्चा कर पूछताछ करने लगे- ” दादी माँ ये अच्छी बात है।”
चर्चा के आगे बढ़ते ही दादी माँ का भाव परिवर्तन हुआ वो कहने लगी- “मैं अपने दो माह की पेंशन बत्तीस हजार रुपयों का समर्पण कर सकतीं हूँ।” तब कार्यकर्ता बोले – ” दादी माँ, ये तो बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन हम 2000 रुपये से ऊपर की राशि चैक से ले रहे हैं, आप के पास चैक बुक है न? हम सब आपके घर चलते हैं। ”
सभी स्वयंसेवक, दादीमाँ के घर पहुँचे। दादी यहाँ अकेले रहती है। दादी ने सबको चाय बनाकर पिलाई। उनका घर पुराना बना हुआ, एकदम साधारण सा था। दादीमाँ की दो बेटियाँ है जिनका विवाह हो चुका है।
चर्चाएँ चल पड़ी, दादी ने अपनी पुरानी यादों की गठरी को खोलते हुए अपने बैंक के कागजों की थैली बाहर निकाली। ऐसा लग रहा था कि वो अपनी चैकबुक में राशि भर कर अपने हस्ताक्षर करने जा रही है। उन कागज़ों में दादी को एक FD दिखाई पड़ी,उसे पढ़कर दादी ने अपनी चैकबुक एक कार्यकर्ता की ओर बढ़ाकर कहा-” चैक पर लिखो श्री राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र।” कार्यकर्ता ने दादी का कहा लिखा फिर पूछा दादीमाँ राशि कितनी डालना है? दादी ने कहा- *”राशि लिखो दो लाख।”
सारे कार्यकर्ता एक दूसरे की ओर देखते रह गये।
(मूल मराठी आलेख- डॉ राजेश नाशिककर, हिंदी अनुवाद – गिरीश जोशी)