लाखों लोगों के हाथों में सम्मान से राष्ट्रीय ध्वज था। सिर्फ एक व्यक्ति ने उसका अपमान किया है। उसे यही षड़यंत्र करने ही किसी ने भेजा होगा। उसने ऐसा करके अपना स्वयं, राष्ट्रीय ध्वज और देश का अपमान किया है। किसान आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास किया है। अराजक तत्वों ने किसान परेड़ में घुसकर किसान आंदोलन को भी बदनाम करने हेतु यह कुकृत्य किया है। वे भी स्वयं ही बदनाम होंगे। एक किसान की मृत्यु दुखदः है। हिंसा करके, अफवाहें फैलाने का प्रयास भी सफल नहीं हुआ।
लाखों टै्रक्टर दिल्ली की सड़को पर आये। बड़ी संख्या में किसान विविध प्रकार से गणतंत्र दिवस मनाने हेतु दिल्ली में जुटे। यह हमारे लोकतंत्र की बहुत बड़ी सफलता है। लाखों किसानों ने सम्मान के साथ अपने हाथों से राष्ट्रीय ध्वज अपने गणतंत्र पर फहराया है। जिस किसी ने इसे अपमानित किया है, उसे उसकी सजा मिलनी चाहिए। वे आंशिक सफल हुए क्योंकि मेरे सहित कुछ लोगों पर इस घटना का दुष्प्रभाव पड़ा है। वे कुछ लोग अभी आंदोलन से अपने घर चले गए है। घरों से दोबारा आंदोलन की तरफ मुड़ेंगे। इस घटना से किसान संगठनों की शक्ति क्षणिक कम दिखेगी। इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। अपने लक्ष्य को पूरा होने तक डटे रहना है।
जल्दी से ही इस षड़यंत्र का पता भी चल गया है। वह कौन था? क्यों वहाँ गया था? उसका उद्देश्य क्या था? सभी कुछ धीरे-धीरे खुल रहा है। इस व्यक्ति से किसानों के संगठनों का अलग करना ठीक है। लेकिन इसका और अधिक खुलासा कराने की जरूरत है। समाज, सरकार, किसान आंदोलन से जुड़े संगठन सत्य को सामने लेकर आयें। उसी में भारत के गणतंत्र की सफलता होगी।
व्यक्ति को ध्वज अपमान करने की प्रेरणा कहाँ से आयी? देश जानने का इच्छुक है। पुलिस के पीछे टै्रक्टर दौड़ाने और पुलिस पर लाठी चलाने वाले कौन है? इन सभी सवालों का जबाव तथा तलवार से एक ही सिपाही को चोट क्यों मारी। इसके बाद तलवार उसने दूसरों पर क्यों नहीं चलाई? किसानों की इतनी बड़ी भीड़ आयी और शांति से वापस कैसे लौटें? एक किसान ही क्यों मरा है? मारने का आरोप जिस पर है, वहीं क्यों मरा?
दीप सिद्धू और लख्खा, किसान आंदोलन के दुश्मन है। यह बात किसान आंदोलन का नेतृत्व स्पष्ट रूप में बोल रहा है। धार्मिक उन्माद कोई भी करे? भारतीय संविधान के विरूद्ध काम करने वालों को उनकी गलती का अहसास और आभास कराना ही चाहिए। यह उसे दण्डित करने से ही होगा। अपराधी दंडित होना ही चाहिए।
संविधान के विरूद्ध काम करने वाले केवल खालसा और गुरूगोविन्द सिंह जी का नाम ही ले रहे थे। अच्छी बात यह हुई कि उन्होंने किसी किसान नेता या किसान संघर्ष मोर्चा को बदनाम नहीं किया है। कुछ युवाओं का धार्मिक उन्माद इस परेड़ में क्षणिक ही दिखाई दे रहा था। लाल किला भारत की आजादी से गहरा संबंध रखता है। इसका भी रखरखाव अब एक निजी कम्पनी के हाथ में है। सरकार अपने हाथों में रखती तो शायद ऐसी दुर्घटना नहीं होती । अब सरकार सभी कुछ कम्पनियों को ही सम्भला रही है।
किसान आंदोलन को ऐसी इस दुर्घटना का अहसास नही था। क्योंकि इसके सभी स्वयं सेवक आंदोलन साथियों ने सरकार के साथ परेड़ के समझौते पर सर्वसम्मती बनाई थी। इसका अंन्तर विरोध नही था। विरोध होता तो इस बड़ी घटना का कुछ अंदाज लगाकर किसान मोर्चा अपने परेड़ कार्यक्रम को रदद् भी कर सकता था। यह फिर किसान आंदोलन को भुगतना नहीं पड़ता। हिंसा कराने वालों ने अहिंसा व भारतीय अस्मिता पर चोट कर दी है। इसका खामियाजा-आरोप तो किसान संगठनों पर लगाना अच्छा नहीं है। चोट लगाकर लोगों में फूट डाल दी है।
किसान संघर्ष मोर्चा ने संयुक्त रूप से हिंसा का विरोध सर्वसम्मति से किया है। आज तक इतनी बड़ी भीड़ अहिंसक बनी रही है। ऐसी भारतीय भीड़ अचानक हिंसा का काम नहीं करती है। हिंसा कार्य सोची-समझी बड़ी साजिश का हिस्सा ही होती है। यह भारत गणतंत्र के साथ साजिश ही है। अब धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहा है। मैं तब लोकतांत्रिक भाषा में सत्य को स्वीकार करूँगा, जब भारत का समाज और सरकार दोनों इसे सत्य मानेंगे। तभी मैं भी सत्यमान जाऊँगा। मैं अभी सत्य नहीं मान रहा हूँ। जब यह साजिश सिद्ध होगी, तब तक सत्य की खोज में आंदोलनकारियों को भी लगना ही होगा।
इस परेड़ से पहले मुझे कुछ और भयानक दुर्घटनाओं का डर था। जैसे आपस में टै्रक्टर भिडंत होकर लोग मरेंगे, लूट-पाट हो सकती है। यह बिल्कुल नहीं हुआ। मैं इस रूप में किसान परेड़ को भी भयानक भीड़ में लोगों को सकुशल घर लौटना मानता हूँ। इसके लिए किसानों को अभी बधाई नहीं देता हूँ।
लाल किला की घटना को पहले से किसान समझ लेते और धार्मिक उन्माद करने वाले दीप सिन्धु और लख्खा को पुलिस के साथ मारपीट और लाल किले पर उन्हें नहीं जाने देते। वैसे यह काम भारत सरकार के गुप्तचर विभाग और ढेर सारे सरकारी विभागों का है कि, वे टै्रक्टर को केवल उन्हीं रास्तों पर चलने देते जिन पर चलने की स्वीकृति थी। इस घटना की शुरूआत से ही सरकार को सतर्क होकर लाल किले पर उपद्रवियों-अराजक तत्वों को न पहुँचने देते। पुलिस ने उन्हें ही जाने दिया, जिन्हें वे चाहते थे। बाद में जिन्हें नहीं चाहते थे, उन पर लाठी, गैस सभी प्रकार से मार कर दी। उन्हें नहीं जाने दिया। रोक दिया है। यह सरकारी चूक भी है।
सभी किसान नेताओं को पूर्ण विश्वास था कि, उनका अपना कोई भी किसान संगठन हिंसा का कोई काम नहीं करेगा। ऐसा काम संयुक्त किसान मोर्चा के निर्णय के विपरीत होगा। संयुक्त किसान मोर्चा अभी तक सर्वसम्मती से निर्णय लेकर इस आंदोलन को चला रहा है। इसलिए यह आंदोलन अपने सत्य पर अडिग है। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अहिंसामय रास्ते पर ही चलेगा। यह इस आंदोलन की पिछली दो महिनों का निर्णय और व्यवहार सिद्ध कर रहा है। इसलिए लाल किले की घटना धार्मिक उन्माद की उपज है। यह किसानों के सत्याग्रह की प्रक्रिया के विपरीत है।
अहिंसामय आजादी का आंदोलन भारत के लोगों ने बापू के साथ मिलकर भी 40 वर्षों तक चलाया था। भारत की जनता को उनके दर्द का अहसास और आभास कराके पूरे भारत को अंग्रेजों की कंपनी राज के खिलाफ खड़ा कर दिया था। उस समय भी सम्प्रदायिक ताकते अंग्रेजी और आजादी के आंदोलन का छिपकर साथ दे रही थी। अब सत्ता ने धार्मिक उन्माद को पूरी आजादी दे दी है। इसलिए वो उन्माद अब सब जगह दिखायी देता है।
हिंसक तरीके से भारत में कंपनी राज लाने वाले तीनों कानूनों को रदद् कराने व एमएसपी सुनिश्चित कराने का हमें भारत के संविधान का सम्मान करके प्रयास करना है। अब किसानों को अपने घर लौटने के लिए भारत सरकार को एमएसपी खरीद की गारंटी देकर सम्मान सहित किसानों की वापसी करें। एमएसपी की गारंटी से भी कंपनी राज लाने वाल तीनों कानून निष्प्रभावी हो सकते है। यदि वह निष्प्रभावी न हो तो दोबारा उचित समय देखकर किसान आंदोलन आरंभ कर सकते है। अभी तो एमएसपी खरीद की लिखित गारंटी लेकर, एक बार अपने घर जाकर आगे की तैयारी करके लौटना अच्छा होगा।
(लेखक दुनिया के जाने माने जल योध्दा हैं और सैकड़ों जल स्त्रोतों को बचा चुके हैं)