खूबसूरत प्राकृतिक सौन्दर्य, वनस्पति एवं फूलों से महकती रमणिक घाटियां, अलबेले और अनूठे पहाड़ी स्टेशन, मंदिरों के कारण पहचान बनाने वाली देवताओं की भूमि है हिमाचल प्रदेश।बहुसांस्कृतिक, विशाल भौगोलिक विविधता एवं लुभावनी प्रकृति से सम्पन्न प्रदेश की कालका-शिमला रेलवे लाइन तथा कुल्लू का ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को की विश्व विरासत धरोहर सूची में शामिल किया गया है।
संस्कृति
हिमाचल की समृद्ध, सांस्कृतिक परम्पराएं हैं। कुल्लू का दशहरा उत्सव न केवल देश में वरन् विदेशों में भी अपनी पहचान बनाता है। यहां के नृत्य व संगीत स्थानीय त्यौहारों एवं धार्मिक अवसरों पर देखने को मिलते हैं। शिक्षा की दृष्टि से यहां अनेक विश्वविद्यालय हैं। यहां माँ दुर्गा के सात अवतारों के पहाड़ी मंदिर हिन्दू धर्म के पवित्र पावन स्थल हैं। ट्रेकिंग, पर्वातारोहण, स्कीइंग, हाइकिंग, हैली-स्कीइंग और आइस स्केटिंग जैसे साहसिक खेलों के लिए यहां का वातावरण अनुकूल है। शिमला, एशिया का एक मात्र प्राकृतिक आइस स्केटिंग का लोकप्रिय स्थल है। अपनी आकर्षक दृश्यावली के कारण आज यह प्रदेश सेल्यूलाइड के पर्द पर चमक रहा है। राज्य में गादी, किन्नर, गुज्जर, पनवाल एवं लाहौसिस प्रमुख जनजाति के लोग पाये जाते हैं। इनकी अपनी अलग ही संस्कृति है। यहां हिन्दी एवं अंग्रेजी के साथ-साथ पहाड़ी, कुल्वी, मण्डीली, कांगड़ी, किन्नोरी, चाम्बोली आदि स्थानीय भाषाएं बोली जाती हैं। पहाड़ी चित्रकला की प्रदेश के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कांगड़ा के साथ-साथ गोम्पा शैली के चित्र भी बनाये जाते हैं।
शिमला
सैलानियों एवं हनीमून कपल्स के लिए एक रोमांटिक स्थल है। पहाड़ों की रानी कहे जाने वाले शिमला को सर्वप्रथम 1819 ई. में अंग्रेजों ने खोजा था और अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। यहां आईस स्केटिंग का एशिया का सबसे बड़ा एवं प्रमुख केन्द्र है। न्यू गोथिक वास्तुकला का क्राइस्ट चर्च, महात्मा गांधी, इन्द्रा गांधी एवं हिमाचल के प्रथम मुख्यमंत्री डाॅ. वाई.एस. मरमर के स्टेच्यू, न्यू-ट्यूडर पुस्तकालय का भवन दर्शनीय हैं। श्यामल देवी का कालीबाड़ी मंदिर एवं पहाड़ी टाइल पर हनुमान को समर्पित जाखू मंदिर दर्शनीय हैं। जाखू पहाड़ी पर बर्फीली चोटियों, घाटियों तथा शिमला का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर ग्लेन दर्शनीय स्थल है। रिज रोड़ से पर्वत श्रृंखलाओं का मनोरम दृश्य नज़र आता है।
रिज रोड़ क्षेत्र से जुड़ा है प्रमुख माल रोड़ जो शाॅपिंग एवं संस्कृति का महत्वपूर्ण केन्द्र है। गर्मी के मौसम में समर फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिसमें देशभर के लोकप्रिय गायकों को बुलाया जाता हैं। शिमला में जोहनिस वेक्स संग्रहालय, हिमाचल राज्य संग्रहालय एवं शिमला विरासत संग्रहालय भी दर्शनीय है। प्रोस्पेक्ट हिल पर कामना देवी का मंदिर बना है। राष्ट्रपति भवन में बने मुगल उद्यान वाटिका में कई प्रकार के गुलाब लगाये गये हैं। ग्रीष्म काल में राष्ट्रपति यहां आते हैं। मार्च माह में यहां अनेक प्रकार के पक्षी देखे जा सकते हैं।
कालका-शिमला पर्वतीय रेल
कालका-शिमला पर्वतीय रेल की यात्रा के दौरान पर्वतीय एवं प्राकृतिक सौन्दर्य का देखने का अपना ही आनन्द है। समुद्रतल से 656 मीटर ऊँचाई पर जब रेल कालका को छोड़ती है तो शिवालिक की घुमावदार पहाड़ी रास्ते से गुजरकर 2076 मीटर ऊँचाई पर स्थित शिमला तक जाती है। इस रेल मार्ग में 20 रेलवे स्टेशन, 103 लम्बी सुरंगे, 869 पुल एवं 919 घुमाव आते हैं। दो फीट एवं छह इंच नैरोगेज पर 9 नवम्बर 1903 यह रेलवे लाईन आज तक निरन्तर चल रही है। यूनेस्को के दल ने जब इसे और आस-पास के प्राकृतिक दृश्य को देखा तो उन्होंने 24 जुलाई 2008 को सांस्कृतिक श्रेणी में इसे विश्व विरासत घोषित किया।समर हिल एवं 67 फीट ऊँचाई से गिरता हुआ चैडविक जल प्रपात मनमोहक लगता है।
कुल्लू
देवताओं की घाटी के नाम से प्रसिद्ध कुल्लू पर्वतीय क्षेत्र मनाली से 40 कि.मी. दूरी पर स्थित है। हिमाच्छादित चोटियां, स्वास्थप्रद जलवायु, हरे-भरे पहाड़, वन्यजीव कुल्लू को मनोरम एवं खूबसूरत बना देते हैं। यह एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है जहां वर्षभर सैलानियों की आवाजाही रहती है। यहां ट्रेकिंग, स्कीइंग, हिम ट्रेकिंग साहसिक खेलों में रत सैलानी नजर आते हैं। कुल्लू की खूबसूरती हनीमून मनाने वालों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। फूलों की घाटी एवं यहां का दशहरा विश्व में प्रसिद्ध हैं। दशहरे पर कुल्लू की शान विशेष रूप से देखने योग्य होती है। बसन्त के मौसम में रंग-बिरंगे फूलों की घाटी, देवदार से घिरे रास्ते, खूबानी एवं बेर वृक्षों से यहां सौन्दर्य अतुल्य हो जाता है। यहां लोक गीतों एवं नृत्यों के लिए भी कुल्लू घाटी प्रसिद्ध है। आसपास अनेक दर्शनीय स्थल हैं।
मणिकर्ण साहिब गुरूद्वारा
कुल्लू से 45 किलोमीटर दूर भूंतर से उत्तर-पश्चिम में पर्वतीय घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बना यह गुरूद्वारा सिक्खों और हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र है। गुरूद्वारे का विशालकाय भवन किलेनुमा दिखाई देता है। यहाँ चश्मे का पानी इतना गर्म होता है कि इसमें खाना पकाया जा सकता है। यह पानी कई बीमारियों को दूर करने में भी सहायक है। यहां ब्रह्मगंगा, नारायणपुरी, रासकट, भगवान राम, कृष्ण, विष्णु एवं शिव के मंदिर भी दर्शनीय हैं। मणिकर्ण से 16 कि.मी. पर पुलगा, 22 कि.मी. पर रूद्रनाथ, 25 कि.मी. पर खीरगंगा तथा 115 कि.मी. पर मानतलाई की चोटियां देखते ही बनती हैं। सम्पूर्ण पर्वतीय घाटी पर्वतारोहण के शौकिनों के लिए स्वर्ग के समान है। चण्डीगढ़ यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है। नियमित हवाई सेवा दिल्ली से भूतंर के लिए उपलब्ध है।
डलहौजी
हिमालय की कुदरती सुन्दरता को प्रदर्शित करने वाला डलहौजी पर्वतीय क्षेत्र 6 हजार से 9 हजार फीट की ऊँचाई पर एक रमणिक पर्यटन स्थल है। डलहौजी धौलाधार पर्वत श्रृंखला की पश्चिमी सीमा पर काठ लोग, पात्रे, तेहरा, बकटोरा एवं बलूम नामक पाँच पहाड़ियों के आस-पास फैला हुआ है। यह स्काॅटिश और विक्टोरियन वास्तुकला की इमारतें है। 19 वीं शताब्दी में ब्रिटिश गर्वनर जनरल लाॅर्ड डलहौजी के नाम पर इस पर्वतीय क्षेत्र को बसाया गया। इसके आस-पास पाइन, देवदार, ओक और रोडो डेंड्राॅन फूलों सहित विविध प्रकार की आकर्षक वनस्पति पाई जाती हैं। रावि नदी का यहां अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। पठानकोट-चम्बा के 120 कि.मी. मार्ग पर स्थित बनीखेत कस्बे से 7 कि.मी. की दूरी पर स्थित है डलहौजी। यहां कुल्लू-मनाली-धर्मशाला व शिमला के लिए सीधी बसे जाती हैं।
धर्मशाला
धर्मशाला पर्वतीय क्षेत्र की ख्याति अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर छोटे ल्हासा के रूप में विख्यात है। बताया जाता है कि 1960 ई. में दलाईलामा ने यहां अपना अस्थाई मुख्यालय बनवाया था। धर्मशाला की ऊँचाई 4400 फीट से 6460 फीट के मध्य है। यहां पाइन के ऊँचे पेड़, चाय के बागान और इमारती लकड़ी के ऊँचे वृक्ष प्रकृति को मनोरम स्वरूप प्रदान करते हैं। अंग्रेजों ने इसे एक छोटे पर्यटक स्थल के रूप में बसाया था। धर्मशाला को दो भागों में बांटा जा सकता है, एक नीचली धर्मशाला जहां कोतवाली बाजार है तथा दूसरा ऊपरी धर्मशाला जिसे मक्लोडगंज के नाम से जाना जाता है, जो 1982 मीटर की ऊँचाई पर है। मक्लोडगंज तिब्बतीय बस्तियों का क्षेत्र है। यहां एक वृहत प्रार्थना चक्र एवं एक मठ में बौद्ध प्रतिमा दर्शनीय है। यह स्थान तिब्बत के धर्मगुरू दलाईनामा का निवास है। यहां सेंट जाॅन चर्च भी दर्शनीय है एवं त्रियूंड एक खूबसूरत पिकनिक स्थल है।
निचली धर्मशाला के कोतवाली बाजार से 3 कि.मी. पर कुशलदेवी पत्थर मंदिर, 11 कि.मी. पर डलझील पिकनिक स्थल, समीप ही एक जल प्रपात तथा भगसूनाथ मंदिर दर्शनीय है। धर्मशाला से 15 कि.मी. दूरी पर चामुण्डा माता प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। धर्मशाला का निकटतम नैरोगेज रेलवे स्टेशन कांगड़ा है जहां से 18 कि.मी. दूर धर्मशाला स्थित है। बड़ी रेलवे लाईन का निकटतम रेलवे स्टेशन 90 कि.मी. दूर पठानकोट में है।
कुफरी
अनन्त दूरी तक चलता आकाश, बर्फ से ढ़की चोटियां, गहरी घाटियां और मीठे पानी के झरने सभी कुछ मिलकर सैलानियों को कुफरी आने का निमंत्रण देते हैं। शिमला के समीप कुफरी समुद्र तल से 2510 मीटर की ऊँचाई पर हिमाचल प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है। ठण्ड के मौसम में यहां हर वर्ष यहां आने वाले पर्यटकों के लिए खेल कार्निवाल आयोजित किया जाता है जब सैलानी स्काइंग, टोबोगेनिंग, गो-कार्टिंग एवं घुड़सवारी का आनन्द लेते हैं। साथ ही पर्वतारोहण का भी अपना ही मजा है। महासूपीक, गे्रट हिमालियन नेचर पार्क और फांगू कुफरी के प्रमुख पर्यटक स्थल हैं। ग्रेट हिमालियन नेचर पार्क में पक्षियों एवं जानवरों की 180 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। फांगू कुफरी से 6 कि.मी. दूर प्रकृति का शांत स्थल है। यहां लकड़ियों से बने मंदिरों की नक्काशी देखते ही बनती है। कुफरी का निकटतम हवाई अड्डा शिमला में है।
मनाली
कुल्लू से उत्तर दिशा में 40 कि.मी. दूर लेह की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर घाटी के सिरे के पास स्थित मनाली का रमणिक पर्वतीय स्थल लोकप्रिय पर्यटक केन्द्र है। लाहुल-स्पीति, बारां भंगल (कांगड़ा) और जनस्कर पर्वत श्रंखला पर चढ़ने वालों के लिए यह एक पसन्ददीदा स्थल है। यहां अनेक मंदिर एवं बौद्ध मंदिर बने हैं तथा रोमांचकारी गतिविधियां इसे हर मौसम में लोकप्रिय बनाती है। यहां हाइकिंग (लम्बी पैदल यात्रा), पर्वतारोहण, पैराग्लाइडिंग, राफ्टिंग, ट्रेकिंग, कायाकिंग और माउन्टेन बाईकिंग के साथ-साथ याक स्कीइंग लोकप्रिय हैं। मनाली के राजा तक्षपाल द्वारा निर्मित वशिष्ठ मंदिर, हनुमान टिब्बा एवं हिडम्बा देवी का मंदिर दर्शनीय हैं। मंदिर को 16 वीं सदी में राजा बहादुर सिंह द्वारा बनवाया गया था। यहां मई माह में एक बड़ा मेला लगता है। मनाली से 5 कि.मी. पर प्रिनी गांव में अर्जुन गुफा एवं नेहरू कुण्ड, 6 कि.मी. पर जगतसुख में बने अनेक मंदिर तथा 51 कि.मी. पर खतरनाक रोहतांग दर्रा दर्शनीय स्थल हैं। मनाली का समीपस्थ रेलवे स्टेशन चण्डीगढ़ है। सोलांग घाटी, चंबा,खजियार (खज्जियार) पर्वतीय स्थल भी आकर्षण के केंद्र है।
देवी के शक्तिपीठ
पहाड़ों पर चामुण्डा देवी-बृजेश्वरी देवी, नैना देवी ,कांगड़ा देवी,ज्वालादेवी, चिंतपूर्णा देवी के मंदिर हिमाचल को धार्मिक और आध्यत्मिक महत्व प्रदान कर देव भूमि कहलाने का गौरव प्रदान करते हैं।चामुंडा देवी का मंदिर –चामुंडा देवी का मंदिर कांगड़ा से 24 किमी एवं धर्मशाला से8 किमी की दूरी पर है। चामुंडा माता का ये मंदिर हिंदुओं के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से है। कांगड़ा देवी –कांगड़ा देवी 51 शक्ति पीठो में एक है, जहाँ सती का दाहिना वक्ष गिरा था। यहाँ पर माँ के तीन पिंडियों की पूजा की जाती है। मन्दिर धर्मशाला शहर से 6 किमी की दूरी पर स्थित है। चिंतपूर्णी देवी मंदिर – यह भी देवी मां के 51 शक्तिपीठो में एक प्रमुख मन्दिर है। चिंतपूर्णी मंदिर के चारो दिशाओं में भगवान शिव का मंदिर स्थित है। मंदिर धर्मशाला से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। नैना देवी मंदिर –यह मंदिर भी देवी मां के 51 शक्तिपीठो में से एक है। यह मंदिर शिवालिक पर्वत श्रेणी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर धर्मशाला से 8 किमी की दूरी पर है।
—————
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार
पूर्व जॉइंट डायरेक्टर,सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग,राजस्थान
1-F-18, आवासन मंडल कॉलोनी, कुन्हाड़ी
कोटा, राजस्थान