शिव को अपनी प्रिया देवी के साथ देखो। वे दो नहीं मालूम होते, एक ही हैं। यह एकता इतनी गहरी है कि प्रतीक बन गई है। ध्यान की पहली विधि शिव प्रेम से शुरू करते हैं: प्रिय देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो।
शिव प्रेम से शुरू करते हैं। पहली विधि प्रेम से संबंधित है क्योंकि तुम्हारे शिथिल होने के अनुभव में प्रेम का अनुभव निकटतम है। अगर तुम प्रेम नहीं कर सकते हो तो तुम शिथिल भी नहीं हो सकते। अगर तुम शिथिल हो सके तो तुम्हारा जीवन प्रेमपूर्ण हो जाएगा। एक तनावग्रस्त आदमी प्रेम नहीं कर सकता, क्योंकि तनावग्रस्त आदमी सदा उद्देश्य से, प्रयोजन से जीता है। हिसाब-किताब रखने वाला मन, तार्किक मन, प्रयोजन की भाषा में सोचने वाला मन प्रेम नहीं कर सकता। प्रेम सदा यहां है और अभी है। प्रेम का कोई भविष्य नहीं है। यही वजह है कि प्रेम ध्यान के इतने करीब है। मृत्यु भी ध्यान के इतने करीब है क्योंकि मृत्यु भी यहां है और अभी है, वह भविष्य में नहीं घटती। मृत्यु, प्रेम, ध्यान, सब वर्तमान में घटित होते हैं। इन तीनों को एक साथ रखना अजीब मालूम पड़ेगा। वह अजीब नहीं है। वे समान अनुभव हैं। इसलिए अगर तुम एक में प्रवेश कर गए तो शेष दो में भी प्रवेश पा जाओगे।
शिव प्रेम से शुरू करते हैं: ‘प्रिय देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो।’ पहली चीज कि प्रेम के क्षण में अतीत व भविष्य नहीं होते हैं। जब अतीत व भविष्य नहीं रहते तब क्या तुम इस क्षण को वर्तमान कह सकते हो? यह वर्तमान है दो के बीच, अतीत व भविष्य के बीच, यह सापेक्ष है। अगर अतीत व भविष्य नहीं रहे तो इसे वर्तमान कहने में क्या तुक है! इसलिए शिव वर्तमान शब्द का व्यवहार नहीं करते। वे कहते हैं, नित्य जीवन। उनका मतलब शाश्वत से है। शाश्वत में प्रवेश करो। अगर यह यात्रा क्षणिक न रहे, यह यात्रा ध्यानपूर्ण हो जाए, अर्थात अगर तुम अपने को भूल जाओ व प्रेमी-प्रेमिका विलीन हो जाएं व केवल प्रेम प्रवाहित होता रहे, तो शिव कहते हैं- शाश्वत जीवन तुम्हारा है।
(ओशो तंत्र सूत्र, भाग-एक, प्रवचन-7 से/सौजन्य-ओशो वर्ल्ड)