भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादिकाल से भारतीय धर्म साधना में निराकार होते हुए भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं, तो उनके पूर्ण रूप को महेश कहते है जिसका अर्थ होता है ‘महान इश’।
जब शिव के विराट तम रूप की चर्चा होती है तो उनके साथ आदिशक्ति के उमा रूप की चर्चा होती है, वो पूर्णपरमेश्वरी हैं, दिव्य जन्म और अनघा हैं। देवी उमा परा प्रकृति हैं। आराधना करने पर वह जल्द ही प्रसन्न हो जाती हैं। उमा के साथ ही महेश्वर शब्द का उपयोग किया जाता है अर्थात महेश और उमा। हो सकता है कि जब शंकर, महेश रूप में आए तब पार्वती भी उमा हो गई।
सृष्टि वैभव हीन पड़ी थी और समृद्धि को गहराई से मंथन द्वारा निकालना था। किन्तु मंथन होता है तो बहुत तथ्य प्राप्त होते हैं। वैसे ही निकला समुद्र मंथन से कालकुट विष जिसकी एक बूंद काफी थी सृष्टि समाप्त करने के लिए। बस एक महादेव के योग और ज्ञान का सहारा था कि उनका विज्ञान इसका कुछ उपाय कर लेगा क्यूंकि संसार में कोई और शरीर नहीं जहां इस को छुपाया या दबाया जाए!
फिर महादेव स्वीकार कर लेते हैं, विषम कालकूट।
किन्तु, महादेवी ने अपने प्रियतम को कोई कष्ट नहीं होने देतीं और अपनी तपशक्ती से विष को भवानी रूप बन शिव कंठ मे स्थापित कर देतीं है।
और इस तरह शिव नीलकंठ हो जाते हैं।
वासुकी यह देख शिव के गले में स्वयं को लपेट देते हैं और उमा ने उन्हें पूज्य होने का आशीर्वाद दे देतीं हैं. गौरी ने शिव के कर्तव्यों को निर्वहन में उनसे ज्यादा समग्रता दिखाई, देव से महादेव शिव अपनी शक्ति के कारण ही हैं। स्वभावों की विपरीतताओं, विसंगतियों और असहमतियों के बावजूद सब कुछ सुगम है, क्योंकि परिवार के मुखिया ने सारा विष तो अपने गले में थाम रखा है। तभी हम को भी जीवन में भी मंथन के विष को गले में थाम लेना चाहिए, तभी मनुष्य सोमनाथ हो पाता है।
अपनी जटाओं में गंगा धारण करने वाले पशुपति नाथ जो लोक संदर्भ के हिसाब से पर्यावरणविद् ही तो थे। उन्होंने ना केवल वन्य जीवों के आक्रमकता को अनुशासित किया, बल्कि भूतो के स्तर से देवताओं तक अपने ज्ञान से सर्वमान्य बने. प्रकृति ऐसे ही नहीं कभी ललिता, कभी काली बन स्वच्छंद विहार करती है महादेव के साथ। क्योंकि यह पुरुष निराला है, बौराह है किन्तु ज्ञान रूप है. कभी मृग छाल में, तो कभी श्वेतांबर में सोहते भोले नयनामृत है।
जब महाकाल रूप में सृष्टि के संपादन को भंग करने पर आते है तो अपने वेग से समाहित लय भंग करते डालते हैं। इसी में संजीवन का रहस्य है कि यदि शाश्वत रहना है तो महादेव की स्फूर्ति चाहिए, जो बदलाव से आगे के लिए तैयार रहे।
महादेव ने उसके उपायों से किसी को वंचित भी नही किया। इसके लिए योगसूत्र दिए, संहिताये दी और मंत्रों को सिद्धि को स्थापित किया। शक्ति भी महादेव के साथ अपने पूर्ण रूप में विराजमान है, कभी कौशीकि कभी सिद्धिदात्री, कभी भैरवी तो कभी बगलामुखी महाविद्या रूप में शक्ति अपने महादेव के ज्ञान को, अपनि आत्मशक्ति को, प्रतिपल प्रासंगिक करती है।
इस शिवरात्रि महाकाल–महाकाली अपनी साक्षात सत्ता का हम बोध और निष्पादन दे।
हमे भी अपने “विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्” का चिंतन और बोध दें।
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
( लेखिका यांत्रिकी अभियंता, धार्मिक, शिव भक्त व योग मार्ग की स्नातिका है)
साभार – https://www.indictoday.com/bharatiya-languages/hindi/ से