नई दिल्ली। ‘बिना रंगमंच के नाटक की कल्पना नहीं हो सकती, ठीक उसी तरह जैसे बिना शब्द के संगीत की कल्पना संभव नहीं।’ कवि,आलोचक एवं नाटक-रंगमंच के अध्येता प्रो. आशीष त्रिपाठी ने उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज द्वारा आयोजित ‘अभिधा’ के तीसरे और अंतिम दिन ‘समकालीन हिंदी नाटक’ विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।
प्रो त्रिपाठी ने उपनिवेशवाद और साहित्य के सम्बन्ध पर कहा कि उपनिवेशवाद के दौर में अंग्रेज, डच, फ्रांसिसी, इत्यादि अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन भारत जैसै पूर्ण विविधता वाले देश में कुछ ऐसा करना बेहद मुश्किल था। आर्थिक रूप से उपनिवेश बना लेने के बाद आवश्यक है कि उस ज़गह को सांस्कृतिक रूप से भी उपनिवेश बनाया जाय। उन्होंने बताया कि विउपनिवेश की प्रक्रिया को दो लोगों ने पुरजोर तरीके से आगे बढाया, ये दो लोग क्रमशः हिंदी में भारतेंदु हरिश्चंद्र और बांग्ला में रवींद्रनाथ ठाकुर थे। जिनके द्वारा निर्मित राह पर आगे चलकर कई नाटककारों और निर्देशकों ने विउपनिवेश के विचार को नाटक और रंगमंच के क्षेत्र में आगे बढ़ाया।
समकालीन नाटक और रंगमंच की विशेषताओं का ज़िक्र करते हुए प्रो त्रिपाठी ने कहा कि भारतीयता की खोज इस समकालीन नाटक की सबसे अद्भुत विशेषताओं में से एक है जो अक्सर इस दौर के नाटकों में प्रदर्शित होती है। यह विशेषता भारत के लोक रंगमंच से आई है। भारतीय नाट्य परमपरा ही है कि हमारे यहाँ लोक नाट्यों की स्क्रिप्ट पूर्व लिखित नहीं होती, बस उसी वक़्त गढ़ ली जाती है। समकालीन हिंदी नाटक की अन्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे ताकतवर तरीके से जो तथ्य इस सम्बन्ध में प्रकट होता है , उनमें मुख्य है सत्ता और व्यवस्था के जनविरोधी चरित्र को उभारना, उसकी गहरी आलोचना करना और उसके भीतर की जनविरोधी हिंसात्मक प्रवृत्तियों को अनावृत्त करना है। उन्होंने इस सम्बन्ध में भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक अंधेर नगरी का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि राजसत्ता के इसी तरह के चरित्र को आगे बकरी, कबिरा खड़ा बाज़ार में जैसे नाटकों ने और उजागर किया। प्रो त्रिपाठी ने अलखनंदन द्वारा रचित अल्पचर्चित नाटक राजा का स्वांग का विशेष उल्लेख कर बताया कि हिंदी में इस तरह के कम ही नाटक हैं जिनमें विचार और प्रभाव का अपूर्व समन्वय देखने को मिलता है ।
उन्होंने समकालीन हिंदी नाटक की एक विशेषता यह भी बताई कि समकालीन हिंदी नाटक में प्रयुक्त की जाने वाली कथाओं में बेहद विविधता है और इस मामले में वह किसी भी विधा में सबसे ज्यादा विस्तृत विधा है। कथा आधार या जीवन का जितना विस्तृत फ़लक समकालीन नाटक में दिखाई देता है उतना न कविता, न कहानी और न ही उपन्यास में दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि इस लिहाज से समकालीन नाटक को कविता का विस्तार कहा जा सकता है। उन्होंने हिंदी नाटक के पठन कहा कि हिंदी नाटक या सिर्फ किसी एक ही विधा का अध्ययन या पाठन हमारी संवेदना को सूक्ष्म कर देता है, इसलिए विभिन्न विधाओं का समग्रता में अध्ययन करना महत्त्वपूर्ण है।
व्याख्यान का संयोजन विभाग के प्राध्यापक नौशाद अली ने किया। प्रश्नोत्तर सत्र में प्रो. त्रिपाठी ने विद्यार्थियों के सवालों के जवाब बेहद विस्तार और रोचकता से दिए। इससे पहले व्याख्यान के प्रारम्भ में विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. रचना सिंह ने प्रो. त्रिपाठी का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि एक विद्वान अध्येता और कुशल सम्पादक के रूप में प्रो आशीष त्रिपाठी की पहचान सुविदित है लेकिन उनकी कवि कर्म बताता है कि वे कितने संवेदनशील साहित्यकार हैं। प्रथम वर्ष की छात्रा श्रेया राज ने प्रो. त्रिपाठी का औपचारिक परिचय दिया। अंत में प्रथम वर्ष के छात्र सूरज सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया। आयोजन में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अभय रंजन, डॉ पल्लव, डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर साहित्य अलग अलग महाविद्यालयों के अध्यापक और विद्यार्थी उपस्थित थे। आयोजन को गूगल मीट और फेसबुक पर प्रसारित किया गया।
व्याख्यान सत्र के बाद लोकगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसका संचालन दिशा ग्रोवर, नंदिनी गिरी और अनन्या ने किया। इसके निर्णायक मंडल में भारती कॉलेज के डॉ. नीरज और हिन्दू कालेज के रमेश कुमार राज थे। परिणामों की घोषणा डॉ नीरज ने की। लोक गीत प्रतियोगा में पहले स्थान पर मिरांडा हाउस की छात्रा संध्या भारती रही जिन्होंने मगही का दहेज़ विरोधी लोकगीत सुनाया, दूसरे स्थान पर महाराजा अग्रसेन कालेज की अन्नू कुमारी थी जिन्होंने नारी जीवन पर मैथिली गीत प्रस्तुत किया और विस्थापन पर कुमाउनी के गीत के लिए विनीत को तीसरा स्थान मिला। समापन सत्र में विभाग के प्रभारी डॉ पल्लव ने साहित्यिक प्रश्नोत्तरी के परिणामों की घोषणा की। इसमें प्रथम स्थान पर किरोड़ीमल कालेज के एम.एस. सरस्वती और सचिन गुप्ता, दूसरे स्थान पर एस ओ एल के सुमित कुमार और श्रवण शर्मा तथा तीसरे स्थान पर खालसा कालेज के वसीम और शालिनी राय रहे।
संपर्क
श्रेया राज, सूरज सिंह
प्रथम वर्ष, हिंदी प्रतिष्ठा
हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
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