विश्व हिन्दी सम्मेलन जैसे आयोजनों की सार्थकता पर सवाल उठाते हुए हिन्दी भाषा को उसका अधिकार, सम्मान और महत्व कैसे मिले इसको लेकर वैश्विक हिन्दी सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. एम एल गुप्ता ‘आदित्य’ ने कई महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए हैं
भाषा-प्रौद्योगिकी –
भारतीय भाषाओं के प्रयोग किए जाने की सबसे बड़ी बाधा भाषा- प्रौद्योगिकी के उपकरणों में भारतीय भाषाओं की सुविधा का या उसकी जानकारी/प्रशिक्षण अथवा प्रयोग को प्रोत्साहित न किया जाना है । इसलिए इस संबंध में निम्नलिखित कदम शीघ्र उठाए जाने की आवश्यकता है।
क. भाषा-प्रौद्योगिकी के वे सभी उपकरण जिन पर भारतीय भाषाओं में कार्य की सुविधा उपलब्ध है या करवाया जाना संभवहै, उन्हें भारतीय भाषाओं में कार्य की सुविधा व उपयोग-विधि के साथ ही भारत में बिक्री की अनुमति दी जाए।
ख. भारतीय भाषाओं में आई.टी. संबंधी सुविधाओं के लिए एक ऐसी संस्था गठित की जाए जो स्वत: संज्ञान लेकर प्रत्येक नई प्रणाली/उपकरण आदि पर उक्त सुविधाओं के लिए अविलंब कार्रवाई प्रारंभ कर दे। जिन प्रणालियों पर भारतीय भाषाओं में कार्य की सुविधा नहीं है उनके लिए अविलंब उक्त सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए संबंधित कंपनियों से संपर्क कर अथवा प्रौद्योगिकी विकास के लिए शीघ्रतिशीघ्र कदम उठाए । उदाहरणार्थ, माइक्रोसॉफ्ट पब्लिशर में भारतीय भाषाओं में यूनिकोड समर्थन न होने से भारतीय भाषाओं में यूनीकोड फोंट में कार्य करनेवालों को काफी कठिनाई होती है।
ग. इसके माध्यम से जनता को ऐसी सुविधा भी मिले कि माँग करने पर कंप्यूटर, मोबाइल, या अन्य किसा भी प्रणाली पर भारतीय भाषा में कार्य की विधि व सुविधा की जानकारी फोन अथवा ई मेल से तत्काल प्राप्त हो सके और जनता अपनी कठिनाइयाँ सीधे इन तक पहुंचा सके। ऐसी सुविधा का जनसंचार माध्यमों से व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए।
घ. भाषा-प्रौद्योगिकी के माध्यम से जनता के लिए उपलब्ध सभी सुविधाओं में इनेहें विकसित करने, करवाने, खरीदने अथवा अनुबंघ आदि के समय से ही ऐसी व्यवस्था हो कि उनमें केवल अंग्रेजी की सुविधा न हो या तो वे संघ/राज्य की भाषा में हों या अंग्रेजी सहित यथा स्थिति द्विभाषी / त्रिभाषी हों। सभी वैबसाइट, बैंकों, कंपनियों, ई-प्रशासन प्रणालियों, राजस्व संबंधी सॉफ्यवेयर प्रणालियाँ, ई बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, जनता सुविधा व प्रयोग से संबंधित पासपोर्ट बनाने जैसी प्रणालियाँ, ऑन लाइन सुविधाएँ, कोर बैंकिंग, कोर बीमा व विभिन्न कंपनियों के ऐसे सभी आई.टी. समाधानों में प्रारंभ से ही इस प्रकार की व्यवस्था हो। साथ ही उनके प्रशिक्षण/रख-रखाव( मैंटेनैंस) आदि कि समुचित व्यवस्था प्रारंभ से ही सुनिश्चित होनी चाहिए। साथ ही ऐसी व्यवस्था भी सुनिश्चित की जानी चाहिए कि इनके माध्यम से नागरिकों/ग्राहकों को बिना विशेष माँग या प्रयास के पत्र/रिपोर्ट/ सूचनाएँ/ सुविधाएँ आदि भारतीय भाषाओं में प्राप्त होती रहें ।
ड. ये सुविधाएँ अलग-अलग न हो कर एक साथ यथा स्थिति द्विभाषी / त्रिभाषी होनी चाहिए क्योंकि अलग-अलग होने पर भारतीय भाषाओँ वाली वैबसाइट अथवा प्रणाली न तो अद्यतन होती हैं, न ही इनका मैंटेनैंस होता है और न ही इनका प्रशिक्षण या उपयोग । । कर्मचारी भी दोनों के बजाए एक एक का प्राय: अंग्रेजी का ही प्रयोग करते हैं। केवल कानूनी औपचारिकताओं की पूर्तिभर होती है। इसके चलते जो फॉर्म आदि द्विभाषी होते थे अब केवल अंग्रेजी में होने लगे हैं। ज्यादातर केंद्रीय कार्यालयों,बैंकोंव कंपनियों मेंऐसी ही स्थिति है। द्विभाषी / त्रिभाषी वैबसाइट व प्रणालियों से इनपुट व आउटपुट व सृजित कागजात भी तद्नुसार स्वत: द्विभाषी / त्रिभाषी होंगे। कई वित्तीय संस्थानों में ऐसी प्रणालियाँ मौजूद भी हैं।
च. मोबाइल आदि उपकरणों पर जहाँ अंग्रेजी की अपेक्षा भारतीय भाषाओं में एस.एम.एस. आदि भेजने में अधिक खर्च आता है जिसके कारण लोग भारतीय-भाषाओं की लिपि के बजाए रोमन लिपि में एस.एम.एस. भेजते हैं। इसलिए इस प्रकार की व्यवस्था हेतु विचार किया जाना चाहिए जिससे कि भारतीय-भाषाओं में एस.एम.एस. भेजना महंगा नहीं बल्कि अपेक्षाकृत सस्ता होना चाहिए।
छ. इसी प्रकार सूचना-प्रौद्योगिकी संबंधी अनुसंधान व विकास संस्थानों में में भारतीय भाषाओं में कार्य सुविधाओं पर अनुसंधान व विकास का समावेश होना चाहिए ताकि प्रौद्योगिकी विकास की प्रक्रिया में भारतीय – भाषाएं पिछड़ न जाएँ ।
ज. विभागों/कंपनियों/बैंकों/संस्थानों/ आदि में सूचना-प्रौद्योगिकी कार्य के लिए नियुक्तविशेषज्ञ अधिकारियों में से कुछ भारतीय –भाषाओं में प्रौद्योगिकी के कार्य व सुविधाओं के लिए तैनात किए जाने चाहिए ।क्योंकि प्राय: सामान्य राजभाषा अधिकारी इन दायित्वों को निभा नहीं पाते और विशेषज्ञ अधिकारी इसे अपना कार्य नहीं मानते।
शिक्षा :–
क. भारत सरकार की त्रिभाषा सूत्र नीति के अनुसार भाषा-शिक्षण की व्यवस्था निजी व सरकारी सभी स्कूलों पर लागू की जानी चाहिए तथा किसी को भी विद्यालय को स्कूल स्तर पर भारतीय भाषाओं के स्थान जर्मन/ फ्रेंच या अन्य कोई विदेशी भाषा रखने की अनुमति नहीं होनी चाहिए लेकिन विश्वविद्यालय स्तर पर विश्व की विभिन्न भाषाएँ सीखने के लिए प्रोत्साहन व आवश्चक व्यवस्थाएँ की जानी चाहिए ।
ख. भाषा शिक्षण के अंतर्गत स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर भाषा हेतु उपलब्ध सूचना प्रौद्योगिकी तथा कामकाज में हिंदी को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
ग. न्यूनतम प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षण निजी व सरकारी सभी स्कूलों के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए तथा अन्य भाषा भाषियों के लिए भी एक विषय के रूप में हिंदी पढ़ाई जानी चाहिए ताकि संविधान की अपेक्षानुसार हिंदी संघ की राजभाषा के रूप में संघ की संपर्क भाषा बन सके।
घ. जनता को राज्य की भाषा में कानूनी प्रक्रिया की सुविधा व न्याय मिल सके इसके लिए विधि शिक्षा में राज्य की भाषा में विधिक और कानूनी प्रक्रिया के शिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
ङ. कंप्यूटरों व मोबाइल आदि उपरकणों पर भारतीय भाषाओं में कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित अत्यधित सरल और वैज्ञानिक इन्स्क्रिप्ट कुंजी-पटल उपलब्ध है । आम आदमी को इसकी जानकारी न होने के कारण देवनागरी सहित भारतीय भाषाओं को रोमन लिपि में लिखने का चलन तेजी से बढा है। इसलिए देश के सभी स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर सूचना-प्रौद्योगिकी विषय के अंतर्गत हिंदी अथवा राज्य की भाषा में इन्स्क्रिप्ट कुंजी-पटल के प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम व परीक्षा का हिस्सा बनाया जाए ताकि इसे गंभीरतापूर्वक पढ़ा व पढाया जाए। इससे देश-दुनिया में कहीं भी भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर पर व मोबाइल आदि पर कार्य किया जा सकेगा। भाषा-शिक्षण में भी कंप्यूटर आदि का प्रयोग हो तथा प्रोजेक्ट आदि के अंतर्गत लेख-निबंध तैयार करने, संपादन, प्रूफ पठन व अन्य कार्य आदि कंप्यूटर पर करवाएँ ताकि उन्हें वास्तविक रूप में इसका अभ्यास हो।
च. सूचना-प्रौद्योगिकी शिक्षा से जुड़े सभी शिक्षा संस्थानों कंप्यूटर-विज्ञान इंजीनीयरी आदि में भी पाठ्यक्रम में भारतीय भाषाओं से संबंघित भाषा-प्रोद्योगिकी सुविधाओं का समावेश किया जाना चाहिए।
जनसूचना, सेवा व नागरिक अधिकारों व न्याय के लिए भाषा :-
क. विश्व के अन्य देशों की भांति भारत में भी ग्राहक कानूनों के अंतर्गत ग्राहकों को उत्पाद पर समस्त जानकारी ग्राहक की भाषा में अर्थात संघ की राजभाषा नीति के अनुरूप राज्य व संघ की गाजभाषा में देना अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि अंग्रेजी न जाननेवाले या ठीक से न जाननेवाले देश के 95 % ग्राहक उनके लिए बने कानूना लाभों से वंचित न रहें और उनके कानूनी अधिकारों का हनन न हो।
ख. सरकारी व गैर सरकारी मान्यता प्राप्त संस्थाओं, कंपनियों बैंकों व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए भी यह अनिवार्य किया जाए कि वे उनसे संबंधित कानूनों के अंतर्गत जनसूचनाएं / सुविधाएँ/ सेवाएं , सूचना पट्ट / बोर्ड व जनता को भेजे जानेवाले पत्रादि जनभाषा में अवश्य हों। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी के प्रयोग की भी छूट हो।
ग. शेयरधारकों को तथा निवेशकों को भी नियम कानून के अंतर्गत जी जानेवाली सूचनाएं , विवरण तथा आवेदन व अन्य प्रपत्र द्विभाषी/त्रिभाषी रूप में जनभाषा में प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
घ. किसी भी स्तर पर ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी भी नागरिक को अंग्रेजी न आने के कारण कानून द्नारा प्राप्त संरक्षण, अवसर,लाभ, सेवा, सुविधा से वंचित रहना पड़े या उसे असुविधा का सामना करना पड़े या हानि उठानी पड़े।
ङ. सभी स्तरों पर नागरिकों को देश की भाषा में, राज्यों में राज्यों की राजभाषा में तथा केंद्रीय स्तर पर संघ की राजभाषा/राजभाषाओं में न्याय की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के अनुसार चरणबद्ध व समयबद्ध रूप से कार्य किया जाना चाहिए। प्रकार के कानून, नियम आदेश जनभाषा में हों तथा सरकारी/गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा ग्राहकों आदि के साथ किए अनुबंध, करार , बीमा पॉलिसी तथा ऐसे सभी कागजात जनभाषा में दिए जाने हेतु नियम कानूनों में संशोधन किए जाने चाहिए।
च. प्रशासनिक कार्य का प्रशिक्षण संघ व राज्यों के स्तर पर उनकी राजभाषा (भारतीय भाषाओं) में दिया जाए।
मीडिया की भाषा
क. समाचारपत्रों / टीवी चैनलों आदि में विदेशी पूंजी के चलते व प्रबंधन में अंग्रेजीदां लोगों के प्रभाव व हस्तक्षेप आदि अनेक कारणो से भारतीय भाषा के कई चैनलों व समाचारपत्रों आदि में संपादकों/ पत्रकारों को निर्देश दे कर भारतीय भाषाओं के जीवित प्रचलित शब्दों के स्थान पर जबरन अंग्रेजी शब्द थोप कर और रोमन लिपि के प्रयोग को बढ़ाकर भारतीय भाषाओं के शब्दों को धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर किए जाने के मामले सामने आ रहे है। सिनेमा व विज्ञापन जगत में भी कुछ ऐसी ही स्थितियाँ हैं। भारतीय-भाषा मीडिया में अंग्रेजीवालों का वर्चस्व होने के चलते भारतीय भाषाओं का अंग्रेजीकरण जोरों पर है। इसलिए यह उचित होगा कि प्रेस परिषद के अंतर्गत य़ा अन्य किसी ऐसी व्यवस्था द्वारा इसके लिए भारतीय भाषा के वरिष्ठ पत्रकारों / फिल्म लेखकों आदि की भाषावार समिति गठित की जाएँ जो इस संबंध में सभी पहलुओं पर विचार कर दिशा-निर्देश जारी करे जो पत्र-पत्रिकाओं के लिए मार्गदर्शी ही नहीं बाध्यकारी भी हों।
ख. यह देखने में आया है कि कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने और जनता को जानकारी न देने के उद्देश्य से अनेक कंपनियाँ पाठकों की भाषा के बजाए अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में विज्ञापन आदि देती हैं । यह जनता को धोखा दिए जाने के समान है । इसलिए किसी समाचार पत्र, चैनल पर विज्ञापन आदि उसी भाषा में दिए जाने का प्रावधान होना चाहिए जिस भाषा के लिए वह पंजीकृत है।
ग. फिल्मों में भी फिल्म से संबंधित जानकारी उस फिल्म की भाषा व लिपि में ही दिए जाने का प्रावधान केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अंतर्गत किया जाना चाहिए ।
संघ के कार्यलयों के संबंध मेः
क. राजभाषा नियम 1976 में निर्धारित ‘क’ व ‘ख’ भेत्रों में स्थित अधिसूचित कार्यलयों में राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) के अंतर्गत विनिर्दिष्ट कागजात, जिनका प्रयोग उन्हीं कार्यालयों तक सीमित है, कार्यालय प्रमुखों को केवल हिंदी में जारी करने की छूट दी जाए ताकि अनावश्यक अंग्रेजीकरण से बचा जा सके ।
ख. जिन कार्मिकों को राजभाषा नियम 1976 में ‘क’ व ‘ख’ क्षेत्रों में स्थित कार्यालयों में हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कार्मिकों को नियमित कार्य हिंदी में ही करने के निर्देश दिए जाएँ तथा हिदी कार्य के लिए गोपनीय रिपोर्ट में व पदोन्नति आदि में आवश्यक उपबंध किए जाएँ।
ग. कार्य अनुवाद के माध्यम से नहीं मूल रूप से हिंदी में किया जाना चाहिए।
घ. यह देखने में आया है कि अनेक केंद्रीय कार्यालयों( बैंकों, कंपनियों, संस्थानों आदि सहित) में अधिकारी (लापरवाही से) राजभाषा संबंधी कानूनों की उपेक्षा करके सॉफ्वेटयर, कंप्यूटर प्रणालियाँ, प्रिंटिंग, लेखन-सामग्री, बोर्ड आदि केवल अंग्रेजी में बनवा लेते हैं। जिसके कारण नियमानुसार भारतीय – भाषाओं का प्रयोग संभव नहीं होता और बाद में यदि ऐसा किया जाए तो सरकार को फिर काफी धन खर्च करना पड़ता है जिससे सरकार पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है । इसलिए सुझाव है कि राजभाषा अधिनियम – नियम आदि के प्रतिकूल खर्च की लेखा-परीक्षा यानि ऑडिट की परिधि में लाया जाए ।
यदि किसी मामले में विशेष स्थिति में यानी तकनीकी या व्यावहारिक कारण राजभाषा अधिनियम – नियम आदि के अनुकूल व्यवस्था या कार्य करना संभव न हो तो कंपनी/ कार्यालय उसके लिए कारण बताते हुए राजभाषा विभाग से पूर्वानुमति प्राप्त करने का प्रावधान हो जहाँ उन पर गंभीरतीपूर्वक विचार करने के बाद ही निर्णय लिया जा सके । इस प्रावधान से राजभाषा संबंधी नियमों के उल्लंघन पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा।
भारतीय भाषाओं का प्रचार-प्रसार
क. सरकारी, अर्ध सरकारी, सार्वजनिक स्थलों, परिसरों, व प्रचार व प्रसारण माध्यमों, रेलवे व परिवहन प्रणालियों के अंतर्गत भारतीय भाषाओं के विज्ञापनों की दर में विशेष छूट तथा भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी आदि विदेशी भाषा के समान अनुपात पर आधी छूट जैसी व्यवस्थाओं पर विचार किया जा सकता है।
ख. जनतंत्र में सभी व्यवस्थाएं जनता के लिए हैं अत: सरकारी ही नहीं निजी क्षेत्र में भी जो अधिकारी/ कर्मचारी जनसेवा व जनसंपर्क कार्य से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों के लिए जनभाषा का ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए ताकि नागरिकों / ग्राहकों को कठिनाई न हो और उनकी समस्याओंका समाधान हो सके। उनके द्वारा व उनकी व्यवस्था में सूचनाएं जनभाषा में दी जाएँ। इससे न केवल जनता को जनभाषा में कार्य की सुविधा होगी बल्कि भारतीय भाषाओं के माध्यम से रोजगार भी मिलेगा।
ग. हिंदी व भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं के उन शब्दों को स्वीकार करते हुए तथा ऐसे पारिभाषित शब्दों का प्रयोग समाप्त करने विचार किया जाना चाहिए जो प्रचलन में नहीं आ सके। भाषा को सरल व सहज बनाने पर जोर देने के साथ-साथ सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान शब्दावली पर जोर देने तथा हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के लिए भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप कोस्वीकारने की आवश्यकता है।
घ. भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के लिए एक ऐसी समिति बनाई जाए जिसमें राजभाषा सहित मीडिया, शिक्षा-जगत, विज्ञापन- सिनेमा, साहित्य के साथ भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के कार्य में सक्रियता से लगे व्यक्तियों को भी लिया जाए ।
डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
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