टी.वी. एंकर रोहित सरदाना के महाप्रयाण की खबर ने तो अभी-अभी गहरा धक्का पहुंचाया है लेकिन मेरे पास उनकी ही उम्र के लगभग आधा दर्जनों लोगों की खबरें पिछले दो हफ्तों में आ चुकी हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें मैंने गोद में खिलाया है या जो कभी मेरे छात्र रहे हैं या जिनके माता-पिता मेरे घनिष्ट मित्र रहे हैं। कई बुजुर्ग लोग भी जा चुके हैं। आपको भी अपने आत्मीय लोगों के बारे में ऐसी दुखद खबरें मिल रही होंगी। दूसरे शब्दों में सारा देश ही गमगीन हो रहा है। कौन होगा, जिसे ऐसी दुखद खबरें नहीं मिल रही होंगी। यह इतना विचित्र समय है, जब दिवंगत व्यक्ति के परिवार के लोग ही आपसे आग्रह करते हैं कि आप दाह-संस्कार में उपस्थित न हों। मैंने कुछ ऐसे परिवार भी देखे हैं, जिनका मुखिया मरणासन्न है, और उस परिवार के जवान बेटे बीमारी का बहाना बनाकर घर में छिपे बैठे हैं। वे अपने बाप का हाल भी सीधे नहीं जानना चाहते। वे उनके मित्रों से अपने बाप का हाल पूछते रहते हैं।
लेकिन कुछ मित्र ऐसे भी देखे गए हैं, जो अपनी जान हथेली पर रखकर अपने मित्रों को अस्पताल पहुंचाते हैं और उनकी पूरी देखभाल भी कर रहे हैं। अनेक समाजसेवी सज्जन ऐसे भी हैं, जो अनजान मरीज़ों को भी अस्पताल पहुंचाने की हिम्मत कर रहे हैं, मुफ्त ऑक्सीजन बांट रहे हैं, मरीजों के निर्धन परिजनों को वे भोजन करवा रहे हैं, अपने प्रिय मित्र की जान बचाने के लिए हजार मील कार चलाकर ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचा रहे हैं, अपने रिश्तेदारों और मित्रों के इलाज के लिए सैकड़ों लोगों से नित्य संपर्क कर रहे हैं, अपनी बचत के पैसे खर्च करके अपने परिचितों को काढ़ा और आयुर्वेदिक औषधियां बांट रहे हैं।
इस संकट की अवधि में मनुष्य के दोनों रुप प्रकट हो रहे हैं, देव का भी और दानव का भी ! उनसे नीच दानव कौन हो सकता है, जो इस संकट काल में भी ऑक्सीजन सिलेंडर 80-80 हजार और रेमडेसवीर का इंजेक्शन सवा-सवा लाख रु. में बेच रहे हैं। इन नरपशुओं को, दानवों को, राक्षसों को सरकारें सिर्फ गिरफ्तार कर रही है, फांसी पर नहीं लटका रही हैं। वे जेल में पड़े-पड़े सरकारी रोटियां तोड़ते रहेंगे और सुरक्षित रहेंगे जबकि इन कालाबाजारियों की वजह से सैकड़ों लोग मौत के घाट रोज़ उतर रहे हैं। यदि देश के 5-10 शहरों में भी इन कालाबाजारी राक्षसों को लटका दिया जाए तो देश में अब दवाइयों और ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी।
लेखक के बारे में – डॉ. वेद प्रताप वैदिक (जन्म: 30 दिसम्बर 1944, इंदौर, मध्य प्रदेश) भारतवर्ष के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, पटु वक्ता एवं हिन्दी प्रेमी हैं। हिन्दी को भारत और विश्व मंच पर स्थापित करने की दिशा में सदा प्रयत्नशील रहते हैं। भाषा के सवाल पर स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी और डॉ॰ राममनोहर लोहिया की परम्परा को आगे बढ़ाने वालों में डॉ. वैदिक का नाम अग्रणी है। वैदिक जी अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ रहे हैं। भारतीय विदेश नीति के चिन्तन और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने लगभग 80 देशों की यात्राएँ की हैं। अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिन्दी में बेहतर पत्रकारिता का युग आरम्भ करने वालों में डॉ॰ वैदिक का नाम अग्रणी है। उन्होंने सन् 1958 से ही पत्रकारिता प्रारम्भ कर दी थी। नवभारत टाइम्स में पहले सह सम्पादक, बाद में विचार विभाग के सम्पादक भी रहे। उन्होंने हिन्दी समाचार एजेन्सी भाषा के संस्थापक सम्पादक के रूप में एक दशक तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में काम किया। सम्प्रति भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष तथा नेटजाल डाट काम के सम्पादकीय निदेशक हैं।