राजनांदगाँव। भारत की नयी शिक्षा नीति के मसौदे में विश्व वंदनीय संत-कवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की सलाह और संदेश का समावेश एक सशक्त कदम है। यह भारत और भारतीयता की जड़ों को सींचने के समान है। इससे नौनिहालों को बुनियादी संस्कार का नया आधार मिलेगा।प्रमुख विशेषज्ञों में आचार्य विद्यासागर महाराज को का नाम ड्राफ्ट दस्तावेज के पृष्ठ क्रमांक 455 पर भारत रत्न सीएनआर राव जी के बाद शामिल है।
यह नीति अब शिक्षा को रटने की जगह पर जीने की दिशा में आगे बढ़ाएगी। करीब 34 वर्षों के बाद देश की शिक्षा नीति में परिवर्तन हुआ है। ऐसा मानना है नई शिक्षा नीति आगामी कई वर्षों तक देश की अधोसंरचना बनकर देश को समृद्ध बनाएगी। यह अनोखा अवसर है कि एक संत आचार्य और दिव्य साहित्य सर्जक को देश की शिक्षा नीति की संरचना की महान प्रेरक शक्ति के रूप में सम्मिलित किया गया है।
2017 में डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजित आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज के दर्शन व चर्चा करने पद्मविभूषण, मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित नई शिक्षा नीति के अध्यक्ष श्री कस्तूरीरंगन जी पधारे थे। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था कि मैंने पढ़ा व सुना था कि महापुरुष बहुत महान होते हैं। उनकी कथनी व करनी एक होती है। पर जिन्दगी में पहली बार मैं महापुरुष के जीवंत दर्शन कर रहा हूँ।
नयी शिक्षा नीति में पूज्य गुरुदेव ने 53 मिनिट में जो बात शिक्षा को लेकर कही थी जिसमें मातृभाषा आदि विषयों की प्रधानता थी। नौ सदस्यीय टीम ने गुरुदेव के संकेतों का पालन कर शिक्षा नीति में बड़े बदलाव किए हैं।
इससे हमारी नयी पीढ़ियों को बुनियादी संस्कारों से जुड़ने और अपनी माटी, अपनी भाषा और और जीवन व्यवहार के करीब आने के नए अवसर जुटेंगे। यह वास्तव में परम सौभाग्य का प्रसंग है।
(लेखक राजनांदगाँव में प्रोफेसर हैं व समसायिक विषयों पर लिखते हैं)
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