राजस्थान के उदयपुर में आपको आंचलिक संस्कृति के दर्शन एक जगह करने हो तो चले आइए शहर के मध्य सुखाड़िया सर्किल के समीप स्थापित भारतीय लोक कला मंडल संग्रहालय को देखने। इनमें आपको लोककलाओं, कठपुतलियों, राजस्थानी लोक नृत्य, लोक वाद्यों,. गवरी के पात्र, पड़, कावड कला,मुखोटो, से सम्बंधित अलग -अलग कक्ष देखने को मिलेंगे। इन कक्षों में लकड़ी और कांच से बने शोकेसों में नमूनों को। खूबसूरती के साथ आकर्षक रूप में प्रदर्शित किया गया है।
लोक कला मंडल के ऊपरी ताल पर पहुंचते ही बंधेज साडी, पिछवाई, बस्सी के बारूद के खेल और फड चित्रकला के नमूनों को तथा ब्लाक प्रिंटिंग के ब्लॉक्स को प्रदर्शित किया गया है। आगे कक्ष में सांझी कला, मांडना कला, छापें, पाग और पगड़ियो को तथा मेहँदी के मांडनो को प्रदर्शित किया गया है। उसके आगे बने तीन कक्षों में फड़ चित्रकला, कावड कला,माताजी के देवरे को तथा बस्सी में लकड़ी से बने विभिन्न मुखोटो,जानवरों के मुखो तथा गवरी के पात्रो को प्रदर्शित किया गया है।
पास के कक्ष में राजस्थानी लिक वाद्य यंत्रों एवम बजाने वाले कुछ प्रमुख राजस्थानी कलाकारों के चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। भवन की एक गैलेरी पूरी तरह से भील जनजाति के लोक जीवन,संस्कृति, त्योहारों तथा परम्पराओं से सम्बंधित है। दूसरी गैलेरी में अन्य जनजातियों के आभूषण तथा वस्त्र आदि को प्रदशित किया गया है।
भवन के ऊपरी तल में आखिरी में लोक कला मंडल के संस्थापक स्वर्गीय देवी लाल सामर के नाट्यमंचन से सम्बंधित फोटोग्राफस को प्रदर्शित किया गया है साथ ही लोक कला मंडल द्वारा कठपुतली निर्माण से सम्बंधित विषयों पर संपादित तथा प्रकाशित पुस्तकों को भी प्रदर्शित किया गया है। यहां एक कठपुतली नृत्य हेतु थियेटर बना हुआ है जिसमे थोड़ी थोड़ी देर बाद पर्यटकों की आवक के अनुसार कठपुतली नृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इसमें एक बार में 25 दर्शकों को शो दिखानप की व्यवस्था है। पर्यटकों की संख्याअधिक होने पर मुख्य भवन के बाहर एक थियेटर और बना हुआ है।मुख्य भवन के पीछे एक विशाल रंगमंच भी बना है जिसमें लोक कला मंडल द्वारा प्रतिवर्ष अनेक कार्यक्र मों एवं काबुलीवाला जैसे कठपुतली कार्यक्रमों का मंचन किया जाता है।
लोक कला मंडल द्वारा कठपुतली बनाने वाले हस्तशिल्पियों को भारतीय कठपुतललियों का प्रचार प्रसार करने, उन्हें कठपुतली बनाने की कला सिखाने तथा विदेशी कठपुतलियां बनाने की कला सीखने के लिए विदेश भेजा जाता है। इसी प्रकार विदेशी कठपुतलि यों का नाच दिखाने वाले और कठपुतलियों का निर्माण करने वाले कला कारों को उदयपुर आमंत्रित किया जाता है।
आंचलिक लोककलाओं का संरक्षण, विकास, उत्थान, एवं प्रचार प्रसार करने के महत्ती उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए विश्वविख्यात लोक कलाविद, पद्दम श्री स्वर्गीय देवीलाल सामर ने 22 फरवरी 1952 को लोक कला मंडल की स्थापना का उददेश्य से भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना की थी। संग्रहालय के बाहर परिसर में इनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। भवन दूर से ही लुभाता है। लोक कलाओं के संरक्षण में यह संग्रहालय राजस्थान का अनुपम संग्रह लिए हुए हैं।