स्वदेशी जागरण मंच ने मांग की है कि वायरस की उत्पत्ति की द्रुत गति से जाँच की जाए। पिछले 15 महीनों में दुनिया और इंसानियत पर कहर ढाने वाले इस वायरस की उत्पत्ति के बारे में जानने का हर किसी को अधिकार है। यह मुद्दा, कि कोरोना वायरस, जो महामारी का कारण बना, वुहान (चीन) में एक प्रयोगशाला में बनाया गया था, जो बूझ कर या गलती से प्रयोगशाला से बाहर आया था, लगभग शुरू से ही चर्चा में रहा है। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इसे बार-बार ‘चीनी वायरस’ बता रहे थे।
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजनक श्री अश्वनी महाजन ने कहा कि हाल ही के कई नए शोध निष्कर्षों से पता चला है कि वायरस वास्तव में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की प्रयोगशाला से उत्पन्न हुआ था। यह समझना होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना वायरस की उत्पत्ति का अध्ययन तो कर रहा है, लेकिन केवल प्रतीकात्मक रूप से। कोरोना वायरस की उत्पत्ति के स्रोत को जाने बिना हम इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह स्वीकार नहीं किया है कि वायरस को प्रयोगशाला से छोड़ा गया था और मार्च 2021 में प्रकाशित इसकी रिपोर्ट में कहा गया कि यह चीन के पशु बाजार से निकलने वाला वायरस था। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वायरस चमगादड़ से निकला था और दूसरे जानवर के जरिए इंसानों में दाखिल हुआ था। हालांकि, रिपोर्ट ने वुहान की प्रयोगशाला से इसकी उत्पत्ति से भी इंकार नहीं किया।
चूंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन के भारी दबाव में है, इसलिए यह स्पष्ट रूप से वायरस की उत्पत्ति को वुहान प्रयोगशाला से नहीं जोड़ पाया है। लेकिन इस आशंका से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता। इसलिए, संगठन ने इस रिपोर्ट को ‘अनिर्णीत’ बताकर अमेरिका को भी संतुष्ट करने की कोशिश की है। साथ ही रिपोर्ट में शामिल हर संबंधित मुद्दे पर कहा गया है कि इसके लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है. लेकिन विशेषज्ञों के एक बड़े समूह ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है और वे लगातार इस पर आगे की जांच कर रहे हैं। हाल के महीनों में, कई अध्ययन और शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं, जो स्पष्ट रूप से वुहान प्रयोगशाला से वायरस के जानबूझकर या आकस्मिक रिसाव का संकेत देते हैं। दुनिया भर के ज्यादातर विशेषज्ञों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन मुद्दों की जांच नहीं की जो उसे करना चाहिए था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके प्रमुख श्री टेड्रोस अधानोम इस महामारी की शुरुआत से ही संदेह के घेरे में हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच के निदेशक श्री केन रोथ ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘संस्थागत मिलीभगत’ का दोषी है। उन्होंने यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन के उस बयान के संदर्भ में कही, जो चीन के झूठ की अंध-स्वीकृति से निकला था, जब उसने जनवरी 2020 में इस वायरस के मानव से मानव में संचरण से इनकार किया था। इसलिए, डब्ल्यूएचओ वास्तव में अपनी विश्वसनीयता खो चुका है।
यह कोई रहस्य नहीं है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का 86 मिलियन फंड चीन से आता है, 532 मिलियन गेट्स फाउंडेशन से और 371 मिलियन गेट्स फाउंडेशन की अपनी रचना, ‘गावि अलाइयन्स’ से आता है। यही कारण है कि यह संगठन चीन और गेट्स फाउंडेशन के जबरदस्त प्रभाव में है। गौरतलब है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आ रही इन आवाजों को नजरअंदाज करते हुए कि वायरस की उत्पत्ति चीन से हुई, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कभी भी चीन की भूमिका पर सवाल नहीं उठाया। बिल गेट्स ने भी चीन का बचाव करने की कोशिश की और कहा कि वास्तव में चीन ने महामारी के प्रकोप के बाद से बहुत अच्छा काम किया है और यह कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एक ‘अभूतपूर्व’ संगठन है। यानी यदि सूत्रों को जोड़ें तो हम चीन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और गेट्स फाउंडेशन के बीच के अपवित्र संबंध को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। और यह भी कोई रहस्य नहीं है कि श्री टेड्रोस अधानोम को विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक के रूप में नियुक्त करने में चीन ने एक प्रमुख भूमिका निभाई थी।
श्री महाजन ने कहा कि यह घिनौना रिश्ता किस तरह दुनिया में तबाही मचा रहा है यह भी साफ तौर पर सामने आ रहा है। यह वायरस, इसे कोरोना वायरस कहें, वुहान वायरस या चीनी वायरस, चीन और चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से (गलती से या जैन बूझ कर ) निकाला और इसके बारे में नवंबर 2019 में पता चला, लेकिन इस संबंध में दुनिया को जनवरी के अंत तक जानकारी दी गई। इस देरी में साजिश भी परिलक्षित हो रही है। गौरतलब है कि 14 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ट्वीट कर इस वायरस के मानव-से-मानव संक्रमण से इंकार किया था। डब्ल्यूएचओ के ट्वीट में कहा गया है, “चीनी अधिकारियों द्वारा की गई प्रारंभिक जांच में #कोरोनावायरस (#वुहान #चीन में पहचाने गए 2019-nCoV0) के मानव-से-मानव संचरण का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस रवैये के कारण इतने भयानक वायरस के बावजूद मानव-से-मानव संक्रमण को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा सका। चीन से दुनिया भर के देशों के लिए उड़ानें बेरोकटोक जारी रहीं और यह वायरस चीन से पूरी दुनिया में फैल गया। इस भूल की जिम्मेदारी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नहीं ली। हालांकि, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होने की घोषणा की और इसकी फंडिंग भी रोक दी गई। हालांकि किसी अन्य देश ने इतना कठोर कदम तो नहीं उठाया है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की छवि को बड़ा झटका लगा है।
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वाशिंगटन पोस्ट में लेखों और कई अन्य शोध अध्ययनों ने अब इस खेल में चीन के साथ अमेरिका के संस्थानों और व्यक्तियों की भागीदारी का भी खुलासा किया है। सामने आ रहे तथ्यों के अनुसार, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के शोधकर्ता ‘गेन ऑफ फंक्शन’ रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, जिसका उद्देश्य उच्च संक्रामकता वाले कोरोनावायरस के काइमेरिक संस्करण विकसित करना था, यानी वह प्रयोग जिसने संभवतः वायरस कोविड-19 को विकसित किया गया। इस तथ्य को कई वैज्ञानिक प्रकाशनों और प्रसिद्ध विज्ञान लेखकों जैसे निकोलस वेड द्वारा प्रकाश में लाया गया है। यह स्थापित करने के लिए बहुत सारे प्रकाशित डेटा हैं कि कोविड -19 की आनुवंशिक संरचना में प्रयोगशाला में इंजीनियरिकृत एक काइमेरिक वायरस के हस्ताक्षर हैं।
इस संदर्भ में मिस्टर पीटर दासज़क की भूमिका और भी संदिग्ध है। यह सज्जन विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वुहान भेजे गए आयोग के अहम सदस्य रह चुके हैं। यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने ‘लैंसेट’ नाम की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में एक पेपर प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि वायरस के प्रसार में प्रयोगशाला की कोई भूमिका नहीं है।
लेकिन पत्र में यह नहीं बताया गया कि पीटर दासज़क न्यूयॉर्क स्थित ‘इको हेल्थ एलायंस’ के माध्यम से वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के लिए फंडिंग की व्यवस्था कर रहे हैं। यानी हितों के टकराव का खुलासा नहीं किया गया था। चूंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन का दबदबा है, इसलिए वायरस के उद्भव की जांच करने हेतु इसके द्वारा भेजे गए आयोग द्वारा की गई जांच भी संदेह के घेरे में आती है।
इन लोगों के अलावा, कुछ बहुत ही उच्च पदस्थ लोगों के नाम भी सामने आ रहे हैं, जिन्होंने वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में ‘गेन ऑफ फंक्शन्स’ शोध के वित्तपोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनकी और आगे जांच की आवश्यकता होगी ताकि मानव जाति के लिए कहर पैदा करने वाले इतिहास की सबसे खराब महामारी के वायरस की उत्पत्ति के बारे में निर्णायक सबूत तक पहुंच कर उसकी जिम्मेदारी तय की जा सके।
स्वदेशी जागरण मंच भारत और दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय और वैश्विक नेताओं से वायरस की उत्पत्ति के मुद्दे की जड़ तक पहुंचने के लिए ठोस प्रयास करने और वायरस के निर्माण और प्रसार में शामिल लोगों या देशों की जिम्मेदारी तय करने का आह्वान करता है। यह नुकसान के मुआवजे के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी स्थिति फिर कभी उत्पन्न न हो।
डॉ अश्विनी महाजन
राष्ट्रीय सह संयोजक