Saturday, November 23, 2024
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सर्वोच्च न्यायालय में गौवंश की हत्या को लेकर चले मुकदमे की सच्चाई

पहले आप सब ये जान ले कि भारत में ३६०० कत्लखाने ऐसे हैं जिनके पास गाय काटने का लाइसेंस है। इसके अलावा ३६००० कत्लखाने गैर-कानूनी चल रहे हैं। प्रतिवर्ष ढाई करोड़ गायों का क़त्ल किया जाता है। एक से सवा करोड़ भैंसो का, और २ से ३ करोड़ सूअरों का; बकरे-बकरियां, मुर्गे- मुर्गियां आदि छोटे जानवरों की संख्या भी करोड़ो में है। गिनी नहीं जा सकती। तो भारत एक ऐसा देश बन गया है जहाँ क़त्ल ही क़त्ल होता है। ये सब जब उनको सहन नहीं हुआ, तब सन १९९८ में राजीव भाई और राजीव भाई जैसे कुछ समविचारी लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा किया। भारत में एक संस्था है, अखिल भारतीय गौ सेवक संघ, जिससे राजीव भाई जुड़े हुए थे। इस संस्था का मुख्य कार्यालय राजीव भाई के शहर वर्धा में है। एक दूसरी संस्था है उसका नाम है अहिंसा आर्मी ट्रस्ट। तो दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया और बाद में पता चला कि गुजरात सरकार भी मुक़दमे में शामिल हो गयी।

सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा किया गया कि गाय और गोवंश की हत्या नहीं होनी चाहिए। तब सामने बैठे कसाई लोगो ने कहा क्यों नहीं होनी चाहिए? जरूर होनी चाहिए। राजीव भाई की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गयी कि ये एक-दो जज का मामला नहीं है। इसमें बड़ी बेंच बनायीं जाये। ३-४ साल तो सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया। बाद में मान लिया कि चलो इसके लिए कोंस्टीटूशनल बेंच बनायीं जाएगी। भारत के थोड़े दिन पहले चीफ जस्टिस रहे श्री आर. सी. लाहोटी ने अपनी अध्यक्षता में बनायी ७ जजों की एक कोंस्टीटूशनल बेंच से सितम्बर २००५ तक मुक़दमे की सुनवाई चली।
कसाइयों के तरफ से लड़ने वाले भारत के सभी बड़े-बड़े वकील जो ५०-५० लाख तक फीस लेते हैं सभी उनके पक्ष में थे। राजीव भाई के तरफ से लड़ने वाला कोई बड़ा वकील नहीं क्योंकि फीस देने को इतना पैसा नहीं। राजीव भाई ने अदालत से कहा कि हमारे पास तो कोई वकील नहीं है तो क्या करेंगे? तो अदालत ने कहा कि हम अगर आपको वकील दें तो राजीव भाई ने कहा, बड़ी मेहरबानी होगी या फिर आप हमें ही बहस का मौका दे दें तो भी बड़ी मेहरबानी होगी। तो उन्होंने कहा कि हाँ आप ही बहस कर लीजिये। हम आपको एम इ एस्युरि देंगे यानि कोर्ट के द्वारा दिया गया वकील। केस लड़ना शुरू किया।

मुक़दमे में कसाइयों द्वारा गाय काटने के लिए वही सारे कुतर्क रखे गए जो कभी शरद पवार द्वारा बोले गए या इस देश के ज्यादा पढ़े लिखे लोगों द्वारा बोले जाते हैं। जो देश के पहले प्रधान मंत्री नेहरू द्वारा कहे गए थे।

कसाइयों का पहला कुतर्क : गाय जब बूढी हो जाती है तो बचाने में कोई लाभ नहीं है। उसे क़त्ल करके बेचना ही बढियां है। हम भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बना रहे हैं क्योंकि गाय का मांस एक्सपोर्ट कर रहे हैं।

दूसरा कुतर्क: भारत में गाय के चारे की कमी है। भूखी मरे इससे अच्छा ये है कि हम उसका क़त्ल करके बेचें। तीसरा कुतर्क: भारत में लोगों को रखने की जमीन नहीं है तो गायों को कहाँ रखे? चौथा कुतर्क: इससे विदेशी मुद्रा मिलती है। सबसे खतरनाक कुतर्क जो कसाइयों की तरफ से दिया गया कि गाय की हत्या करना हमारे धर्म इस्लाम में लिखा हुआ है (this is our religious right). कसाई लोग कौन है? आप जानते हैं? मुसलमानो में एक कुरैशी समाज है जो सबसे ज्यादा जानवरों की हत्या करता है। उनकी तरफ से यह कुतर्क आये। राजीव भाई की तरफ से बिना क्रोध प्रकट बहुत ही धैर्य से इन सब कुतर्को का तर्कपूर्वक जवाब दिया गया।

उनका पहला कुतर्क था मांस बेचते हैं तो देशी को आमदनी होती है। तो राजीव भाई ने सारे आंकड़े सुप्रीम कोर्ट में रखे कि एक गाय को जब काट देतें हैं तो उसके शरीर में से कितना मांस निकलता है? कितना खून निकलता है? कितनी हड्डियां निकलती है? एक स्वस्थ गाय का वजन ३ से साढ़े ३ क्विंटल होता है। उसे जब काटते हैं तो उसमें से मात्र ७० किलो मांस निकलता है। एक किलो गाय का मांस जब भारत से निर्यात होता है तो उसकी कीमत है लगभग ५० रुपये। तो ७० किलो का ५० से गुणा करने पर ३५०० रुपये होता है। खून जो निकलता है लगभग २५ लीटर होता है। जिसमें कुल कमाई १५०० से २००० होती है। फिर हड्डियां निकलती है। वो भी ३०-३५ किलो है जो १०००-१२०० के लगभग बिक जाती है। तो कुल मिलकर एक गाय का जब क़त्ल करें और मांस, हड्डियों, खून समेत बेचे तो सरकार को या क़त्ल करने वाले कसाई को ७००० से ज्यादा नहीं मिलता। फिर राजीव भाई द्वारा कोर्ट के सामने उलटी बातें रखी गयी। हमने क़त्ल किया तो ७००० मिलेगा और जिन्दा रखा तो कितना मिलेगा? तो उसका जोड़ यह है। एक स्वस्थ गाय एक दिन में १० किलो गोबर देती है और ढाई से ३ लीटर मूत्र देती है। गाय के एक किलो गोबर से ३३ किलो खाद बनती है। जिसे जैविक खाद कहते हैं। तो कोर्ट ने कहा how is it possible? राजीव भाई ने कहा कि आप समय दीजिये और स्थान दीजिये। हम आपको यही सिद्ध करके बताते हैं। जब कोर्ट ने आज्ञा दी तो राजीव भाई ने उनको पूरा करके दिखाया और कोर्ट से कहा कि आई. आर. सी के वैज्ञानिक को बुला लो और टेस्ट करवा लो। तब गाय का गोबर भेजा गया टेस्ट करने के लिए। अनेक ने कहा कि इसमें १८ पोषक तत्व हैं जो सभी खेत की मिटटी को चाहिए। जैसे मैग्रीज़, फॉस्फोरस, पोटासियम, कैल्शियम, आयरन, कोबाल्ट, सिलिकॉन, आदि आदि। रासायनिक खाद में मुश्किल से तीन होतें है। तो गाय का खाद रासायनिक से १० गुना ज्यादा ताकतवर है यह तर्क कोर्ट ने माना।

राजीव भाई ने कहा अगर आपके प्रोटोकॉल के खिलाफ न जाता हो तो आप चलिए हमारे साथ और देखिये कहाँ-कहाँ हम १ किलो गोबर से ३३ किलो खाद बना रहे हैं। कहा मेरे अपने गाँव में मैं बनाता हूँ। मेरे माता-पिता दोनों किसान है। पिछले १५ साल से हम गोबर के खाद से ही खेती कर रहे हैं। १ किलो खाद का भाव अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ६ रुपये है। तो रोज १० किलो गोबर से ३३० किलो खाद बनेगी जिसे ६ रुपये किलो के हिसाब से बेचें तो १८००-२००० रुपये रोज के। गाय के गोबर देने में कोई संदेह नहीं होता। हर दिन मिलता है। तो साल में कितना? १८०० का ३६५ से गुणा कर लें। गाय की सामान्य उम्र २० साल है और वो जीवन के अंतिम दिनों तक गोबर देती है। अगर १८०० गुणा ३६५ गुणा २० कर लें तो १ करोड़ से ऊपर तो केवल गोबर से मिल जाएगा। हज़ारों लाखों वर्ष पहले हमारे शास्त्रों में लिखा है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का वास है। मैकाले के मानस पुत्र जो आधुनिक शिक्षा से पढ़कर निकले हैं, जिन्हे अपना धर्म, संस्कृति, सभ्यता सब पाखण्ड ही लगता है, हमेशा इस बात का मजाक उड़ाते हैं कि गाय के गोबर में लक्ष्मी? तो यह उन सबके लिए हमारा उत्तर है। क्योंकि यह बात सिद्ध होती है कि गाय के गोबर से खेती कर, अनाज उत्पादन कर, धन कमाया जा सकता है और पूरे भारत का पेट भरा जा सकता है।

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अब बात करते हैं गोमूत्र की। रोज का दो-सवा दो लीटर तो होता ही है। इससे औषधियां बनती हैं – डायबिटीज, arthritis, bronchitis, bronchial asthma, tuberculosis, osteeomyelities, आदि ४८ रोगों की औषधियां बनती है। गाय के मूत्र की बाजार में दवा के रूप में कीमत ५०० रु है। वो भी भारत के बाजार में। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तो इससे भी ज्यादा है। आपको मालूम है? अमेरिका में गौमूत्र पेटेंटड है। और अमेरिका सरकार हर साल भारत से गाय का मूत्र इम्पोर्ट करती है और कैंसर और डाईबेटिस की मेडिसिन बनाती है। अमेरिका में गोमूत्र पर १ नहीं, २ नहीं, बल्कि ३ पेटेंट है। तो गाय के मूत्र से लगभग रोज की ३००० की आमदनी बनती है। एक साल का ३००० गुणा ३६५ बराबर १०९५०००. २० साल का ३०० गुना ३६५ गुना २० बराबर २१९००००० इतना तो गाय के गोबर और मूत्र से ही हो गया।

इसी गाय के गोबर से एक गैस निकलती है जिसे मीथेन कहते हैं। मीथेन वही गैस है जिससे आप अपने रसोई घर का सिलिंडर चला सकते हैं और जरुरत पड़ने पर ४ पहियों वाली गाडी भी चला सकते हैं। जैसे एल. पी. जी. गैस से गाड़ी चलती है वैसे मीथेन गैस से भी गाड़ी चलती है। जब न्यायधीश को विश्वास नहीं हुआ तब राजीव भाई ने कहा अगर आप आज्ञा दे तो आपकी कार में मीथेन गैस का सिलिंडर लगवा देते हैं। आप चलाकर देख लीजिये। उन्होंने आज्ञा दी और राजीव भाई ने सिलिंडर लगवा दी। जब जज साहब ने ३ महीने गाड़ी चलायी तब उन्होंने कहा excellent. क्योंकि खर्च आता है मात्र ५० से ६० पैसे प्रति किलोमीटर जबकि डीजल से आता है ४ रु किलोमीटर। मीथेन गैस से गाड़ी चले तो धुंआ बिलकुल नहीं निकलता है। डीजल से चले तो धुंआ ही धुंआ। मीथेन से चलने वाली गाडी शोर भी बिलकुल नहीं करती।

तो ये सब जज साहब के समझ में आ गया। फिर हमने कहा रोज का १० किलो गोबर इकठ्ठा करें और उसका ही इस्तेमाल करें तो एक साल में कितनी मीथेन गैस निकलती है ? २० साल में कितनी मिलेगी? भारत में १७ करोड़ गाय हैं। सबका गोबर एक साथ इकठ्ठा करें और उसका ही इस्तेमाल करें तो १ लाख ३२ हज़ार करोड़ की बचत इस देश को होती है। पूरे देश का ट्रांसपोर्टेशन बिना डीजल, बिना पेट्रोल के चला सकते हैं। अरब देशों से भीख मांगने की जरुरत नहीं और पेट्रोल-डीजल खरीदने के लिए अमेरिका से डॉलर खरीदने की जरुरत नहीं। अपना रुपया भी मजबूत!

जब इतने सारे कैलकुलेशन राजीव भाई ने कोर्ट के सामने रखे तो सुप्रीम कोर्ट के जज साहब ने मान लिया कि गाय की हत्या करने से ज्यादा उसको बचाना आर्थिक रूप से लाभकारी है। जब कोर्ट की यह ओपिनियन आई तो ये मुस्लिम कसाई भड़क गए। उनको लगा कि अब केस उनके हाथ से गया। क्योंकि उन्होंने कहा था कि गाय का क़त्ल करो तो ७००० की इनकम है। लेकिन इधर राजीव भाई ने सिद्ध कर दिया कि क़त्ल न करो तो लाखों करोड़ों की इनकम है। फिर उन्होंने अपना ट्रम कार्ड खेला। उन्होंने कहा कि गाय का क़त्ल करना हमारा धार्मिक अधिकार है (this is our religious right.) राजीव भाई ने कोर्ट में कहा अगर ये इनका धार्मिक अधिकार है तो इतिहास में पता करो कि किस-किस मुस्लिम राजा ने अपने इस धार्मिक अधिकार का प्रयोग किया? इस पर कोर्ट ने कहा ठीक है एक कमीशन बैठाओ, हिस्टोरियन को बुलाओ और जितने मुस्लिम राजा भारत में हुए सबकी हिस्ट्री निकालो, दस्तावेज निकालो। किस – किस राजा ने अपने इस धार्मिक अधिकार का पालन किया यह पता लगाया जाये।unnamed (4)

पुराने दस्तावेज जब निकले तो उससे पता चला कि भारत में जितने भी मुस्लिम राजा हुए, एक ने भी गाय का क़त्ल नहीं किया। इसके विपरीत कुछ राजाओं ने गायों के क़त्ल के खिलाफ कानून बनाये। उनमे से एक का नाम था बाबर। बाबर ने अपने पुस्तक बाबरनामा में लिखवाया है कि मेरे मरने के बाद भी गाय को क़त्ल न करने का कानून जारी रहना चाहिए। तो उसके पुत्र हुमायु ने भी उसका पालन किया और उसके बाद जितने मुग़ल राजा हुए सबने इस कानून का पालन किया। including औरंगज़ेब !

फिर दक्षिण भारत में एक राजा था हैदर अली, टीपू सुलतान का बाप। उसने एक कानून बनवाया था कि अगर कोई गाय की हत्या करेगा तो हैदर उसकी गर्दन काट देगा और हैदर अली ने ऐसे सैकड़ो कसाइयों की गर्दन काटी थी जिन्होंने गाय को काटा था। फिर हैदर अली का बेटा आया टीपू सुलतान तो उसने कानून को थोड़ा हल्का कर दिया। उसने कानून बना दिया कि हाथ काट देंगे। तो टीपू सुलतान के समय में कोई भी अगर गाय काटता था तो उसका हाथ काट दिया जाता था। ये सब दस्तावेज जब कोर्ट के सामने आये तो राजीव भाई ने जज साहब से कहा कि आप ज़रा बताइये अगर इस्लाम में गाय का क़त्ल करना धार्मिक अधिकार होता तो इन्होने क्यों नहीं गाय का क़त्ल करवाया? बाबर तो कट्टर इस्लामी था। ५ वक्त की नमाज़ पढ़ता था। हुमायु और औरंगज़ेब तो ज्यादा कट्टर था। तब गाय का क़त्ल रोकने के लिए क्यों कानून बनवाए गए? क्यों हैदर अली ने कहा कि वो गाय का क़त्ल करने वाले के हाथ काट देगा?

राजीव भाई ने कोर्ट में कहा कि कुरआन शरीफ, हदीस, आदि जितनी पुस्तक है हम उन्हें कोर्ट में पेश करते हैं और कहाँ लिखा है गाय का क़त्ल करो ये जानना चाहते हैं। और आपको पता चलेगा कि इस्लाम की कोई भी पुस्तक में नहीं लिखा है कि गाय का क़त्ल करो। हदीस में तो लिखा हुआ है कि गाय की रक्षा करो क्योंकि वह तुम्हारी रक्षा करती है। पैगम्बर मुहम्मद साहब का कहना है गाय अबोल जानवर है इसलिए उस पर दया करो और एक जगह लिखा है गाय का क़त्ल करोगे तो दोजख में भी जमीन नहीं मिलेगी। राजीव भाई ने कोर्ट से कहा अगर कुरान यह कहती है तो फिर ये गाय का क़त्ल धार्मिक अधिकार कब से हुआ? पूछो इन कसाइयों से! कसाई बौखला गए। राजीव भाई ने कहा अगर मक्का मदीना में भी कोई किताब हो तो ले आओ उठा के!

अंत में कोर्ट ने उन्हें १ महीने का परमीशन दिया कि जाओ और दस्तावेज ढूंढ कर लाओ जिसमें लिखा हो गाय का क़त्ल इस्लाम का मूल अधिकार है। एक महीने तक कोई भी दस्तावेज नहीं मिला। कोर्ट ने कहा अब हम ज्यादा समय नहीं दे सकते। और अंत २६ अक्टूबर २००५ आ गया।

सुप्रीम कोर्ट ने एक इतिहास बना दिया और उन्होंने कहा कि “ गाय को बचाना संवैधानिक कर्तव्य है और गाय को काटना संवैधानिक अपराध है।“ सरकार का तो है ही, नागरिक का भी है। अब तक जो संवैधानिक कर्तव्य थे जैसे – संविधान का पालन करना, राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना, क्रांतिकारियों का सम्मान करना, देश की एकता और अखंडता को बनाये रखना आदि; अब इसमें गौ की रक्षा भी जुड़ गयी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत की ३४ राज्यों की सरकार की जिम्मेदारी है कि वे गाय का क़त्ल अपने-अपने राज्य में बंद कराये और किसी राज्य में अगर गाय का क़त्ल होता है तो उस राज्य के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और चीफ सेक्रेटरी की जिम्मेदारी है। वे अपना काम पूरा नहीं कर रहे तो यह राज्यों के लिए संवैधानिक जवाबदारी है और नागरिको के लिए संवैधानिक कर्तव्य।

कानून दो स्तर पर बनाये जाते हैं। एक जो केंद्र सरकार बना सकती है और एक ३५ राज्यों की राज्य सरकार बना सकती है, अपने-अपने राज्यों में। अगर केंद्र सरकार ही बना दे तो किसी राज्य सरकार को बनाने की जरुरत नहीं। केंद्र सरकार का कानून पूरे देश में लागू होगा। तो आप सब केंद्र सरकार पर दबाव बनायें। दबाव कैसे बनता है? आपको हज़ारों, लाखों की संख्या में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या राज्यों के मुख्यमंत्री को पत्र लिखना है और इतना ही कहना है कि २६ अक्टूबर २००५ को जो सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आया है, उसे लागू करो। आप अपने आस-पड़ोस, गली-मोहल्ले, शहर के लोगों से बात करना शुरू करें और उन्हें गाय का महत्व समझाए। देश के लिए गाय की आर्थिक योगदान बताएं। उन्हें भी देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री को पत्र लिखने का निवेदन करें। इतना दबाव डालें कि २०१४ के चुनाव में लोग उसी सरकार को वोट दे जो गौहत्या के खिलाफ इस जजमेंट को पूरे देश में लागु करे।

अंततःक्रन्तिकारी मंगल पांडे इतिहास बनाकर फांसी पर चढ़ गया लेकिन गाय की चर्बी के कारतूस उसने अपने मुंह से नहीं खोले। जिस अँगरेज़ अधिकारी ने उसको मजबूर किया उसको मंगल पांडे ने गोली मार दी। इसलिए हम कहते है कि हमारी तो आज़ादी का इतिहास शुरू होता है गौरक्षा से। अर्थात गाय की रक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी हमारी आज़ादी।

ये लेख प्रखर राष्ट्रवादी स्व. राजीव दीक्षित द्वारा समय –समय पर दिए गए व्याख्यानों के आधार पर तैयार किया गया है

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