गुरु पूर्णिमा पर हल्दी घाटी से द्वारिका तक निकलेगी गीता संदेश यात्रा
वर्धा, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की ओर से हल्दीघाटी युद्ध दिवस के उपलक्ष्य में 18 जून 2021 को ‘भगवद्गीता और महाराणा प्रताप : राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकार के सन्दर्भ में’ विषय पर तरंगाधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी दो सत्रों में सम्पन्न हुई. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल के नेतृत्व में 11 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने इसमें सहभागिता की.
संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में भारतीय चरित्र निर्माण संस्था के संस्थापक अध्यक्ष एवं गीता मर्मज्ञ रामकृष्ण गोस्वामी ने अगले माह गुरु पूर्णिमा पर गीता संदेश यात्रा निकालने का ऐलान किया. प्रस्तावित यात्रा 18 जुलाई को हल्दी घाटी से आरम्भ होगी और 24 जुलाई को द्वारका में समाप्त होगी।
यह यात्रा हल्दी घाटी चेतना अभियान का हिस्सा होगी। श्री गोस्वामी ने कहा कि महाराणा प्रताप पर गीता का प्रभाव जन्म से ही था । उन्होंने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए स्वधर्म का पालन करते हुए एक राजपुरुष के स्वधर्म के रूप में इसे चरितार्थ किया।
राजस्थान स्टेट डिजास्टर रेस्पांस फोर्स के कमांडेंट पंकज चौधरी ने कहा कि भगवद्गीता आज भी प्रासंगिक और अर्थपूर्ण है। उन्होंने युवाओं से महाराणा प्रताप के जीवनपर्यंत संघर्ष की प्रेरणा लेने का आहवान किया। पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक बी. नाग रमेश ने कहा कि महाराणा प्रताप को मध्ययुग के प्रथम सेनानी के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सत्यनिष्ठा से जीवन निर्वह कर एक सच्चे धर्म योद्धा के रूप में देश, धर्म, चारित्र्य और आत्मसन्मान की रक्षा के लिए संघर्ष किया। गुजरात राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रवि आर. त्रिपाठी ने कहा कि हमें साथ मिलकर भारत को विश्व गुरू बनाने के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने स्वयंशासन को विकसित कर महाराणा प्रताप के जीवन आदर्श के अनुसरण का आहवान किया। राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गोपाल कृष्ण व्यास ने कहा कि महाराणा प्रताप जैसे लोगों ने इस देश को बनाया है। आज के समय में देश के स्वाभिमान को कायम रखने के लिए महाराणा प्रताप के विचारों से प्रेरणा ग्रहण करने की आवश्यकता है।
अध्यक्षीय उदबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि हल्दीघाटी का युद्ध सभ्यता का युद्ध है। महाराणा प्रताप ने सर्वस्व न्योछावर कर इस युद्ध में विजय प्राप्त किया। उन्होंने भगवद्गीता का संदर्भ लेते हुए कहा कि यह ग्रंथ हमें सत् धर्म और आत्मगौरव के लिए कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करता है। उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध को पराक्रम और वैभव तथा संकल्प से सिद्धी का अजस्त्र इतिहास बताया। महाराणा प्रताप के संघर्ष पर प्रकाश डालते हुए कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि महाराणा प्रताप ने अनेक चुनौतियों का समुचित प्रत्यूत्तर दिया और न्याय और मानवाधिकार की रक्षा के लिए अहर्निश संघर्ष किया। हल्दीघाटी युद्ध दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को प्रो. शुक्ल ने भारत के इतिहास में एक अनूठी घटना करार दिया।
कार्यक्रम का संयोजन मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने किया। प्रति कुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सत्र का संचालन विश्वविद्यालय के दर्शन व संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. जयंत उपाध्याय ने किया। डॉ. वागीश राज शुक्ल ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। विश्वविद्यालय के कुलगीत से कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ।
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. एस. दुबे ने अपने वक्तव्य में राष्ट्रीय चेतना जगाने की आवश्यकता जताते हुए महाराणा प्रताप के विचारों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एच. वेंकटेश्वरलु ने मानवाधिकार के संदर्भ में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकारों की रक्षा की चर्चा की। जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक ऐमा ने नई पीढ़ी को सांस्कृतिक सभ्यता के संस्कार देने पर बल दिया । त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गंगाप्रसाद परसईन ने भगवद्गीता को एक अनिवार्य विषय के रूप में पढाने की आवश्यकता जताई। प्रो. जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस.एस. सांरगदेवोत ने कहा कि महाराणा प्रताप के विचार सार्वकालिक और प्रासंगिक है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने भगवद्गीता के समय काल के संदर्भों की चर्चा की। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने महाराणा प्रताप के विचार दर्शन को विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल करने पर बल दिया।
नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राममोहन पाठक ने महाराणा प्रताप के जीवन को प्रेरक बताते हुए उनके विचार नई पीढ़ी तक ले जाने की बात की।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. के. जी. सुरेश ने कहा कि धर्म को संकीर्णता से बाहर निकालने की आवश्यकता जताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में मानवाधिकार को जितना महत्व दिया गया है उतना किसी अन्य देशों में नहीं दिया है। उन्होंने अपेक्षा की कि इतिहास के पुनर्अध्ययन करने की पहल विश्वविद्यालयों से होनी चाहिए।
प्रो. भक्त फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, सोनीपत की कुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि महाराणा प्रताप मातृभूमि से प्रेम करने वाले सच्चे शासक थे। साँची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा ए. गुप्ता ने कहा कि एक दूसरे को आत्मसात करना ही मानवाधिकार है।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप जैसे अनेक नायक हैं।
स्वागत वक्तव्य मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने दिया. धन्यवाद ज्ञापन प्रति कुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने किया। दूसरे सत्र का संचालन स्त्री अध्ययन विभाग की अध्यक्ष डॉ. सुप्रिया पाठक ने किया। संगोष्ठी में अध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी तथा अकादमिक क्षेत्र से जुड़े विद्वानों ने सहभागिता की।
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साभार- वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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