महू. ‘एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक ज्ञान पहुंचाने का माध्यम है लायब्रेरी.’ यह बात दिल्ली लायब्रेरी बोर्ड के मेम्बर डॉ. शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने कहा. डॉ. त्रिपाठी डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू एवं डॉ. एसआर रंगनाथन पीठ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय वेबीनार को संबोधित कर रहे थे.
‘पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान का अनुसंधान में रूझान’ विषय पर मुख्य अतिथिस के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि भारत में पुस्तकालय का विचार 1918 में तब लौहार में स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में आया था. उन्होंने लायब्रेरी साइंस के जनक डॉ. रंगनाथन का स्मरण करते हुए कहा कि गणित के एक प्रोफेसर ने लायब्रेरी साइंस के क्षेत्र में एक कार्य किया कि आज हम उन्हें स्मरण कर रहे हैं. उन्होंने रंगनाथन को इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि विचार आना एक बात है और उसको व्यवहार में उतारना दूसरी बात है लेकिन डॅा रंगनाथन ने विचार को व्यवहार में उतारा. अनादिकाल से भारत की ज्ञान परम्परा का उल्लेख करते हुए डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि खिलजी ने जब नालंदा की लायब्रेरी को नष्ट करने के लिए आग लगायी तो यह आग तीन महीने तक जलती रही. इस लायब्रेरी में हस्तलिखित किताबों का विशाल संग्रह था. डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि भारत में गुरुकुल परम्परा थी और श्रुति परम्परा से ज्ञान का संचार होता था. लार्ड मैकाले के आने के पहले भारत में 96 प्रतिशत लोग साक्षर थे. उन्होंंने कहा कि समय बदल रहा है, टेक्लॉजी का जोर है और लायब्रेरी को भारतीय ज्ञान परम्परा से संबद्ध कर आगे बढ़ाया जाना चाहिए.
वेबीनार में बीज वक्तव्य में मध्यप्रदेश भोज ओपन विश्वविद्यालय के प्रो. किशोर जॉन ने कहा कि भारत में जब तक लायब्रेरी साइंस रहेगा, डॉ. एस आर रंगनाथन रहेंगे. उन्होंने अपनी शिक्षा के पुराने दिनों का स्मरण करते हुए कहा कि मुझे समझ नहीं आता था कि मैं लायब्रेरी साइंस पढ़ रहा हूं या डॉ. रंगनाथन. उन्होंने कुलपति प्रो. आशा शुक्ला को इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि वे डॉ. रंगनाथन की स्मृति में न केवल पीठ की स्थापना की बल्कि लायब्रेरी साइंस जैसे गंभीर मुद्दे पर विमर्श करा रही हैं. प्रो. जॉन ने अनुसंधान के विविध पक्षों पर सारगर्भित बातें कही और बदलते परिदृश्य का भी उल्लेख किया.
वेबीनार में वैष्णो विद्यापीठ के मुख्य पुस्तकालय अधिकारी एवं विषय विशेषज्ञ डॉ. जी. हेमासुंदर नायडू ने लायब्रेरी साइंस की बुनियादी बातों को विस्तार से बताया. उन्होंने लायब्रेरी साइंस के पांच नियमों से लोगों को अवगत कराया. वेबीनार में बिट्स मुंबई के लायब्रेरियन डॉ संजय कटारिया ने लायब्रेरी साइंस में आधुनिक बदलाव की चर्चा करते हुए डिजीटल वर्जन की बात की. खासतौर पर प्लेगरिज्म की चर्चा करते हुए कहा कि प्रामाणिक शोध के लिए यह आवश्यक है. वेबीनार के आरंभ में कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि डिजीटल हो जाने के बाद भी दस्तावेजीकरण जरूरी होता है. इस संदर्भ में उन्होंने पुस्तक लेखन की आवश्यकता एवं महत्ता पर प्रकाश डाला. वेबीनार के अंत में डॉ. दीपक कारभारी ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. चेतना बोरीवाल ने किया.