कई मोर्चों पर कई तरह के अलग अलग किस्म के राजनीतिक नुकसान भुगतने के बाद कांग्रेस की रणनीति तय करने वालों और राजनीतिक नफा नुकसान का गुणा भाग समझाने वालों को आखिर यह तथ्य याद आ ही गया है कि कांग्रेस कार्य समिति की बैठक अब तो कम से कम बुला ही ली जानी चाहिए। इस मामले को ऐसे भी देखा जा सकता है कि यह एक तरह का शुभ संकेत है कि कांग्रेस में असहमति की आवाजों को भी सुना जाने लगा है।
सोनिया गांधी अब कोई बड़ा खतरा मोल नहीं लेना चाहती। देश देख रहा है कि कांग्रेस बेहद गहरे आंतरिक संकट से जूझ रही है। इसीलिए कांग्रेस की राजमाता अब निर्णायक मुद्रा में आ गई हैं। सोनिया गांधी अगली 16 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुला रही हैं। इसीलिए पंजाब की विवादित खबरों के बीच कांग्रेस एक बार फिर से चमकने की कोशिश में है। पार्टी के अंदरूनी मामलों में दखल देने से बेदखल कर दिए गए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कांग्रेस में आगे की संभावनाएं लगभग क्षीण हो जाने के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की यह बहुप्रतीक्षित बैठक होने वाली है। एआइसीसी के दफ्तर में यह बैठक होगी। कांग्रेस जानती है कि उसके पास करिश्माई नेता के नाम पर श्रीमती सोनिया गांधी से ज्यादा बड़ा नेता और कोई नहीं है और जाहिर है कि सोनिया गांधी अपनी इस ख्याति, महिमा और गरिमा को भी अच्छी तरह समझती भी हैं, इसलिए अब वे निर्णायक मुद्रा में आ गई हैं। कहने को तो कांग्रेस कार्य समिति की यह बैठक में संगठनात्मक चुनावों, आगामी विधानसभा चुनावों और मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा होगी, लेकिन असल मामला कांग्रेस की हालत सुधारने का है। कांग्रेस की सबसे ताजा परेशानी यह है कि कांग्रेस के बड़े नेता पार्टी छोड़ – छोड़ कर जा रहे हैं।
हालांकि यह पुरानी बात हो गई है, मगर अब भी प्रासंगिक है कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाने की मांग की थी। कांग्रेस कार्यसमिति की यह बैठक 16 अक्टूबर को सुबह 10 बजे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय 24 अकबर रोड पर बुलाई गई है। माना जा रहा है कि पंजाब, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर सहित उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव सर पर हैं। इन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कोई बहुत चमकदार नतीजों की उम्मीद नहीं है। फिर भी आने वाले दिनों में इन राज्यों के बारे में फैसले भी लेने बहुत जरूरी हैं। कांग्रेस कार्यसमिति की इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की रूपरेखा पर भी कुछ निर्णय लिये जा सकते हैं। कांग्रेस कार्यसमिति वह सर्वोच्च समिति है, जो कांग्रेस के सभी नीतिगत निर्णय लेने के लिए अधिकृत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने इस बैठक की मांग की थी। सिब्बल ने तो साफ साफ कहा था कि उन्हें पता ही नहीं है कि कांग्रेस में आखिर निर्णय ले कौन रहा है। और यह भी कि कांग्रेस कार्य समिति में वर्तमान हालात के हर पहलू पर चर्चा होनी चाहिए तथा पार्टी के संगठनात्मक चुनाव भी कराये जाने चाहिए। आजाद ने भी लगभग नाराजगी की भाषा में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर बैठक का आग्रह किया था।
कांग्रेस कार्यसमिति की यह बैठक ऐसे समय में होने जा रही है जब वरिष्ठ कांग्रेस के पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी, महिला कांग्रेस के अध्यक्ष सुष्मिता देव, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो जैसे कुछ बड़े नेताओं सहित कई अन्य नेता पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हुए हैं। खासकर ममता बनर्जी की पार्टी में कांग्रेसी नेताओं का जाना बेहद पार्टी के लिए नुकसानदेह संकेत हैं। कांग्रेस जान रही हैं कि कुछ और बड़े नेता अगर पार्टी से निकल गए तो कांग्रेस को फिर से अपनी मजबूती को पाने में अच्छी खासी दिक्कत आ सकती है।
प्रशांत किशोर की सलाह पर पंजाब में असमय लिए गए गलत राजनीतिक निर्णयों के कारण मची राजनीतिक उथल पुथल से कांग्रेस की जबरदस्त किरकिरी हुई है। पंजाब की दिक्कत यह है कि वहां पर राहुल गांधी व प्रियंका गांधी ने जिन नवजोत सिंह सिद्धू को खुश करने के लिए अपनी पार्टी की ताकत से भी ज्यादा बड़ा राजनीतिक दांव खेला, वे ही सबसे ज्यादा नाराज हैं। मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाए जाने व उनके बागी तेवर अपनाने और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के हंगामे के दौरान ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी पहले ही अपनी सांकेतिक राजनीतिक भाषा में बहुत कुछ कह चुकी थी। समझ में तो सभी को आ रहा है कि पंजाब में अनावश्यक रूप से दिल्ली ने दखल देकर राहुल व प्रियंका ने कांग्रेस में बेवजह ही हंगामा खड़ा करवा दिया और उस वजह से देश भर में कांग्रेस की किरकिरी तो हुई है, उसकी अपनी ही राजस्थान व छत्तीसगढ़ की सरकारें भी अकारण ही असुरक्षा के माहौल में आ गईं।
हालांकि, राहुल गांधी के भाषण इन दिनों बहुत जोश से भरे होते हैं, लेकिन वे जितनी ताकत से जोश लगाते दिखते हैं, उतने ही वे ज्यादा कमजोर नजर आते हैं। दरअसल, उनकी बॉडी लेंग्वेज ही उनकी राजनीतिक ताकत का साथ देती नहीं दिखती। कांग्रेस की डोर सोनिया गांधी के हाथ हैं और राहुल कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष हैं, लेकिन राहुल गांधी का राजनीतिक दरबार नियमित रूप से सजता है और उस दरबार में उनके पिता राजीव गांधी से भी ज्यादा बड़ी उम्र के नेता हाजरी लगाते देखे जा सकते हैं, और वे भी उनके चरण छूते हैं, जो राजनीति, कांग्रेस व दुनियादारी को राहुल से कई गुना ज्यादा जानते – समझते हैं।
वैसे, राहुल कांग्रेस के कई मामलों में कुछ सही भी करते होंगे, लेकिन पार्टी को आंतरिक संकट से उबारने में वे सफल नहीं हो पा रहे हैं, उल्टे उनके फैसले अक्सर पार्टी को संकट में ही डालते देखे गए हैं। कांग्रेसी राजनीति की ताजा तस्वीर देखें, तो राहुल गांधी का गैर राजनीतिक आचरण और परिपक्व लोगों की सलाह पर उनके बड़े राजनीतिक फैसलों से हुए नुकसान सहित प्रियंका गांधी के केवल उत्तर प्रदेश में ही सिमटे रहने से भी कांग्रेस अजब संकट में है। कांग्रेस के कई नेता समय समय पर पार्टी में मचे घमासान के बीच पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े करते रहे हैं। इसी माहौल के बीच सोनिया गांधी को तो अंततः निर्णायक मुद्रा में आना ही था। है। हालांकि सोनिया गांधी वर्तमान में रहने, जीने और फैसले लेने की राजनीतिक ललित कला तो बहुत पहले ही सीख गई थी, लेकिन अब लगता है कि व इस कला के प्रयोगों से बिगड़ते हालातों को बदलने की मुद्रा में भी गई है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)