भारतीय और रोमा समुदाय एक-दूसरे के काफी करीब हैं। दरअसल, ये लोग मूलत: भारतीय ही हैं। माना जाता है कि ये लोग पहली बार पांचवीं शताब्दी में भारत से फारस गए। हालांकि ज्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि 1018 में महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और वापस जाते समय वह अपने साथ बहुत सारे भारतीयों को ले गया। वही लोग रोमा कहलाए।
रोमा समाज के कण-कण में संगीत व्याप्त है। उनके संगीत-नृत्य का सुरम्य मार्ग भारत से प्रारंभ होता है तथा भारत की गौरवमयी सांगीतिक विरासत की झलक को प्रदर्शित करता है। रोमा कला तथा संस्कृति का अस्तित्व उनके मनोरम नृत्य- संगीत, लोकगीत तथा रंगमंच पर आश्रित है। जहां-जहां वे गए, वहां की संस्कृति ने उनकी प्रथाओं तथा संगीत को अत्यन्त प्रभावित किया है, फिर भी रोमा संस्कृति के कुछ अद्वितीय और विशेष अंश संरक्षित हैं। परिणामस्वरूप रोमाओं ने उन देशों की कला और संस्कृति को भी अंगीकार किया है जहां वे रहते हैं। यह प्रभाव पूरे यूरोप में देखा जा सकता है।
संगीत और नृत्य का रोमा के साथ गहरा संबंध है, जो उनकी अभिव्यक्ति, संचार अथवा आजीविका का एक प्रमुख माध्यम भी है। अत्यधिक गरीबी, कठिनाइयों तथा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के बावजूद, कला और नृत्य-संगीत रोमा समुदाय को जीने के लिए सहारा और प्रेरणा प्रदान करते हैं। रोमा समाज के जीवन का हर छोटा-बड़ा कृत्य, अनुष्ठान, उत्सव, अन्य विभिन्न कार्य किसी न किसी रूप में संगीत द्वारा संपन्न होते हैं। संगीत और नृत्य रोमा के सबसे पुराने व्यवसायों में से एक रहे हैं, जो रोमा की पहचान के साथ इतने अपरिहार्य हैं कि आर्मेनियाई और ग्रीक नृत्य करने वाली लड़कियां और लड़कों के समूहों को भी उनके सांगीतिक कौशल के कारण रोमा (जिप्सी) कहा जाता था। जब रोमा ने अपनी सार्वजनिक पहचान के भावों को व्यक्त करना चाहा, तब संगीत सहायक बना। संगीत उनके उदास एवं अंधकारमय जीवन में एकमात्र उज्जवल प्रकाश है।
रोमा के संगीत-निर्माण की परंपरा गिल्ड प्रणाली पर आधारित है जिसने अनगिनत प्रतिष्ठित एवं विख्यात संगीतकारों और नर्तकियों को तैयार किया है। जैसे वायलिन वादक जानोस बिहारी, वायलिन एवं गिटार वादक एलेक बैसिक, फ्लेमेंको डांसर कारमेन अमाया एवं जोकिन कॉर्टेस, गायक एस्मा रेदजेपोवा और साबन बैरामोविक, फ्रेंको-स्पेनिश गिटार वादक टोनिनो बलियार्डो, जेंग्गो रेनहार्डट, मैनिटास डे प्लाटा, वायलिन वादक रुबी लकाटोस, रोमानियाई अभिनेता और गायक सीनियर स्टीफन बानिका, फ्रांसीसी फिल्म निर्देशक और अभिनेता टोनी गैतलीफ, प्रख्यात ब्रिटिश हास्य अभिनेता और फिल्म निर्माता सर चार्ल्स स्पेंसर चैपलिन। ये सभी अपनी कला के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्होंने रोमानी संगीत एवं कला को नई ऊंचाई दी है।
अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं ने विभिन्न दृष्टिकोणों से रोमा और भारत के बीच के संबंधों का सूक्ष्म रूप से विश्लेषण किया है। रोमा और भारतीयों के बीच सांगीतिक एवं कलात्मक साम्यता पाई जाती है, जो बेहद हृदयस्पर्शी तथा मार्मिक है।
इयान हैंकॉक और इसाबेल फोंसेका का मत है कि हंगरी के रोमानी संगीतकार कंठ संगीत में लयात्मक वर्णित छंद का प्रयोग करते हैं, जिसकी कड़ी वास्तव में भारत से जुड़ी है। बुल्गारिया की लोक गायिका सोफी मैरिनोवा ने भारतीय संगीत तथा फिल्मों के लिए अपनी आत्मीयता का परिचय दिया तथा कहा कि जब वे रोमा भाषा में गाती हैं, तो उनकी आवाज का उतार-चढ़ाव और लय भारतीय स्वरों से मिलती-जुलती है। सोफी बताती हैं कि उनके गीतों में क्युचक ताल विद्यमान है, जो भारतीय ढोल की ताल के समरूप है। यही नहीं, उनके गीत तबले (रोमा भाषा में ताराबुका) और डफली (रोमा भाषा में डाजरे) के सुर एवं लय से सजते हैं। बुल्गारिया के चल्गा गायक अजीज ने अपने गीतों में भारतीय रूपांकनों को नियोजित किया तथा भारतीय शास्त्रीय राग-आधारित संगीत और हिकाज (राग शैली) के बीच समानताएं प्रस्तुत की हैं। उत्तर भारतीय वाद्ययंत्रों जैसे पुंगी, शहनाई और ढोल की ताल एवं लय का प्रतिबिंब उनके गीतों में दिखाई देता है।
रोमा (रोमा को स्पेन में गिटान के नाम से जाना जाता है) ने फ्लेमेंको नृत्य को निखारा तथा समृद्ध किया है। यह स्पष्ट है कि फ्लेमेंको का अस्तित्व रोमानी संगीत पर टिका हुआ है। यूनेस्को ने 2010 मे फ्लेमेंको को सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया था। फ्लेमेंको में ताल, लय, धुन तथा स्वर के प्रयोग की जो शैली है, वह भारतीय संगीत तथा नृत्य की याद दिलाती है। फ्लेमेंको नृत्य में पद-ताल, कंधों की रेखा, उंगलियों, कलाइयों एवं हाथों की धीरे-धीरे होने वाली गतिविधियों पर जोर दिया जाता है, जो उत्तरी भारत के शास्त्रीय नृत्य जैसे कथक के अनुरूप दिखाई पड़ता है। फ्रÞीजियन मोड (सुर), जिसे अक्सर फ्लेमेंको में प्रयोग किया जाता है, भारत के भैरवी राग के समान है। कैंट जोंडो (यह फ्लेमेंको की पारंपरिक गायन शैली है) की संरचना आमतौर पर 12-बीट ताल पर आधारित है, जिस पर भारतीय तालों की गहरी छाप पड़ी है। कैस्टनेट (एक वाद्य यंत्र है जिसका उपयोग फ्लेमेंको नृत्य में किया जाता है) भारतीय वाद्य यंत्र खरताल के समान लयबद्ध तरीके से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न करता है।
फ्लेमेंको नृत्य में वंदना के रूप में रोमा के पूर्वजों के इतिहास की प्रस्तुति दी जाती है, जबकि भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में देवी और देवताओं के जीवन का मंचन किया जाता है।
सिंथी स्विंग, जिप्सी जैज और बाल्कन संगीत भी रोमानी ताल, धुन, लय तथा राग के तानों से गूंजते हैं। बाल्कन के रोमानी संगीतकार कई वाद्ययंत्रों जैसे कि दौलि, तपन और जर्ना का प्रयोग करते हैं। इन सबमें और भारतीय संगीत वाद्यों में आश्चर्यजनक समानताएं दिखाई पड़ती हैं। हंगेरिया के संगीतकार फ्रांज लिस्ट ने व्याख्या की है कि रोमा संगीत के स्वर भारतीय राग भैरवी के समीप हैं। समय के साथ रोमा संगीत में परिवर्तन आया, जो विशेष करके अनातोलिया में मध्य-पूर्व की सांगीतिक शैली में शामिल हो गया। बाल्कन संगीत में दौलि एक प्रकार का ड्रम है, जिसका रोमा वाद्ययंत्रों में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी तुलना भारतीय ढोल से की जाती है। भारतीय संगीत का मूल राग सप्तक है और इसके सातों स्वर ‘स’ , ‘रे’, ‘ग’, ‘म’, ‘प’,‘ध’, ‘नि’ का प्रतिबिंब रोमा संगीत के प्रमुख रागों में दिखाई देता है।
रोमा संगीतकारों ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों के सांगीतिक तत्वों जैसे रैप और रॉक, जैज, रूंबा तथा भारतीय रूपांकनों को अपनाया है। बुल्गेरिया के प्रसिद्ध वादक यूरी यूनाकोव, जो रोमा हैं, ने स्वीकार किया है कि भारतीय संगीत उनकी संगीत शैली के सबसे करीब है। उनका यह भी कहना है कि कुछ राजस्थानी धुनें उन्हें क्युचेक की तरह लगती हैं। क्युचेक रोमा संगीत की एक शैली है, जिसमें विशेष धुनों पर कुछ गाने एकल नृत्य के साथ भी गाए जाते हैं। यह शैली बाल्कन, अल्बेनिया, बुल्गारिया और तुर्की में बेहद प्रचलित है। क्युचेक को रोमा की पारंपरिक धुनों से सुसज्जित किया जाता है, जो कि भारतीय फिल्मी संगीत से प्रेरित है। भारतीय फिल्मों की कई धुनों और थीम को रोमानी क्युचेक धुनों में सम्मिलित किया गया है। सर्बिया और मैसिडोनिया के रोमानी संगीतकारों ने भारतीय धुनों तथा गीतों का अनुकरण किया और उन्हें पूर्णरूप से अपनाया। मैसिडोनिया में रहने वाले रोमा समुदाय के लोगों के बीच भारतीय संगीत और संस्कृति के प्रति बहुत ज्यादा उत्साह दिखता है।
रोमा के विभिन्न देशों में निरंतर प्रवास ने उनके संगीत पर वहां के संगीत ने अमिट प्रभाव डाला है। रोमा संगीत का सफर भारत से प्रारम्भ हुआ, लेकिन विभिन्न देशों जैसे पर्शिया, तुर्की, बाल्कन, स्पेन, रोमानिया, ग्रीस आदि में पड़ाव के कारण उसमें अन्य स्थानों के संगीत का प्रभाव पड़ा। इसलिए रोमा संगीत को विश्व संगीत के रूप मे संदर्भित किया जाता है। रोमा संगीत में नियमों का बंधन नहीं होता, यहां तक कि छंद, ताल भी नियमों से मुक्त होते हैं। रोमा की मौखिक संगीत परंपरा भारत की प्राचीन संगीत विरासत से समानता स्थापित करती है।
(लेखक ‘सेंटर फॉर रोमा स्टडीज एंड कल्चरल रिलेशंस, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद’ में रिसर्च एसोसिएट हैं)
साभार – https://www.panchjanya.com/ से
रोमा समुदाय की वेब साईट पर भी इनके बारे में विस्तार से जानकारी मिल सकती है