“कुछ किताबें लिखी नहीं जाती, उसे जीया जाता है !”
कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ मुझे लेखक तत्सम्यक् मनु की दूसरी किताब ‘the नियोजित शिक्षक’ को पढ़कर. उपन्यास में प्रेम है, रहस्य है, रोमांच है, छात्र जीवन है, नौटंकी है तथा सबसे बड़ी बात शिक्षकों की अनकही दास्ताँ हैं !
उपन्यास की समीक्षा से पूर्ण यह कहना जरुरी है कि लेखक कोरोनाकाल में लाखों ‘मास्क’ निःशुल्क वितरित कर ‘मास्कमैन ऑफ़ इंडिया’ नाम से जाने जाते हैं. लेखक का यह प्रयास भी सराहनीय हैं कि उन्होंने लोगों में जनजागरूकता के लिए- ‘कोरोना अभी गयी नहीं है’ के कारण ‘the नियोजित शिक्षक’ के साथ पाठकों को ‘मास्क’ भी भिजवा रहे हैं.
अब उपन्यास की बात करते हैं. लेखक द्वारा उपन्यास के पहले पेज पर घोषणा की गयी है कि-
“रॉयल्टी से मिली राशि का मानक भाग नियोजित शिक्षकों के बच्चों को दी जायेगी।”
मैंने ऐसे लेखक को आजतक नहीं देखा, जो अपनी कमाई को दान कर रहे है, शायदतन वे ऐसा करने वाले “विश्व के प्रथम लेखक हैं”, क्योंकि लेखक अपने पहले उपन्यास की रॉयल्टी राशि भी दान करते आ रहे हैं. सचमुच लेखक के कार्य प्रशंसा के योग्य है.
उपन्यास की कहानी रोमांचक ट्रेन यात्रा से शुरू होती है, जहाँ हम एक ऐसे यात्री से मिलते हैं, जो मरकर भी ज़िंदा है. कथा आगे बढ़ते जाती है और हमें अपने आगोश में लेते जाती है. उपन्यास के पात्र प्रकट होते जाते हैं, कथा बढ़ती जाती है………
हर उपन्यास की तरह यहां भी नायक हैं, जो अपने गुणों के कारण राष्ट्रीय अवॉर्ड तक पा चुके होते हैं. उपन्यास में नायक के संघर्ष की कहानी हैं, जहाँ प्रेम भी है, किन्तु नायक को प्रेम में सफलता मिल पाती हैं, यह प्रश्न सोचनीय है ?
कथा नायक को केंद्र में रखते हुए ‘मृत्यु भोज’ जैसे कुप्रथों पर वार करते हुए, प्रेम विवाह पर जोड़ देते हुए, नियोजित शिक्षकों के दुःख को उजागर कर देती हैं !
कथा में मुझे कई शोधपरक जानकारी मिली, तो मैं यह जान पाया कि कैसे माननीय विधायक शिक्षकों के साथ बर्ताव करते हैं ? मैं यह भी जान पाया कि BPSC में बेहतरीन कैंडिडेट क्यों नहीं पहुँच पाते हैं ? मैं यह भी जान पाया कि MDM में क्या-क्या गड़बड़ी होती हैं ? मैं यह भी जान पाया कि लोग शिक्षकों को क्यों दोष देते हैं ? मैं यह भी जान पाया कि वेतन के आभाव में शिक्षक अपना जीवनयापन कैसे करते हैँ ? मैं यह भी जान पाया कि शिक्षकों को प्रेम क्यों नहीं नसीब हो पाती हैं ? मैं यह भी जान पाया कि क्यों सरकार शिक्षकों के साथ भेदभाव करते हैं ?
उपन्यास समाप्त होते-होते मुझे कई सीख दे गयी कि कभी भी शिक्षकों का ‘अपमान’ नहीं करने चाहिए, जो कि कभी-कभार मैं कुछेक शिक्षकों के दिनचर्या पर कर दिया करता था.
उपन्यास ने मुझे जीवन को सही तरीके से जीने की प्रेरणा दी.
समीक्षक = मोहन कुमार, सहायक अभियंता, असम.
उपन्यास : द नियोजित शिक्षक
उपन्यासकार : तत्सम्यक् मनु