भारत के इस अमीर हिन्दू मंदिर में आन्ध्र प्रदेश के तिरूमल्ला मंदिर के बाद सबसे अधिक भक्तों द्वारा माता के दर्शन किये जाते हैं। भारत में हिन्दुओं के पवित्र देवी धाम स्थलों में जम्मू के कटरा नामक स्थान पर त्रिकुटा पर्वत की चोटी पर 5,200फीट की ऊँचाई पर वैष्णव देवी माता का मंदिर सर्वाधिक वंदनीय एवं लोकप्रिय है।
बाणगंगा से देवी के भवन तक 13 किमी का चढ़ाईदार मार्ग देवी के जै कारों से गुंजायमान रहता है। मार्ग। में जगह – जगह यात्रियों के लिए विश्राम करने, अल्पाहार और जन सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। यात्री मार्ग में अर्द्ध कुमारी माता के दर्शन कर श्रद्धालु आगे बढ़ते हैं।
त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की स्वयंभू तीन मूर्तियां हैं जो पिंडी रूप में हैं। देवी काली (दाएं), सरस्वती (बाएं) और लक्ष्मी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी माता कहा जाता है। इस स्थान को माता का भवन कहा जाता है। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फीट है। इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा बना हुआ है। इस चबूतरे पर माता का आसीन है।
माता के भवन से 1.57 किमी ऊँचाई पर भैरवनाथ का मंदिर बना है। उत्तर भारत मे माँ वैष्णो देवी सबसे प्रसिद्ध सिद्धपीठ है उसके बाद सहारनपुर की शिवालिक पहाडियों मे स्थित शाकम्भरी देवी सबसे प्रमुख सिद्धपीठ है।
मंदिर की पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ उससे पकड़ने के लिए दौड़े। तब वह कन्या वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे। माना जाता है कि तभी मां की रक्षा के लिए वहां पवनपुत्र हनुमान पहुंच गए। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। फिर वहीं एक गुफा में गुफा में प्रवेश कर माता ने नौ माह तक तपस्या की। हनुमानजी ने पहरा दिया। फिर भैरव नाथ वहां आ धमके। उस दौरान एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। अंत में गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और भैरवनाथ वापस जाने का कह कर फिर से गुफा में चली गईं, लेकिन भैरवनाथ नहीं माना और गुफा में प्रवेश करने लगा। यह देखकर माता की गुफा कर पहरा दे रहे हनुमानजी ने उसे युद्ध के लिए ललकार और दोनों का युद्ध हुआ।
युद्ध का कोई अंत नहीं देखकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का वध कर दिया। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। तब उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
वैष्णो देवी का निकटतम बड़ा शहर है जम्मू जो कि रेलमार्ग, सड़कमार्ग और वायुमार्ग द्वारा भारत के समस्त बड़े शहरों से जुड़ा है। जम्मू से माता के भवन के लिए कटरा 50 किमी दूरी पर हैं। अब कटरा तक रेल सेवाएं प्रारम्भ हो जाने से यात्रियों को जम्मू नहीं उतरना पड़ता हैं। मन्दिर तक जाने के लिए कटरा से पालकियाँ, खच्चर तथा विद्युत-चालित वाहन भी उपलब्ध होते हैं। इनके अलावा कटरा से साँझीछत तक जाने हेतु हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध हैं।
गर्मियों में तीर्थयात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाने से रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष दिल्ली से कटरा के लिए विशेष ट्रेनें भी चलाई जाती हैं। कटरा से वापस जम्मू आकर वहां रघुनाथ मंदिर एवं नजदीक ही शिव को समर्पित शिवखोड़ी मन्दिर भी दर्शनीय मन्दिर हैं। जम्मू से लगभग 112 किमी की दूरी पर ‘पटनी टॉप’ एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। सर्दियों में यहाँ आप स्नो फॉल का भी मजा ले सकते हैं।
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवँ राजस्थान जनसंपर्क विभाग के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं )