आपने ईसाई मिशनरी धन या प्रलोभन देकर निर्धन हिन्दुओं को ईसाई बनाने की बात सभी जानते हैं। मगर धर्मान्तरण के लिए उनका एक बड़ा चतुराई से अपनाया गया माध्यम सामने आया हैं।
वह है हिन्दू धर्मगुरुओं के मुख से बाइबिल की प्रशंसा कराने का तरीका। इसे हम Inculturation अर्थात संस्कृतीकरण के नाम से जानते है। इस घोटाले में रामकृष्ण मिशन , सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम, सहज योग की माता निर्मला देवी, अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र के गुरु रामलाल आदि अनेक नाम आपको देखने को मिलेंगे।
हिन्दू समाज के ये तथाकथित आध्यात्मिक गुरु सभी धर्म एक समान है बोल कर हिन्दुओं को नपुंसक बनाने में लगे हुए हैं। जबकि अन्य मत-मजहबों के तथाकथित आध्यात्मिक गुरु केवल अपने मत को ही न केवल सबसे श्रेष्ठ अपितु केवल वही सही है ऐसा बताते है। इस्लाम या ईसाइयत के धर्मगुरु तो केवल अपने मत के सिद्धांतों और मान्यताओं की प्रशंसा करते है। अधिकांश अन्यों की मतों की आलोचना करते है।
इस मानसिकता का हिन्दू समाज पर बहुत दूरगामी प्रभाव होता है। वह धर्म और मज़हब के अंतर को समझ नहीं पाता। इस दुष्प्रचार से वह या तो सब चलता है कहकर आराम से सोया रहता हैं। अथवा धर्म पाखंड और अन्धविश्वास है कहकर उसकी तिलांजलि देकर नास्तिक बन जाता हैं। अथवा अन्यों के अपने आपको श्रेष्ठ बताने के प्रभाव में आकर हिन्दू धर्म का त्याग कर ईसाई या मुसलमान बन जाता हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हिन्दू समाज में वर्तमान में एक भी ऐसी केंद्रीय शक्ति नहीं है जो इस सुनियोजित षड़यंत्र के विरोध में कोई नीति बनाकर इसका समाधान कर रही हो। धन और संपत्ति के ऊपर बैठकर अधिकांश मठाधीश मौज में रहना अपने जीवन का उद्देश्य समझते हैं।
यही कारण है की कोई भी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेता। केवल कुछ राष्ट्रवादी संगठन हिन्दू समाज में फैल रहे इस अन्धविश्वास से जनता को जागृत करने का प्रयास कर रहे हैं। मगर उनका प्रयास अभी अल्पावस्था में हैं। आइये हिन्दुओं को संगठित होकर अपने बिछुड़ रहे भाइयों को न केवल रोकना चाहिये अपितु जो बिछुड़ चुके है उन्हें वापिस भी लाना चाहिए।
मैं अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए चित्र संलग्न कर रहा हूँ।
(लेखक राष्ट्रवादी विषयों पर लिखते हैं व जाने माने बाल चिकित्सक हैं)