विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पंजाब में आम आदमी पार्टी के 20 में से 9 विधायक पार्टी छोड़ दूसरे दलों का हाथ थाम चुके हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी द्वारा किए जा रहे जीत के दावे की हकीकत कुछ और है। ऐसा नहीं देखा जाता कि जीत की ओर बढ़ रही पार्टी को उसके सिटिंग विधायक छोड़ कर दूसरे दलों में शामिल हो जाये।
चुनावी वर्ष में विधायकों का पार्टी छोड़ना पार्टी के लिए शुभ संदेश नहीं माना जा सकता। क्या आप पंजाब में कुछ खास नहीं करने जा रही स्थितियां इसी ओर इशारा कर रही है। राजनीति में जितने वाली पार्टी को छोड़ने की हिम्मत सिटिंग विधायक नहीं करते। यह तभी संभव है जब पार्टी हारने की स्थिति में हो या कुछ बेहतर न करने की स्थिति में हो। तो क्या विधायक धरातल की स्थिति से अवगत है और ये भगदड़ हार की आशंका के कारण से है।
आधी संख्या में विधायकों का पार्टी छोड़ना पार्टी की धरातल स्थिति को दर्शाता है। अपनी जीत का दावा करने वाली पार्टी के विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं तो इसका सीधा अर्थ है कि पार्टी बुरी तरह से हार रही है या स्थिति बेहतर नहीं है। पार्टी की जीत की जो हवा फैलाई जा रही है वह करोड़ों का विज्ञापन भी हो सकता है।
ऐसा नहीं है कि राजनीति में यह दावा आम आदमी पार्टी द्वारा पहले नहीं किया गया है और परिणाम विपरीत आए हैं। गुजरात नगर निगम चुनाव के पूर्व भी पार्टी के सभी बड़े नेताओं द्वारा गुजरात नगर निगम चुनाव में बहुत बड़ी जीत का न सिर्फ दावा ही कियागया बल्कि विज्ञापनों द्वारा इसे फैलाया भी गया। किन्तु परिणाम के बाद आम आदमी पार्टी अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं करवा पाई। पंजाब चुनाव में भी ऐसी ह8 स्थिति बनती दिख रही है।
एक या दो विधायकों का जाना कोई बड़ी बात नहीं है किंतु पिछले कुछ महीनों में चार विधायक पार्टी छोड़ कर कॉंग्रेस एवं दूसरे दलों का हाथ थाम चुके हैं। इसके पहले पांच अन्य विधायक भी पार्टी छोड़ चुके हैं। अब तक पार्टी छोड़ने वाले विधायकों की संख्या नौ हो चुकी है। 117 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी के मात्र 20 विधायक जीत कर आए थे और उनमें से अब तक 9 विधायकों ने पार्टी छोड़ भी दिया है। जो पंजाब में पार्टी की कमजोर स्थितो को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त है।
करोड़ों के विज्ञापन के माध्यम भले ही आप को पंजाब की रेस में दूसरे स्थान पर दिखाया जा रहा हो किंतु यह भी सत्य है कि इन विधायकों के पार्टी छोड़ने की खबरों को मीडिया में दबाया जा रहा है। केजरीवाल के विज्ञापनों से पटा मीडिया इस विषय को नहीं दिखा रहा है। यह घटना इस बात को और भी पुष्ट करती है कि मीडिया एवं पॉलिटिकल पंडित आम आदमी पार्टी की पंजाब की धरातल की सच्चाई छिपा रहे हैं। यदि आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार बनाने की स्थिति में होती तो कम से कम वर्तमान विधायक पार्टी नहीं छोड़ रहे होते।
अभी जब सभी सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा पार्टी द्वारा नहीं की गई है तो यह कहना भी गलत होगा कि इन विधायकों का टिकट काट दिया गया था। पार्टी में मची भगदड़ यह साबित कर रहे हैं कि चाहे जितने भी दावे किए जाए सर्वे का सहारा लेना कितने ही विज्ञापनों के माध्यम से आम आदमी पार्टी को पंजाब में दौड़ में दिखाया जाए किन्तु आम आदमी पार्टी पंजाब में कुछ खास प्रदर्शन नहीं करने जा रही। हालांकि राजनीति में कुछ भी दावे करना संभव नहीं है किन्तु घट रही घटनाएं भविष्य को इंगित करती है।
(लेखक लोकवाणी के संपादक है।)