हमारे भारतवर्ष का इतिहास वैभवशाली रहा है। भारत सचमुच में ही “सोने की चिड़िया” था और इसे लूटने के लिए आक्रांता बार बार अरब देशों से भारत पर आक्रमण करने आते थे। लगभग 800 वर्षों का खंडकाल ऐसा रहा है जब हमारी भारतीय संस्कृति पर भी पूरे जोश के साथ आक्रमण किया गया था एवं हमें एक तरह से हमारी ही संस्कृति को भुला देने का षड्यंत्र रचा गया, विशेष रूप से अंग्रेजों के 200 वर्षों के शासनकाल में। अंग्रेजों ने भारत का कितना अधिक नुकसान किया है यह निम्न जानकारी से स्पष्ट हो जाता है। ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत में आगमन के पूर्व विश्व के विनिर्माण उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 1750 में 24.5 प्रतिशत थी, जो वर्ष 1800 में घटकर 19.7 प्रतिशत हो गई और 1830 में 17.8 प्रतिशत हो गई, आगे वर्ष 1880 में केवल 2.8 प्रतिशत रह गई तथा वर्ष 1913 में तो केवल 1.4 प्रतिशत ही रह गई थी परंतु वर्ष 1939 में कुछ सुधरकर 2.4 प्रतिशत हो गई थी। ब्रिटिश शासन काल में भारत के विनिर्माण उत्पादन को तहस नहस कर दिया गया था। इस सबके पीछे ब्रिटिश शासन काल की नीतियां तो जिम्मेदार तो थी हीं साथ ही भारत के नागरिकों में “स्व” की भावना का कमजोर हो जाना भी एक बड़ा कारण था।
परंतु, विशेष रूप से वर्ष 2014 के बाद से भारत में परिस्थितियां बहुत तेजी से बदल रही हैं और न केवल देश में आर्थिक प्रगति ने तेज रफ्तार पकड़ ली है बल्कि भारतीय हिन्दू संस्कृति भी पुनः अपने वैभव को प्राप्त करती दिख रही है।
आज पूरा विश्व ही जैसे हिन्दू सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित होता दिख रहा है। विश्व के लगभग समस्त देशों में भारतीय न केवल शांतिपूर्ण ढंग से निवास कर रहे हैं बल्कि हिन्दू सनातन संस्कृति का अनुपालन भी अपनी पूरी श्रद्धा के साथ कर रहे हैं। भारत ने हिन्दू सनातन संस्कृति का अनुसरण करते हुए कोरोना महामारी की प्रथम एवं द्वितीय लहर को जिस प्रकार से सफलतापूर्वक नियंत्रित किया था, उससे प्रभावित होकर आज वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ी है और हिन्दू सनातन संस्कृति का अनुसरण आज पूरा विश्व ही करना चाहता है। हाल ही में इंडोनेशिया, अमेरिका, जापान, रूस, चीन, जर्मनी आदि अन्य कई देशों में हिन्दू सनातन धर्म को अपनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। अमेरिका एवं अन्य कई यूरोपीयन देशों में आज हर चौथा मुस्लिम व्यक्ति या तो नास्तिक बन रहा है अथवा किसी अन्य धर्म को अपना रहा है।
इस सम्बंध में कुछ उदाहरण भी दिए जा सकते हैं। जैसे, इंडोनेशिया की राजकुमारी दीया मुटियारा सुकमावती सुकर्णोपुत्री ने 26 अक्टोबर 2021 को मुस्लिम धर्म का त्याग कर हिन्दू धर्म में घर वापसी की है क्योंकि आपके पूर्वज हिन्दू ही रहे हैं। इसके पूर्व जावा की राजकुमारी कंजेंग रादेन अयु महिंद्रनी कुस्विद्यांति परमासी भी 17 जुलाई 2017 को बाली में सुधा वदानी संस्कार से हिन्दू धर्म में दीक्षित हो चुकी हैं। हाल ही में इंडोनेशिया की मुख्य न्यायाधीश इफा सुदेवी ने भी इस्लाम धर्म का परित्याग कर हिन्दू धर्म में दीक्षा ले ली है।
केवल इंडोनेशिया ही क्यों, आज तो जापान, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, आदि विकसित देशों में भी सनातन हिन्दू धर्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है और हाल ही के समय में विश्व की कई महान हस्तियों ने अपने मूल धर्म को छोड़कर या तो सनातन धर्म को अपना लिया है अथवा सनातन धर्म के प्रति अपनी आस्था प्रकट की है। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, एप्पल के संस्थापक स्टीव जोब्स, हॉलीवुड फिल्म स्टार सिल्वेस्टर स्टलोन, रशेल ब्राण्ड, ह्यू जैकमेन, पोप स्टार मेडोना, मिली सायरस, हांगकांग के प्रसिद्ध कलाकार जैकी हंग, हॉलीवुड की जानीमानी एक्ट्रेस जूलिया राबर्ट्स तो एक फिल्म की शूटिंग के लिए भारत आईं थी। भारत में सनातन धर्म से इतना प्रभावित हुईं थीं कि बाद में उन्होंने सनातन धर्म को ही अपना लिया था। उक्त कुछ नाम केवल उदाहरण के तौर पर दिए गए हैं अन्यथा विश्व में हजारों हस्तियों ने हाल ही में सनातन धर्म को अपना लिया है। एक अन्य समाचार के अनुसार, उत्तरी अमेरिका के कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, मेक्सिको एवं ग्रीनलैंड एवं यूरोप के कुछ देशों में आज प्रत्येक 4 मुस्लिम नागरिकों में से, एक नागरिक इस्लाम धर्म का परित्याग कर रहा है।
विदेशों में हिन्दू सनातन संस्कृति की ओर लोगों का आकर्षण एकदम नहीं बढ़ा है इसके लिए बहुत लम्बे समय से भारत के संत, महापुरुषों एवं मनीषियों द्वारा प्रयास किए जाते रहे हैं। विशेष रूप से स्वामी विवेकानंद जी द्वारा इस क्षेत्र में किए गए अतुलनीय कार्यों को आज भी याद किया जाता है। स्वामी विवेकानंद जी अपने ओजस्वी व्याख्यानों में बार बार यह आह्वान करते थे कि उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। उनके ये वाक्य उनके श्रोताओं को बहुत प्रेरणा देते थे। उनका यह भी कहना होता था कि हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है अतः हमें अपने अंतर्मन एवं बाहरी स्वभाव को सुधारकर अपनी आत्मा की दिव्यता को पहचानना चाहिए। कर्म, पूजा, अंतर्मन अथवा जीवन दर्शन के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है।
जीवन में सफलता के राज खोलते हुए आप कहते थे कि कोई भी एक विचार लेकर उसे अपने जीवन का लक्ष्य बनायें एवं उसी विचार के बारे में सदैव सोचें, केवल उसी विचार का सपना देखते रहें और उसी विचार में ही जीयें। यही आपकी सफलता का रास्ता बन सकता है। आपके दिल, दिमाग और रगों में केवल यही विचार भर जाना चाहिए। इसी प्रकार ही आध्यात्मिक सफलता भी अर्जित की जा सकती है। आज के भारतीय युवाओं को स्वामी विवेकानंद द्वारा दी गई शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर कार्य करना चाहिए क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि जिस राह पर देश के युवा चलते हैं उसी दिशा में देश चलता जाता है और आज तो परिस्थितियां ऐसी बनती जा रही हैं कि जिस राह पर भारत चल रहा है, उसी राह पर पूरा विश्व चलने का प्रयास कर रहा है। इस प्रकार भारतीय युवा आज पूरे विश्व को ही प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
भारतीय युवाओं को तो आज यह संकल्प भी लेना चाहिए कि हम सभी हिन्दू सनातनी हमारी अपनी संस्कृति की परम्पराओं का, एक नए आत्मविश्वास के साथ, पुनः पालन प्रारंभ करें। इन सनातनी परम्पराओं में शामिल है कुटुंब प्रबोधन अर्थात परिवार के बुजुर्गों एवं अन्य सदस्यों को युवा अपना समय दें। घर में परिवार के सभी सदस्य भोजन साथ में मिल बैठ कर करें। संयुक्त परिवारों में रहें एवं पड़ौसियों को भी महत्व देना प्रारम्भ करें ताकि किसी भी प्रकार की समस्या आने पर पूरे मौहल्ले में रहने वाले परिवार मिलकर उस समस्या का समाधान निकाल सकें। मानसिक स्वास्थ्य भी इससे ठीक रहेगा। हमारे देश का युवा वर्ग समाज को स्वावलंबी बनाने में बहुत ही सहज तरीके से समाज की मदद कर सकता है। “स्वयं-सहायता समूह” बनाकर समाज के अति पिछड़े वर्ग एवं माताओं, बहनों को स्वावलंबी बनाया जा सकता है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में इस क्षेत्र में बहुत अच्छा कार्य हुआ है। पर्यावरण में सुधार एवं सामाजिक समरसता स्थापित करने हेतु भी देश के युवा वर्ग को आगे आना चाहिए।
कई अन्य क्षेत्रों में भी आज पूरा विश्व भारतीय परम्पराओं को अपनाने की ओर आगे बढ़ रहा है जैसे कृषि के क्षेत्र में केमिकल, उर्वरक, आदि के उपयोग को त्याग कर “ओरगेनिक फार्मिंग” अर्थात गाय के गोबर का अधिक से अधिक उपयोग किए जाने की चर्चाएं जोर शोर से होने लगी हैं। पहिले हमारे आयुर्वेदिक दवाईयों का मजाक बनाया गया था और विकसित देशों ने तो यहां तक कहा था कि फूल, पत्ती खाने से कहीं बीमारियां ठीक होती है, परंतु आज पूरा विश्व ही “हर्बल मेडिसिन” एवं भारतीय आयुर्वेद की ओर आकर्षित हो रहा है। हमारे पूर्वज हमें सैकड़ों वर्षों से सिखाते रहे हैं कि पेड़ की पूजा करो, पहाड़ की पूजा करो, नदी की रक्षा करो, तब विकसित देश इसे भारतीयों की दकियानूसी सोच कहते थे। परंतु पर्यावरण को बचाने के लिए यही विकसित देश आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मेलनों का आयोजन कर यह कहते हुए पाए जाते हैं कि पृथ्वी को यदि बचाना है तो पेड़, जंगल, पहाड़ एवं नदियों को बचाना ही होगा। इसी प्रकार कोरोना महामारी के फैलने के बाद पूरे विश्व को ही ध्यान में आया कि भारतीय योग, ध्यान, शारीरिक व्यायाम, शुद्ध सात्विक आहार एवं उचित आयुर्वेदिक उपचार के साथ इस बीमारी से बचा जा सकता है। कुल मिलाकर ऐसा आभास हो रहा है कि जैसे पूरा विश्व ही आज भारतीय परम्पराओं को अपनाने की ओर आतुर दिख रहा है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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