भारत की भूवैज्ञानिक संरचना विविधतापूर्ण है, जहाँ सभी भू-गर्भिक कालखंडों में निर्मित चट्टानें पायी जाती हैं। चट्टानों की यह विविधता खनिज संपदा के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में जानी जाती है, जिसके बारे में जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भू-वैज्ञानिक इतिहास के आधार पर भारत में पायी जाने वाली चट्टानों को उनके निर्माण क्रम के अनुसार क्रमशः आर्कियन, धारवाड़, कडप्पा, विंध्य, गोंडवाना, दक्कन ट्रेप, टर्शियरी व क्वार्टनरी चट्टानों में बाँटा गया है|
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को हैदराबाद स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) परिसर में भारत के पहले ओपन रॉक संग्रहालय का उद्घाटन किया है। इस संग्रहालय में भारत की चट्टान विविधता, उसके महत्व एवं उपयोगिता के बारे में विस्तृत जानकारी मिल सकती है।
इस संग्रहालय में प्रदर्शित चट्टानों का कालखंड 3.3 बिलियन वर्ष से लेकर 55 मिलियन वर्ष पूर्व आंका गया है। इन चट्टानों को धरती की सतह से 175 किलोमीटर तक गहराई में अलग-अलग स्तरों से प्राप्त किया गया है। केंद्रीय मंत्री ने सुझाव दिया कि छात्रों और उत्साही लोगों के लिए इस अनूठे रॉक संग्रहालय को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ओपन रॉक संग्रहालय में रखी गई चट्टानों को ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तराखंड, झारखंड, जम्मू एवं कश्मीर समेत अन्य राज्यों से प्राप्त किया गया है।
इस संग्रहालय का उद्देश्य जनसामान्य को ऐसे दिलचस्प भू-वैज्ञानिक तथ्यों से अवगत कराना है, जिसके बारे में लोगों को बहुत जानकारी नहीं होती है। ओपन रॉक संग्रहालय में भारत के विभिन्न भागों से एकत्रित की गई 35 अलग-अलग प्रकार की चट्टानों को प्रदर्शित किया गया है। विभिन्न आकार की चट्टानों को एक बगीचे में फोकस रोशनी और विवरण के साथ प्रदर्शित किया गया है, जो उनके आर्थिक और वैज्ञानिक महत्व को दर्शाता है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-आधारित पहलों और परियोजनाओं को समर्थन तथा बढ़ावा देने में विशेष रुचि लेते हैं। डॉ सिंह ने कहा, ‘पृथ्वी की संरचना से जुड़े आंकड़े’ आर्थिक ज्ञान के युग में उत्कृष्ट रणनीतिक महत्व रखते हैं और भारत इस नये क्षेत्र का सर्वोत्तम लाभ उठाने की दिशा में कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी-विज्ञान आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से योगदान दे रहा है।
भारत की भूवैज्ञानिक संरचना विविधतापूर्ण है, जहाँ सभी भू-गर्भिक कालखंडों में निर्मित चट्टानें पायी जाती हैं। चट्टानों की यह विविधता खनिज संपदा के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में जानी जाती है, जिसके बारे में जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भू-वैज्ञानिक इतिहास के आधार पर भारत में पायी जाने वाली चट्टानों को उनके निर्माण क्रम के अनुसार क्रमशः आर्कियन, धारवाड़, कडप्पा, विंध्य, गोंडवाना, दक्कन ट्रेप, टर्शियरी व क्वार्टनरी चट्टानों में बाँटा गया है।
डॉ सिंह ने कहा कि देश स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को “स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव” के रूप में मना रहा है, जबकि सीएसआईआर अपनी स्थापना की 80वीं वर्षगांठ मना रहा है, ऐसे में यह सही समय है कि भारत को विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए वे सभी मंत्रालय और विभाग आगे आयें, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचारों से जुड़े हैं।
पृथ्वी की संरचना और गतिशीलता को आकार देने और पृथ्वी पर जीवन के निर्वाह के लिए जिम्मेदार प्रक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण अन्वेषणों के लिए डिजाइन किए गए सीएसआईआर-एनजीआरआई के अनुसंधान प्रयासों का उल्लेख करते हुए केंद्रीय मंत्री ने आशा व्यक्त की है कि अपने निर्धारित दृष्टिकोण और मिशन के साथ यह संस्थान राष्ट्र की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आने वाले वर्षों में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि जल स्रोतों का पता लगाने से लेकर जल उपचार तक; सीएसआईआर की प्रौद्योगिकियों से देश के लाखों लोगों को लाभ होगा और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के स्वप्न “हर घर नल से जल” को पूरा करने में इससे सकारात्मक मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि सीएसआईआर द्वारा सूखे क्षेत्रों में भूजल स्रोतों की मैपिंग के लिए नवीनतम अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जिससे पेयजल के रूप में भूजल का उपयोग करने में मदद मिलती है।
इस अवसर पर डॉ सिंह ने सीएसआईआर-एनजीआरआई द्वारा निर्मित लखनऊ और देहरादून के भूकंप-जोखिम मानचित्र भी जारी किये हैं। ये दोनों शहर भूकंप के प्रति संवेदनशील स्थानों में शामिल हैं। इन मानचित्रों को उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के साथ साझा किया गया है। इससे घरों से लेकर बहु-मंजिला इमारतों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे जैसे पुलों या बाँधों इत्यादि में जोखिम आकलन में सहायता मिल सकती है।
सीएसआईआर-एनजीआरआई, हैदराबाद के निदेशक डॉ वी.एम. तिवारी ने इस अवसर पर संस्थान की प्रमुख गतिविधियों के बारे में बताया। सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने भी लोगों को संबोधित किया।
इंडिया साइंस वायर से साभार