वैदिक साहित्य में एक नई अंग्रेजी पुस्तक “Fountain of Vedic Wisdom” का प्रकाशन विगत वर्ष सन् 2021 में हुआ है। इस पुस्तक के लेखक हैं श्री कृष्ण चोपड़ा जी, इंग्लैण्ड। पुस्तक में चारों वेदों से चुने हुए 365 मन्त्र लेकर प्रत्येक मन्त्र का एक शीर्षक देकर उसकी अंग्रेजी में व्यवहारिक एवं उपयोगी व्याख्या की गई है। पुस्तक में कुल 672 पृष्ठ हैं। भव्य एवं नयनाभिराम संस्करण है। पुस्तक के अन्त में लेखक महोदय का चित्र भी दिया गया है। पुस्तक के लेखक श्री कृष्ण चोपड़ा जी मुम्बई विश्वविद्यालय से संस्कृत एवं हिन्दी में स्नात्कोत्तर उपाधि प्राप्त हैं। वह दयानन्द ब्रह्म महाविद्यालय, हिसार-हरियाणा के स्नातक हैं।
श्री कृष्ण चोपड़ा जी आर्यसमाज (वैदिक मिशन), बिरमिंघम, इंग्लैण्ड तथा आर्य प्रतिनिधि सभा, इंग्लैण्ड के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन चोपड़ा जी ने ‘‘कृष्ण चोपड़ा फाउण्डेशन”, ‘मर्यादा’, 38 ए, लवलेस एवेन्यू, सोलीहल, यू.के. से किया है।
यह पुस्तक भारत में हितकारी प्रकाशन समिति, ‘अभ्युदय’ भवन, अग्रसेन गल्र्स कालेज मार्ग, स्टेशन मार्ग, हिण्डौन सिटी (राजस्थान)-322230 के संचालक वैदिक साहित्य अनुकरणीय प्रेमी ऋषिभक्त श्री प्रभाकरदेव आर्य जी से प्राप्त की जा सकती है। आर्य जी के सम्पर्क मोबाइल नम्बर 7014248035 एवं 9414034072 हैं। पुस्तक के लेखक श्री कृष्ण चोपड़ा जी से उनकी इमेल krishan.chopra@nhs.net पर सम्पर्क किया जा सकता है। पुस्तक का यह प्रथम संस्करण है जो सन् 2021 में प्रकाशित हुआ है। पुस्तक का मूल्य रुपये 500.00 है। इस पुस्तक को डाक से श्री प्रभाकरदेव आर्य जी से मंगाया जा सकता है।
पुस्तक के आरम्भ में लेखक श्री कृष्ण चोपड़ा जी का परिचय दिया गया है। श्री कृष्ण चोपड़ा जी अविभाजित भारत में पंजाब के अन्तर्गत वजीराबाद में नवम्बर, 1942 में जन्मे थे। अब यह स्थान पाकिस्तान में है। इसी स्थान पर वेदों के भाष्यकार पंडित विश्वनाथ विद्यालंकार वेदोपाध्याय विद्यामार्तण्ड भी जन्मे थे। श्री कृष्ण चोपड़ा जी ने मैटरिकुरेशन करनाल-हरयाणा के डी.ए.वी. हाईस्कूल से किया था। आप दयानन्द ब्रह्म महाविद्यालय, हिसार-हरयाणा के स्नातक हैं। आपने मुम्बई विश्वविद्यालय से संस्कृत तथा हिन्दी में एम.ए. भी किया है। आप सन् 1996-2000 तथा 2004-2008 तक आर्यसमाज, वेस्ट-मिडलैण्ड, बरमिंघम के प्रधान रहे हैं। आप इंग्लैण्ड की आर्य प्रतिनिधि सभा के सन् 2014 से 2019 तक प्रधान भी रहे हैं।
आपने समय-समय पर आर्यसमाज की अनेक संस्थाओं को प्रभूत धनराशि दान की है। इसका विवरण पुस्तक में है। श्री कृष्ण चोपड़ा जी ऋषि दयानन्द को आधुनिक युग में लोगों को वेदों के अध्ययन का मार्ग दिखाने के लिए नमन करते हैं। जिन विद्वानों के ग्रन्थों को पढ़कर लेखक को अपना ग्रन्थ लिखने की प्रेरणा मिली, उनका भी लेखक ने धन्यवाद करने के साथ आभार व्यक्त किया है। इन विद्वानों के नाम हैं स्वामी वेदानन्द तीर्थ, आचार्य अभयदेव, पंडित दामोदरपाद सातवलेकर, पंडित हरिशरण सिद्धान्तालंकार, पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय, पंडित शिवकुमार शास्त्री, पंडित धर्मदेव विद्यामार्तण्ड, स्वामी सत्यप्रकाश, आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार, आचार्य वैद्यनाथ शास्त्री, प्रिंसीपल देवीचन्द एवं प्रो. राम विचार।
लेखक ने बताया है कि उनके द्वारा लिखी चार वेदों के चुने हुए 365 मन्त्रों के रहस्यों के प्रकटीकरण की यह पुस्तक उनके ज्येष्ठ भ्राता प्रो. राम विचार की प्रेरणा एवं प्रयत्नों का परिणाम है। लेखक ने विनीत स्वरों से अंग्रेजी पाठकों को इस ग्रन्थ से वेदों के ज्ञान वा रहस्यों का लाभ लेने की प्रेरणा की है। इसी क्रम में लेखक महोदय ने इस पुस्तक को पूरी भावना के साथ प्रकाशित करने में सहयोग करने के लिए ऋषिभक्त श्री प्रभाकरदेव आर्य जी का हृदय से धन्यवाद किया है। लेखक ने श्री अभय कुमार मिश्र को भी लेखक के निर्देशों को पुस्तक में पूरी तरह से दिए जाने के लिए धन्यवाद किया है।
लेखक ने पुस्तक के आरम्भ में एक अध्याय लिखकर उसमें वेदों का संक्षिप्त परिचय दिया है। यह परिचय 10 पृष्ठों में पूरा हुआ है। पुस्तक में प्रस्तुत मन्त्रों की अनुक्रमणिका हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दी गई है। लेखक ने जो शीर्षक देकर मन्त्र का अर्थ वा Exposition किया है, उसकी एक विषय सूची भी प्रस्तुत की है। हम नीचे प्रथम व अन्तिम पांच मन्त्रों के विषय प्रस्तुत कर रहे हैं।
1- Let us Do Noble Deeds with Noble Intentions
2- The Eternal Law of the Lord
3- Sit in the Lap of God
4- Worship of Sarasvati (Knowledge)
5- Let our Enemies Praise our Virtues
Last five titles of the Mantras exposition:
1- Manage the Time Horse
2- May our Life-Yajna Remain Unimpaired
3- Rise to Excellence
4- O Lord! Bless me with Retentive Intellect and Faith
5- Mother Veda is the Bestower of Boons
पुस्तक से हम पाठकों की सुविधार्थ प्रथम मन्त्र की व्याख्या नमूने के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
Mantra 1
Let us Do Noble Deeds with Noble Intentions
अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि। स इद्देवेषु गच्छति।। -ऋग्वेद 1/1/4
Meaning in Text Order
Agne=O source of knowledge! Yam= which, yajnam=virtuous deeds, adhvaram=a virtuous act where there is no intention of harming others, visvatah=from all directions, paribhurasi=pervade, sah=that, it=certainly, devesu=divine grace, gacchati=brings.
Meaning
O embodiment of light! May our life be full of noble deeds (yajnamaya), may we always consider that these virtuous deeds are performed with the grace of God. May our righteous deeds bring us divine grace to us. May the divine grace from all directions be with the performer.
Contemplation
In this mantra there are two important words – yajna and adhvaram. According to Satapath Brahmana yajna means the most sublime act. The second word aghanya qualifies the most sublime act. Our most sublime act is that which has no selfish motive nor does it injure the sentiments of other by our speech or action. It is most important that there should be no malicious intention in our mind about the noble deed. It should be noble in every respect.
Beyond doubt, wealth is a vehicle of life. It brings glory and fame when it is utilized for virtuous deeds. When glory and fame is showered upon people, it sometimes brings vanity. Here the mantra describes that God protects those virtuous deeds and they bear divine blessings where the intention is also noble. Internal malicious intentions lose the blessing of the Lord, in spite of noble deeds.
In fact, all virtuous deeds are performed with the will of God but due to ignorance, human beings consider that these noble deeds are performed by them. It brings in them a sense of arrogance. This lowers the divinity of our noble actions.
When we perform noble deeds without any selfish motives, we become people of divine qualities. As soon as we exhibit vanity, our deeds no longer reflect our noble intentions. Many of us do noble deeds just to earn fame and glory, This notion loses the sole purpose. On the contrary, men of divine qualities dedicate their noble deeds to God. They should think that God has provided them this opportunity, therefore they should be thankful to God for their noble achievements.
हमें विश्वास है कि यह पुस्तक अंग्रेजी जानने वाले पाठकों के लिए उपयोगी होगी। इसे पढ़कर वह वेदों के महत्व को जान सकेंगे। वेद ईश्वरीय ज्ञान है तथा सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। इस तथ्य का अनुभव भी इस पुस्तक में दी गई मन्त्र की व्याख्याओं को पढ़कर होता है। विदेशों में निवास करने वाले विदेशी एवं एनआरआई बन्धु इस पुस्तक से विशेष रूप से लाभान्वित होंगे। विद्वान लेखक कृष्ण चोपड़ा जी ने इस पुस्तक को अंग्रेजी में लिखकर वैदिक साहित्य के प्रेमी अंग्रेजी पाठकों की प्रशंसनीय सेवा की है। हम इस पुस्तक की सफलता एवं सर्वत्र प्रचार-प्रसार की कामना करते हैं। ईश्वर इस पुस्तक के लेखक, प्रकाशक एवं वितरक बन्धुओं श्री कृष्ण चोपड़ा एवं श्री प्रभाकरदेव आर्य जी को अच्छा स्वास्थ्य, यश एवं दीर्घायु प्रदान करें। हम पाठक महानुभावों से भी आग्रह करेंगे कि वह सब इस पुस्तक को मंगाकर इससे लाभान्वित हों। ओ३म् शम्।