अमेरिका से सबक लें।
क्या हुआ जब घर में खाना बनाना बंद हो गया?
1980 के दशक के प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने लोगों को चेतावनी दी
यदि रसोई निजी कंपनियों को सौंप दी गई, और अगर बुजुर्ग एवम बच्चे की देखभाल भी सरकार को देते हैं, तो परिवार की जिम्मेदारियां और इसकी प्रासंगिकता नष्ट हो जाएगी। ”
लेकिन बहुत कम लोगों ने उनकी सलाह सुनी घर पर खाना बनाना बंद है। बाहर ऑर्डर करने की आदत के कारण अमेरिकी परिवार लगभग विलुप्त हो गए, जैसा कि पूर्व में चेतावनी दी गई थी।
घर पर खाना बनाना मतलब परिवार को स्नेह से जोड़ना।
भोजन घर पर बनाने के अनेक फायदे उद्देश्य लाभ है ।
अगर रसोई नहीं है, सिर्फ एक शयनकक्ष है, तो घर एक परिवार नही सिर्फ एक छात्रावास है।
उन अमेरिकी परिवारों का क्या हुआ जिन्होंने रसोई बंद कर दी और सोचते हैं कि केवल शयनकक्ष ही काफी है?.
1971 में, 71 प्रतिशत यू.एस. परिवारों के पति और पत्नी बच्चों के साथ साथ रहते थे।
2020 तक यह प्रतिशत गिरकर 20 पर आ गया है।
जो परिवार उस समय साथ रहते थे वे अब नर्सिंग होम (वृद्धाश्रम) में रह रहे हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में,घरों में 15 प्रतिशत महिलाएं अकेली रहती हैं
12 प्रतिशत पुरुष अकेले हैं
19% घरों में स्वामित्व केवल माता-पिता के पास होता है।
6% परिवार पुरुष-महिला एक साथ रहते हैं।
आज जन्म लेने वाले सभी बच्चों में से 41% अविवाहित महिलाओं के पैदा होते हैं।
इनमें से आधी लड़कियां स्कूल जा रही हैं,
संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 50 प्रतिशत प्रथम विवाह इस सोच, व्यवस्था के कारण तलाक में समाप्त हो जाते हैं।
दूसरी शादी का 67%, और
तृतीय विवाहों में से 74 प्रतिशत भी समस्याग्रस्त हैं।
ध्यान दें, बगैर रसोई के बने शयनकक्ष से परिवार नहीं बनते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका विवाह टूटने का एक उदाहरण है।
क्या हमारी महिलाएं दुकानों में मिठाइयाँ खरीद कर जश्न मनाएँगी अगर यहाँ के परिवार भी वहाँ की तरह उजड़ गए।
परिवारों के नष्ट होने पर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
बाहर खाने से शरीर मोटा हो जाता है जो अनेक रोगों का कारण है ।
बाहरी भोजन से अनेक संक्रमण और अनावश्यक खर्च की आशंका रहती है
बाहरी भोजन में प्रेम,समर्पण और ईश्वर का भाव न होने से यह केवल खानापूर्ति बनकर रह जाता है इसमें न गुणवत्ता होती है ,न पोष्टिकता और न स्वाद ,न अपनापन ।
इसलिए रसोई में खाना बनाना ही परिवार की भलाई का एकमात्र उपाय है।
शारीरिक और मानसिक संजीवनी स्वास्थ्य एव स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए भी जरूरी है।
इसलिए हमारे घर के बड़ों हमें सलाह देते है कि बाहर का खाना कम करें/ परहेज करें
लेकिन आज हम अपने परिवार के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं…”,
स्विगी, जोमैटो, उबर ईट्स जैसे ऑनलाइन ऑर्डर करना और खाना पसन्द करते हैं ,
उच्च शिक्षित, मध्यम वर्ग के लोगों में भी फैशन बन रहा है।,
यह आदत होगी आपदा…
ऑनलाइन कंपनियां मनोवैज्ञानिक रूप से तय करती हैं कि हमें क्या खाना चाहिए… यह व्यापार है परिवार का भाव नही
हमारे पूर्वज तीर्थ यात्रा और यात्रा पर जाने के लिए भी पहले खाना बनाते और साथ ले जाते थे
तो घर में ही खाना बनाएं, साथ में खाएं और सुखी रहें।