ये समय था 15 फरवरी अर्थात आज का ही और वर्ष था 2010 . स्थान था पश्चिम बंगाल जहां पर आज CBI को बंधक बना लिया जाता है और भारतीय सेना की मौजूदगी का विरोध किया जाता है .. क्षेत्र था मिदनापुर का जो वामपंथी शासन में नक्सलवाद का गढ़ बन चुका था.. इनसे लड़ने की जिम्मेदारी थी केंद्र सरकार की जो उस समय काँग्रेस के हाथों में थी..गृहमंत्री उस समय हुआ करते थे पी चिदम्बरम व प्रधानमंत्री थे डॉक्टर मनमोहन सिंह.. नक्सलियों के सफाये के लिए तब बनाई गई थी ईस्टर्न फ्रंटियर लेकिन कभी केंद्र की कांग्रेस सरकार राज्य सरकार पर व कभी राज्य की वामपंथी सरकार केंद्र पर सहयोग न करने का आरोप लगाया करती थी.. यद्द्पि आज दोनों ही एक दूसरे का हाथ थाम चुके हैं साथ मे चुनाव लड़ने के लिए और मिलजुल कर केंद्र में सरकार बनाने के लिए . उन 24 वीर बलिदानियों के बलिदान को भूल कर के, अपनी अपनी राजनैतिक जरूरतों को देख कर के .. भले ही इसको देश के हित का नाम दिया जा रहा हो..
ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स पैरामिलिट्री दल की वो शाखा थी जो पश्चिम बंगाल के अंदर नक्सलवाद का दमन करने पर लगी थी..वही वामपंथी सरकार की नक्सलियों के खिलाफ कार्यप्रणाली सदा ही हाशिये पर रही थी. उसका प्रमाण था कि नक्सली किशन के नाम के पीछे जी लगाना.. वो सोमवार का दिन था जब माओवादियों ने सोमवार को पश्चिम बंगाल में अब तक के सबसे बड़े हमले को अंजाम देते हुए अर्द्धसैनिक बलों के एक कैंप को पूरी तरह खत्म कर दिया था .. पश्चिम मिदनापुर के सिलदा इलाके के कैंप पर हुए सरेशाम इस हमले में कम से कम 24 जवान बलिदान हो गए थे। माओवादियों का इतने से भी मन नहीं भरा तो उन्होंने कैंप को आग के हवाले कर दिया था जिसमे वीरो के शवों को भी नुकसान हुआ था.., ये दुस्साहस आगे भी जारी रहा था और इसके बाद करीब 40 और माओवादियों ने रात 08:30 बजे धरमपुर के सीआरपीएफ कैंप पर भी हमला कर दिया था..लेकिन वहां उन्हें मुह की खानी पड़ी थी.
ये घटना तब हुई जब ये सभी जवान नक्सलियों के खिलाफ ग्रीनहंट नाम का एक अभियान चला रहे थे .. इन वीरो के खिलाफ सरकारी बेड़ियां व मानवाधिकार का नियम कानून कायदा सब चल रहा था जबकि नक्सलियों के साथ कोई नही था और वो स्वतन्त्र थे..बाद में बाकायदा नक्सल नेता ने सरकार को आंख दिखाते हुए हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा था कि यह गृह मंत्री पी. चिदंबरम को उनके ऑपरेशन ग्रीनहंट का उनकी ओर से जवाब था . सीआपीआई (माओवादी) के प्रवक्ता किशन जिसको कुुुछ नेेेता जी सिर्फ इसलिए कहते हैं क्योंकि उनको नक्सली भी जी कहते हैं..उसी ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि हमारे साथियों ने सिलदा कैंप हमला किया है, जो सफल रहा।
वो वहां से एके-47, एसएलआर और अन्य अत्याधुनिक हथियार भी ले गए , साथ ही यह भी कहा कि वो बातचीत के लिए तैयार हैं और ऐसे हमले रोक सकते हैं। लेकिन इससे पहले सरकार को अपना ऑपरेशन ग्रीनहंट रोकना होगा। ये शब्द साफ दर्शाते थे कि उस समय इन हत्यारो का राजनेताओं ही नही सैनिको पर कितना भारी दबाव था जो सरकार को सीधी धमकी दिया करते थे और बातचीत का माहौल बनाने के लिए सैनिको की हत्या करना जरूरी समझते थे.. आज वही राजनेता कश्मीर तक मे आतंकियो के खिलाफ रहम की अपील करते दिख जाया करते हैं और उनको मारने वाले सैनिको पर कार्यवाही करने की गुहार लगाते भी.
पश्चिमी मिदनापुर के डीएम एन. एस. निगम के अनुसार करीब 05:30 बजे 100 माओवादियों ने 25 बाइक और फोर वीलर पर सवार होकर आए थे। लालगढ़ से सटे सिलदा इलाके में ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के कैंप पर गोलियों की बौछार कर दी।
उस समय कैंप में 51 जवान थे, जो खाना बनाने और दूसरी चीजों में व्यस्त थे। माओवादियों के कैंप में आग लगाने से इसमें कई जवान जिंदा जल गए। कुछ गोलियों से बलिदान हो गए।उन्होंने कहा कि माओवादियों ने कैंप की ओर जाने वाली सड़क पर लैंडमाइंस लगा दिए ताकि फंसे जवानों को सैन्य सहायता न मिल सकें.
हत्यारे के नाम में “जी” आज भी लगाते हैं अर्बन नक्सल वो कम्युनिस्ट थे, वो कुछ नेताओं की तरह ही लाल सलाम किया करते थे.. लेकिन उसके नाम के पीछे जी लगाया जाता रहा और उसको भारत की वर्तमान विकृत होती जा रही राजनीति में “किशन” जी शब्द से नेतागण बुलाते रहे.. यहां ये ध्यान रखने योग्य भी है कि कुछ राजनेताओं का जी किशन आज भी चर्चा में रहता है राजनीति के गलियारों में पर उस से मातृभूमि की रक्षा करते हमारे 24 जवान जो ईस्टर्न फ्रंटियर के सैनिक थे, वो सब के सब लगभग भुला दिए गए हैं.. यद्द्पि आतंकियों को या उनसे भी खतरनाक देशद्रोहियों को जी कहने की परंपरा आज की नही है..कभी स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को भाई बोला गया था तो कभी संसार के सबसे कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन को जी बोला गया. नक्सली किशन को जी बोलना कोई नई प्रथा नहीं चली थी..
साभार https://www.facebook.com/arya.samaj से