उत्तर प्रदेश धर्म, संस्कृति एवं पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण राज्य है। प्रयागराज हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है, क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत संगम होता है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां कुम्भ मेले का आयोजन होता है। कुम्भ मेले के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुम्भ मेला भी लगता है। कुम्भ का शाब्दिक अर्थ घड़ा एवं मेले का अर्थ एक स्थान पर एकत्रित होना है। इसे अमृत उत्सव भी कहा जाता है।
सरकार राज्य के धार्मिक स्थलों के विकास एवं सौन्दर्यीकरण पर विशेष ध्यान दे रही है। राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-2022 के बजट में अयोध्या में पर्यटन सुविधाओं के विकास एवं सौन्दर्यीकरण के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया। वाराणसी में पर्यटन सुविधाओं के विकास एवं सौन्दर्यीकरण के लिए 110 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई। मुख्यमंत्री पर्यटन स्थलों की विकास योजना के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। चित्रकूट में पर्यटन विकास की विभिन्न योजनाओं के लिए 20 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई। इसके अतिरिक्त विन्ध्यांचल एवं नैमि षारण्य में स्थल विकास के लिए 30 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।
चौरी चौरा महोत्सव के लिए 15 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई। श्रीराम जन्म भूमि मंदिर अद्योध्या धाम तक पहुंच मार्ग बनाने के लिए 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। लखनऊ में उत्तर प्रदेश जनजातीय संग्रहालय के निर्माण के लिए आठ करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई। शाहजहांपुर में स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय की वीथिकाओं के लिए चार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। राज्य में ख्यातिलब्ध साहित्यकारों एवं कलाकारों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया।
उल्लेखनीय है कि विंध्याचल कॉरिडोर का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। इस परियोजना के अंतर्गत श्रद्धालुओं को अनेक प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। यह योगी आदित्यनाथ का ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ बताया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्वीट में कहा था- “राष्ट्र की आधारभूत संरचना के विकास और उसके नव निर्माण हेतु भाजपा सरकार प्रतिबद्ध है। मिर्जापुर में माँ विंध्यवासिनी कॉरिडोर परियोजना का शिलान्यास व रोप-वे का लोकार्पण हमारी इसी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। प्रदेश का इंफ्रास्ट्रक्चर आज नये प्रतिमान गढ़ रहा है।”
राज्य सरकार पर्यटन के क्षेत्र में भी विशेष कार्य कर रही है। गोरखपुर के रामगढ़ ताल में वाटर स्पोर्ट्स, पीलीभीत टाइगर रिजर्व तथा चंदौली में देवदारी राजदारी वाटरफॉल का विकास किया गया। स्पिरिचुअल सर्किट के अंतर्गत गोरखपुर, देवीपाटन, डुमरियागंज में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। जेवर, दादरी, नोएडा, खुर्जा एवं बांदा में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। आगरा में शाहजहां पार्क एवं महताब बाग-कछपुरा का कार्य एवं वृन्दावन में बांके बिहारी जी मंदिर क्षेत्र में पर्यटन का विकास किया गया। दुधवा टाइगर रिजर्व तथा पीलीभीत टाइगर रिजर्व स्थलों का विकास किया गया।
सरकार तीर्थ यात्रियों को अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। इसके अंतर्गत कैलाश मानसरोवर यात्रियों की अनुदान राशि 50 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये प्रति यात्री की गई। इसी प्रकार सिंधु दर्शन अनुदान 20 हजार रुपये किया गया। इतना ही नहीं, सरकार द्वारा अयोध्या में दीपोत्सव, मथुरा में कृष्णोत्सव, बरसाना में रंगोत्सव, वाराणसी में शिवरात्रि एवं देव दीपावली का आयोजन किया जा रहा है। अयोध्या दीपोत्सव ने निरंतर दो वर्षों में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। बौद्ध सर्किट में श्रावस्ती, कपिलवस्तु और कुशीनगर तथा रामायण सर्किट में चित्रकूट एवं श्रृंगवेरपुर में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। इसके अतिरिक्त बृज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, नैमि षारण्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, विन्ध्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, शुक्र धाम तीर्थ विकास परिषद, चित्रकूट तीर्थ विकास परिषद तथा देवीपाटन तीर्थ विकास परिषद का गठन किया गया।
महाभारत सर्किट के अंतर्गत महाभारत से जुड़े स्थलों का विकास किया गया। शक्तिपीठ सर्किट एवं आध्यात्मिक सर्किट से जुड़े स्थलों का विकास किया गया। जैन तथा सूफी सर्किट के अंतर्गत आगरा एवं फतेहपुर सीकरी में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया।
सरकार धार्मिक आयोजनों में भी श्रद्धालुओं को पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। कुभ मेला इसका उदाहरण है। खगोल गणनाओं के अनुसार कुम्भ मेला मकर संक्रान्ति के दिन प्रारम्भ होता है। उस समय सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिवस को अति शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुलते हैं। इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु अमृत से भरा कुम्भ लेकर जा रहे थे कि असुरों ने आक्रमण कर दिया। अमृत प्राप्ति के लिए देव एवं दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान होते हैं। इसलिए कुम्भ भी बारह होते हैं। इनमें से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं तथा शेष आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं। देव एवं दानवों के इस संघर्ष के दौरान अमृत की चार बूंदें गिर गईं। ये बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक तथा उज्जैन में गिरीं, जहां पर तीर्थस्थान बना दिए गए। तीर्थ उस स्थान को कहा जाता है जहां मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार जहां अमृत की बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर तीन-तीन वर्ष के अंतराल पर बारी-बारी से कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। इन तीर्थों में प्रयाग को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां तीन पवित्र नदियों का संगम होता है।
भारत में महाकुम्भ धार्मिक स्तर पर अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लाखों लोग सम्मिलित होते हैं। महीने भर चलने वाले इस आयोजन में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए टेंट लगा कर एक छोटी सी नगरी अलग से बसाई जाती है। यहां सुख-सुविधा की सारी वस्तुएं जुटाई जाती हैं। यह आयोजन प्रशासन, स्थानीय प्राधिकरणों एवं पुलिस की सहायता से आयोजित किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर के जंगलों, पहाड़ों और कंदराओं से साधु-संत आते हैं। कुम्भ योग की गणना कर स्नान का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। स्नान से पूर्व मुहूर्त में नागा साधु स्नान करते हैं। इन साधुओं के शरीर पर भभूत लिपटी रहती है, बाल लंबे होते हैं और वे मृगचर्म पहनते हैं। स्नान के लिए विभिन्न नागा साधुओं के अखाड़े भव्य रूप से शोभा यात्रा की भांति संगम तट पर पहुंचते हैं।
उत्तर प्रदेश पिछले 5 साल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आधारशीला पर खड़ा हो रहा है।
( लेखक- मीडिया प्राध्यापक एवं राजनीतिक विश्लेषक है। )