महाराष्ट्र के रत्नगिरि का वेल्स बीच एक खूबसूरत बीच है जिसके तीन तरफ सह्याद्रि पर्वत प्राकृतिक सौन्दर्यता प्रदान करते हैं। यह बीच सभी प्रकार के प्रदूषण से मुक्त होने एवं शांत वातावरण के कारण शांति प्रिय सैलानियों में लोकप्रिय है। यहां नोकायन का आनंद भी उठाते हैं सैलानी। रहने के लिए कॉटेज बने हैं एवं खाने-पीने की चीजें भी यहां मिलती हैं। यहां का प्रमुख आकर्षण है लुप्त हो रहे ऑलिव रिडले प्रजाति के छोटे समुद्री कछुऐ और इनके संरक्षण की परियोजना।
सह्याद्रि निसर्ग मित्र मंडल द्वारा यह परियोजना वर्ष 2001 ई.में शुरू की गई थी। बड़ी संख्या में कछुए समुद्र के किनारे आते हैं और सुनहरी रेत पर अंडे देते हैं। इन अंडों और इनसे निकलने वाले बच्चों का संरक्षण परियोजना के तहत किया जाता है। आसपास के 36 गांवों में हेचरिज बनाई गई है,एवं संरक्षित अंडों से निकले बच्चों को समुद्र में छोड़ा जाता है। इस प्रजाति के कछुओं की विश्व में असाधारण नेस्टिंग हैबिट्स हैं।
कछुआ फेस्टिवल
ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को यहाँ आकर्षित करने में प्रति वर्ष फरवरी- मार्च माह में आयोजित होने वाले
“कछुआ फेस्टिवल” का महत्वपूर्ण योगदान है। इस फेस्टिवल का आयोजन वर्ष 2008 से स्थानीय संस्था सह्याद्रि निसर्ग मित्र एवं कसाव मित्र मंडल द्वारा किया जा रहा है। आज यह फेस्टिवल इतना लोकप्रिय हो गया है कि इसमें शामिल होने और देखने के लिए बहुत बड़ी तादात में पर्यटक यहाँ आने लगे हैं। इस अनोखे उत्सव ने इस बीच और छोटे से गाँव वेल्स को महाराष्ट्र राज्य में विख्यात कर दिया। इस परियोजना से गांव को आर्थिक आधार भी मिला है। किसानों के छोटे से गांव में चावल की खेती के साथ-साथ नारियल,काजू,सुपारी और आम की पैदावार भी होती है। सैलानी इनका भी आनन्द लेते हैं।
रत्नगिरी जिले में मदंगढ़ ताल्लुका के इस गांव का ऐतिहासिक महत्व भी है कि यह मराठों के नाना पेशवा का जन्म स्थल रहा है।समीप ही ऐतिहासिक किला भी स्थित है। वेल्स मुम्बई से सड़क मार्ग द्वारा 213 किमी की दूरी पर है।
बोर्डि -दाहनु बीच
बोर्डि -दाहनु बीच महाराष्ट्र के खूबसूरत बीचों में से एक अच्छा बीच है,जो गांव की संस्कृति एवं चीकू फल की पैदावार देखने का बेहतरीन मौका प्रदान करता है। बोर्डि से दाहनु तक करीब 17 किमी लंबाई में फैला यह समुद्री बीच सफेद रेत एवं हरियाली लिए पहाड़ों के नीचे फलदार बगीचों का सुंदर नजारा प्रस्तुत करता है।
बीच पर चारों और शांति ही शांति है।एकांत,शांति,तनाव रहित आराम चाहने और प्रकृति से प्रेम करने वाले सैलानी प्रायः इस बीच पर सप्तान्त में पहुंच कर आनन्दित होते हैं। सैलानी यहां तट से टकराकर बिखरती पानी की लहरों के मधुर संगीत को सुन कर रोमांचित होते हैं। समुद्र पर सुबह मछली पकड़ने के लिए नाव लेकर जाना अथवा शाम को वापस आने के दृश्य भी लुभावने होते हैं।
ग्रीन जोन
यह क्षेत्र कई पीढ़ियों से रह रहे पारसी और वर्लिस जनजाति लोगों का आवास है, जो अपनी संस्कृति और परम्पराओं के साथ गहराई तक जुड़े हुए हैं। खेती, मछली पालन इनका प्रमुख व्यवसाय है। शहरीकरण से अप्रभावित इस क्षेत्र को यहां की पर्यावरणीय स्थित के कारण” ग्रीन जोन” कहा जाता है। यहाँ पारसियों का पूजा स्थल एक मंदिर भी दर्शनीय है।
चीकू उत्सव
इस बीच पर सैलानियों को आकर्षित करने एवं चीकू उत्पादकों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिछले 7 वर्षों से प्रतिवर्ष दाहनु में जनवरी के आखिर में या फरवरी के शुरू में दो दिवसीय ” चीकू उत्सव” का आयोजन उत्साहपूर्वक किया जाता है। उत्सव में स्थानीय लोग अपनी पूरी भागीदारी निभाते हैं।उत्सव को भारत सरकार के जनजाति मंत्रालय का पूरा सहयोग मिलता है। इस उत्सव में समीप दक्षिणी गुजरात से करीब 1.5 लाख लोग शामिल होने के लिये आते हैं। उत्सव में सैलानी चीकू फल के बगीचों के साथ-साथ चीकू से बने चिप्स, मिठाई, टॉफी,कुल्फी आदि का लुत्फ उठाते हैं और आदिवासियों की संस्कृति को जी भर कर देखे हैं। उत्सव में विभिन्न प्रकार की करीब 250 स्टॉल्स सजाई जाती है।
इस उत्सव में महाराष्ट्र के प्रसिद्ध कोली,तारपी, लावणी,ढोल आदि नृत्यों एवं लोक संगीत सैलानियों को राज्य की संस्कृति से परिचय कर कर उनका मनोरंजन करते हैं। लोकरंगों की छँटा उत्सव को रबहुरंगी रूप प्रदान करती हैं। दाहनु,पालघर एवं घोलवाद की अर्थव्यवस्था चीकू उत्पादन पर ही निर्भर है, एवं यहाँ करीब 6,000 हेक्टेयर में चीकू की खेती की जाती है। चीकू उत्सव भारत के टॉप 10 ग्रामीण उत्सवों में शामिल है एवं महाराष्ट्र राज्य का पहले नम्बर का उत्सव है।
दाहनु सड़क एवं रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। मुम्बई से 140 किमी, सूरत से 180 किमी एवं नासिक से 200 किमी की दूरी पर है। इस ताल्लुका में चार रेलवे स्टेशन वंगाओं,दाहनु रोड,घोलवाद एवं बोर्दि हैं।
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( लेखक राजस्थान के कोटा में स्वतंत्र पत्रकार और पर्यटन के शौकीन हैं)
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