सच बताऊँ, 1990 में मेरे एक मित्र ने मुझे इसके बारे में बताया था तो मैंने कहा था कि “यह सब कुछ नहीं, घृणा फैलाने वालों का प्रोपेगैंडा है”.
जब 1991 में मैं अपने कॉलेज में आये पहले काश्मीरी स्टूडेंट Sunil Raina से मिला तो मैंने पहली बार जाना कि ऐसा सचमुच कुछ हुआ था. मैं पहली बार एक ऐसे व्यक्ति से मिला जिसे अपना घर, अपने बचपन का शहर अनंतनाग छोड़कर हमेशा के लिए जाना पड़ा था. उसने बताया कि उसके पिता ने घाटी छोड़ने के सिर्फ दो वर्ष पहले अपने जीवन की पूरी जमापूँजी लगा कर एक नया घर बनाया था. उसमें एक फायरप्लेस बनवाया था. सर्दियों में उस फायरप्लेस के पास बैठकर पढ़ना उसे बहुत पसंद था.
मुझे रैना की कहानी सुनकर सबसे पहले बहुत ग्लानि हुई. यह ग्लानि थी कि यह सब मेरे देश में मेरे अपने लोगों के साथ हो रहा था और मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता. और जब किसी ने बताया भी तो मैंने इसे प्रोपेगैंडा बता कर खारिज कर दिया था.
मैंने रैना को हमेशा कहा, “तुम्हें यह कहानी दुनिया को बतानी चाहिए. यह तुम पर बकाया है, दुनिया को बताओ कि काश्मीर में हिंदुओं के साथ क्या हुआ था”. खैर, मेरी रिक्वेस्ट सुनी गई और डॉ सुनील रैना ने काश्मीरी हिंदुओं के दर्द को डॉक्यूमेंट करते हुए अपनी पहली पुस्तक लिखी है. पुस्तक अंग्रेज़ी में है और मुझे इसके पहले ड्राफ्ट की सॉफ्ट कॉपी पढ़ने का सौभाग्य मिला. आशा है, प्रकाशित होकर यह पुस्तक शीघ्र आपके हाथों में होगी.
हमें अपनी कहानी खुद कहनी होगी. हम नहीं कहेंगे तो कोई और कहेगा. कोई मणि रत्नम “रोजा” बनाएगा जिसमें आतंकवादी को आँसू पोछते हुए दिखाया जाएगा. कोई विधु विनोद चोपड़ा “शिकारा” बनाएगा जिसमें काश्मीरी हिंदुओं की व्यथा का मजाक बनाया जाएगा. कोई गुलज़ार “माचिस” बनाएगा जिसमें आतंकवाद के लिए पुलिस के अत्याचार को दोषी दिखाया जाएगा. आप अपनी ही कहानी के खलनायक घोषित कर दिए जाएँगे. यहूदियों के साथ कितने अत्याचार हुए, यह दुनिया जानती है. क्योंकि उन्होंने अपनी कहानी बार बार कही. उन्होंने हज़ारों किताबें लिखीं, सैकड़ों फिल्में बनायीं. हमारा कोई स्पिएलबेर्ग नहीं हुआ जो हमारी शिण्डलर्स लिस्ट बनाता.
#The Kashmir Files में Vivek Agnihotri भाई ने हिंदुओं की यह कहानी कहने का साहस किया है. उन्हें सर आंखों पर बिठाएँ. उन्हें अपना स्पिएलबेर्ग समझें. स्पिएलबेर्ग सिर्फ ऑस्कर जीतने से नहीं बनता. जो हमारी कहानी कहता है, वह हमारा स्पिएलबेर्ग है.