२ अप्रैल २०२३ को कश्मीरी पंडितों का विशेष त्यौहार है ‘नवरेह’।’नवरेह’ यानी नव-वर्ष >नया वर्ष। कश्मीरी पंडित जिस उत्साह से शिवरात्रि का त्यौहार मनाते हैं,उसी उमंग और उत्साह से ‘नवरेह’ भी मनाते हैं। प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रथमा को यह पारंपरिक त्यौहार संपन्न होता है।गृहणियां रात को एक थाल सजाकर रख देती हैं।इस थाल में चावल, अखरोट, बादाम, कलम-दवात, दर्पण, मिश्री, दधि, कुछ मुद्राएं, नए वर्ष का पंचांग आदि मांगलिक वस्तुएं रखी जाती हैं । चावल इसलिए रखे जाते हैं ताकि वर्ष भर में घर में अन्न का अभाव न हो, अखरोट और बादाम इसलिए ताकि जीवन फलदायी बना रहे, कलम-दवात सरस्वती देवी की कृपा-दृष्टि के लिए, दर्पण सुखी-जीवन के भविष्य को बिंबित करने के लिए, मुद्राएं लक्ष्मीजी की अनुकम्पा के लिए तथा पंचांग इसलिए कि वह आने वाले वर्ष की शुभ(अशुभ) सूचनाओं आदि का कोष है ।इधर, भोर की प्रथम किरण फूटती है और उधर गृहणियां परिवार के सदस्यों को इस थाल का दर्शन कराती हैं।सभी सदस्य थाल में से नैवेधस्वरूप थोड़े से बादाम और अखरोट तथा मिश्री के कुछ टुकड़े चख़ लेते हैं तथा दर्पण में अपनी छवि देख लेते हैं।थाल का दर्शन कराने वाली सुकन्या/बालक/गृहिणी आदि को बड़े बुज़र्ग नज़राना देते हैं।
कश्मीरी पंडितों का पंचाग (जिसे ‘जंत्री’) कहते हैं, पहले तो कश्मीर में छपता था, अब विस्थापन के बाद जम्मू से छपने लगा है।मैं ने यह पंचाग कई सप्ताह पूर्व फेसबुक में विज्ञापन देखकर जम्मू से ऑनलाइन मंगवाया था।मेरे खूब याद दिलाने पर भी भेजने वाले धर्मप्राण-बन्धु ने आज तक न तो पैसों की बात की और न ही कोई सन्देश ही भेजा। कह नहीं सकता कि यह उदारता/सदाशयता उन्होंने मेरे प्रति दिखाई या फिर वे सचमुच ‘दानवीर’ हैं।
‘नवरेह’ का पर्व कश्मीरियों के लिए नवजीवन का अग्रदूत है। वह प्रत्येक वर्ष उनके लिए नई आशाओं, नई उमंगों तथा नई खुशियों का संदेश लेकर आता है।आशा की जानी चाहिए कि प्रकृति-रानी कश्मीर-वासियों के दुखदर्द दूर करेगी, उनके होठों से छिनी हंसी उन्हें लौटा देगी और एक बार फिर धरती के इस स्वर्ग में सुखशांति का वातावरण स्थापित होगा।
(डॉ. शिबन कृष्ण रैणा)
पूर्व सदस्य,हिंदी सलाहकार समिति,विधि एवं न्याय मंत्रालय,भारत सरकार।
पूर्व अध्येता,भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान,राष्ट्रपति निवास,शिमला तथा पूर्व वरिष्ठ अध्येता (हिंदी) संस्कृति मंत्रालय,भारत सरकार।
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