(30 अप्रैल बलिदान दिवस -1791-1837 )
हिन्दू धर्म और जाति की रक्षा के लिए जिन महापुरुषों ने अपने प्राण और सर्वस्व की बाजी लगा कर हिन्दू जाति के नाम को ऊँचा किया है, उनमें छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्दसिंह और वीर बन्दा वैरागी के साथ सरदार हरी सिंह नलवा का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जायगा। लन्दन के प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र “टिट विट्स” में नलवा के विषय में लिखा गया था कि – वह संसार का सबसे अधिक सफल सेनापति था। मौलाना मीर अहमद ने अपनी पुस्तक “पंजाब का इतिहास” के पृष्ठ 483 पर लिखा है – “पेशावर प्रदेश के आस-पास सारे पठान नलवा के नाम से काँपा करते थे। पठान माताएँ बच्चों को डराने के लिए उसका नाम ले लिया करती थीं।” यह हरीसिंह नलवा कौन था, जिसके नाम से आज भी पठान माताएँ अपने बच्चों को रोने से चुप कराने के लिए “हरिया आया” कहा करती है ?
हरीसिंह नलवा का जन्म सन् 1791 में [आज से 230 वर्ष पूर्व] पंजाब में हुआ। बन्दा वैरागी की भाँति वह बचपन में ही अस्त्र-शस्त्र चलाने में निपुण हो गया। कुछ बड़ा होने पर महाराजा रणजीतसिंह ने उसे अपना अंगरक्षक बना लिया। फिर कुछ दिन में वह “सिंहहृदय” सेना का सेनापति बना दिया गया। मुल्तान की विजय में उसकी वीरता सबसे अधिक चमक गई, फिर दोस्त मुहम्मदखाँ को हरा कर उसने अफ़ग़ानों पर विजय प्राप्त की।
काश्मीर में अफ़ग़ान शासकों द्वारा हिन्दुओं पर असीम अत्याचार हो रहे थे। असद्खाँ लोगों को रस्सी बांधकर डल झील के अथाह जल में फेंकवा देता था और डूबते हुए लोगों को देखकर ठहाका मार के हँसता था। हिन्दुओं को सिर पर पगड़ी बांधने, पैर में जूते पहनने की मनाही थी। रास्ता चलते काश्मीरी पंडितों की पीठ पर मुसलमान छलांग मार कर चढ़ जाते थे, जिससे पंडितजी धम से गिर पड़ते थे। इन अत्याचारों को मिटाने के लिए सन् 1811 में 30,000 सैनिक लेकर हरीसिंह नलवा काश्मीर पहुँचा। वहां का शासक जवारखां भाग गया। काश्मीर नलवा के अधिकार में आ गया और वहीं उसे महाराजा रणजीतसिंह की ओर से काश्मीर का गवर्नर बनाया गया; काश्मीर के हिन्दुओं ने सुख की सांस ली। सब अत्याचार बन्द हो गये। जो लोग ज़बरदस्ती मुसलमान बनाये गये थे, वे नलवा के प्रोत्साहन से फिर शुद्ध हो गये। ऐसे 50,000 लोग फिर से हिन्दू बने। काश्मीरी पंडित फिर से सिर पर पगड़ी बांधने और पैर में जूते पहन कर चलने लगे। धन्य हरीसिंह नलवा ! हिन्दू जाति के रक्षक, तुमको अनेक बार धन्य है।
डेरा इस्माइलखाँ और हज़ारा आदि जिलों के अफ़ग़ान नलवा के नाम से थर-थर कांपते थे, क्योंकि वह जैसों को तैसा दंड देता था । “शठे शाठ्यं समाचरेत्” की नीति को वह खूब समझता था। दुष्टों के साथ दया करना तो वह जानता ही न था। नवाशहर के भीषण युद्ध के पश्चात् उसने पठानों को उनकी दुष्टता का खूब मजा चखाया। उसे मालूम हुआ कि पठानों द्वारा पकड़ी गई हिन्दू स्त्रियां अभी तक पठानों के घर में हैं। उनको छुड़ाने का कोई और उपाय न देखकर उसने अंगरोर पहुँच कर 1000 पठान स्त्रियां पकड़वा लीं। यह देखकर पठान घबरा गये और उन्होंने सब हिन्दू स्त्रियों को उनके घर पहुंचा दिया। तब नलवा ने भी सब पठान स्त्रियों को सुरक्षित रूप में वापस कर दिया। इस प्रकार लोहे से लोहा काटना और आतताइयों को दंड देना वह खूब जानता था।
एक बार मिचनी के खान के कुछ पठानों ने एक हिन्दू बरात को लूट लिया। दुलहिन की सुन्दरता से प्रभावित होकर खान ने उसे अपने घर में रख लिया और बरातियों को कैद कर लिया। जब नलवा को यह खबर लगी तो केवल 100 सिपाही लेकर वह खान पर चढ़ दौड़ा, क़िले की धज्जियां उड़ा दीं, खान मारा गया, दुलहिन छुड़ा ली गई। उसी दिन से उस स्त्री और उसके पति ने सिक्ख जाति की सेवा में अपना जीवन अर्पण कर दिया। दुष्ट खान को अपनी दुष्टता का फल मिला और सारे पठान सहम गये। उस दिन से उस इलाक़ों में हिन्दू स्त्रियों को उड़ाना और हिन्दुओं पर अत्याचार करना बिलकुल बन्द हो गया।
धन्य है हरीसिंह नलवा ! तेरे जैसे महान् वीर, रणकुशल हिन्दू जाति के हितैषी यदि कभी-कभी भारत भूमि में उत्पन्न होते रहते तो हमारी जाति की दुर्दशा कभी न होती। अत्याचारियों और आतताइयों का डटकर मुक़ाबला करना और उनको समुचित दण्ड देना तेरे जैसे वीरों का ही काम है। कोरे शान्ति के उपासक, आतताइयों को अपने शान्ति के उपदेश से नहीं रोक सकते। दुष्टों को दण्ड देना ही सबसे बड़ा क्षात्रधर्म है, जिसका पालन तूने जीवन भर किया।
धन्य हरीसिंह नलवा तू था,
देश जाति का उद्धारक॥
अत्याचार मिटाने वाला,
हिन्दू हित का संचारक॥
“सूर्य” चन्द्र हैं जब तक जग में,
तेरी अमर कहानी है॥
हिन्दू जाति धर्म का निर्भय,
तू रक्षक लासानी है॥
[स्रोत : युद्धनीति और अहिंसा, पृष्ठ 65-67, पंचम संस्करण, आर्य साहित्य मंडल, अजमेर, प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा]