इन दिनों मन में उठा एक सहज और बुनियादी सवाल यह हैं कि भारत में सबसे ताकतवर शक्ति कौन सी हैं? प्रायः इसका उत्तर शाय़द एकदम यहीं आवेगा की सत्तारूढ़ जमात और उसके सहयोगी या आनुषंगिक संगठन या समूह आज के भारत में सबसे ताकतवर शक्ति हैं।पर देखा जाय तो स्पष्ट रूप से यह सही जवाब नहीं हैं।यह तो एकाएक आभासी समझवाला एक सतही उत्तर हैं। स्वतंत्र भारत और स्वतंत्रता के पहले के भारत में भी लम्बे अरसे से राजसत्ता को ही सबसे ताकतवर शक्ति मानने की लोकपरम्परा लोकमानस में तो कभी रही ही नहीं हैं। भारत के अधिकांश लोगों का दैनिक जीवन राज्यनिर्भर न होकर खुद के मन की शक्ति पर आधारित है।राजसत्ता को चलाने वाली शक्तियां कोई माने न माने फ़िर भी अपने आप को सबसे ताकतवर शक्ति मानती रही हैं।याने जो भी सत्तारूढ़ हैं वह शक्तिशाली हैं ही ऐसा पूरा लोकमानस भले ही न हो फिर भी सत्तारूढ़ समूह की खुद की अपने बारे में सामान्य समझ तो प्रायःऐसी होती ही हैं।यानी सत्तारूढ़ समूह की अपने बारे में सामान्य समझ यह हैं कि हम ही सबकुछ और सर्वशक्तिमान है।
हमें कोई कुछ कहे या सुझाव दे या सिखाये यह नहीं हो सकता और यदि कोई सत्तारूढ़ समूह से कुछ कहता है या सवाल जवाब करता है तो सत्ता की सूत्रधार धारा या समूह को लगता है कि हमसे सवाल जवाब? जरूर सवाल जवाब करने वाला विध्वंसक मनोवृत्ति का व्यक्ति या समूह हैं।यह भी कहा जाता है कि सवाल उठाने वाले देशद्रोही है। जितनी ताकतवर राजसत्ता उतना अधिक असहिष्णु व्यवहार। अपने आप को सबसे अधिक ताकतवर राजसत्ता समझने वाली जमाते देश के लोकजीवन में उभरते बुनियादी सवालों से सर्वाधिक धबरानेवाली समधानविहीन जमात होती हैं। अपने आप को सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च शक्तिशाली जमात कहने से न चूकने वाली जमातों के पास लोगों के बुनियादी सवालों के कोई समाधान हैं ही नहीं और सत्तारूढ़ जमाते किसी भी स्तर पर समाधान ढूंढना ही नहीं चाहती। साथ ही ऐसी जमात यह भी नहीं चाहती की देश के लोग इन सारे बुनियादी सवालों पर आपसी बातचीत भी करें।
इस सबका नतीजा यह हो गया कि प्रचंड बहुमत से चुनी गयी सरकार भी देश के बुनियादी सवालों पर असहाय और लाचार नजर आती हैं।आज का भारत और आजादी के तत्काल बाद का भारत गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, महंगाई, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, शिक्षा में भारी भेदभाव की परिस्थिति, अशिक्षा, शोषण, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, अन्याय अत्याचार, छूआछूत, आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव,गुण्डागिर्दी, अपराध, माफिया राज , व्यतिगत और सार्वजनिक हिंसाऔर नागरिकों के बिना भेदभाव के जीने का हक,सभी नागरिकों के नागरिक अधिकारों का सम्मान और काम करने का निरन्तर अवसर, सबको इज्जत सबको काम।
इन सब बुनियादी सवालों को हल करने के प्रति प्रायः उदासीन मानसिकता से ही ग्रस्त रहता हैं। सत्तारूढ़ समूह के सामान्य कार्यकर्ता से लेकर सर्वोच्च नेता के पास महज बातूनी जमाखर्च करते रहने के अलावा कोई सकारात्मक सोच समझ और रचनात्मक पहल देश के हर हिस्से के व्यक्ति और समाज के स्तर पर दिखाई नहीं पड़ती। भारत की जनता उन सारे सवालों से निरन्तर जूझते हुए अपने जीवन की चुनौती को स्वीकार कर अपने अपने समाधान और स्वयं की समझ से उपजे समाधान के साथ ज़िन्दगी को जीने की निरन्तर कोशिश कर रहीं हैं। बेजुबान ,बेजमीन, बेरोजगार अपने अपने इलाके में जीने लायक कोई काम तलाश करते हुए जीते रहने की कलाअच्छे से जानतें समझते हैं। यदि अपने गांव में काम के अवसर खत्म हो गये तो वहीं पड़े रहने के बजाय जहां काम के अवसर हो वहां हमेशा के लिए या कुछ समय के लिए चला जाता हैं।
भारत का नागरिक पढ़ा लिखा हो या बिना पढ़ा लिखा दोनों ही परिस्थितियों में जीवन यात्रा को हर परिस्थिति में करतें रहने की जबरदस्त क्षमता रखता है। भारत में आबादी इतनी ज्यादा है पर भारतीयों की इतनी बड़ी संख्या के बल पर हम भारत की बुनियादी समस्याओं का हल कैसे निकालें ?यह सत्ता के सूत्रधार जमात के दिमाग में आता ही नहीं! भारत की सत्तारूढ़ जमाते भारत की आबादी को ही सबसे बड़ी समस्या मानती हैं यही वह बिन्दु है जो इतने विशाल जनसंख्या वाले देश की सत्तारूढ़ जमाते भारत के लोगों की अनन्त शक्ति को देख समझ ही नहीं पाती है। भारत की सबसे ताकतवर और निरन्तर जीवनी शक्ति भारत की एकअरब चालीस करोड़ जनता है। भारत ही नही सारी दुनिया के सारे लोग ऊर्जा के साकार पिण्ड हैं। भारत में युवा आबादी दुनिया में सबसे अधिक है।आज के काल खण्ड में तथाकथित राजनैतिक सत्ता के समूह भारतीय युवा शक्ति को लेकर न तो आज़ कोई सकारात्मक सोच समझ खड़ी कर पा रहे हैं और न हीं भविष्य की युवा आबादी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कोई दिशा निर्देश जारी करना तो दूर इस दिशा में सोच भी नहीं पा रहे हैं।
भारत के सत्तारूढ़ समाज ने भारत की जनता को मानसिक रूप से दो खानों में विभाजित कर रखा है।जो सत्तारूढ़ समूह में शामिल हैं या उसके निकट है वो हर मामले में विशेष महत्व पाने का जतन करते है,जो देश के सत्तारूढ़ समूह में शामिल नहीं है वे सबसे उपेक्षित वंचित वर्गों में अपने आप मान लिये जाते है।आज भी भारत की लोकशक्ति का अधिकांश दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों का निवासी अपने आप अपनी समझ संकल्प और संधर्ष कर जीते रहने के कौशल के कारण स्वयं अपनी जरूरतों को ही मात्र पूरा करने में नहीं लगा है। ऐसे ग्रामीण लोग जीवन के लिए आवश्यक पोषक आहार को विपरीत परिस्थितियों से डरे बिना उत्पादित करते रहने की मूलभूत प्रवृत्तियों के कारण उत्पादन की बुनियादी वृत्तियों में पीढ़ी दर पीढ़ी से लगे ही रहते हैं।देश के पशुधन को बिना जमीन और संसाधन के लगातार जीवित और संवर्धित करते रहना भी भारत की लोक बिरादरी का अनोखा कौशल हैं।
भारत की इतनी बड़ी लोकबिरादरी अपनी अनोखी जीवन यात्रा से बिना किसी को परेशान किए अनगिनत उत्पादक कार्यों में बिना किसी अपेक्षा के अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करती हैं। भारत के सत्तारूढ़ समूह हर काम इस अपेक्षा से करते हैं कि उनकी सत्ता और संगठन मजबूत हो।पर मूल सवाल जिसका जवाब हम खोज रहे हैं कि सत्ता हांसिल तो हो गयी अब लोकजीवन के बुनियादी सवालों का हिलमिलकर टिकाऊ व स्थायी समाधान निरन्तर निकलने की प्रक्रिया सत्तारूढ़ जमाते और लोकसमाज में कैसे खड़ी हो?मूलभूत सवाल फिर वही आ खड़ा होता है कि सत्ता हांसिल करने का मूल मकसद क्या है? हुकूमत की ताकत को लोगों को बताना कि देखो हम हुक्मरान है और आप हमारे हुकुम के पालनकर्ता हों।
सत्तारूढ़ जमात इसी दृष्टिहीनता के कारण कालजयी नहीं होती हैं। हुकुमतों की अदला बदली तो चलती ही रहती है।पर जब भी कोई हुकूमत सत्तारूढ़ समूह में शामिल होती है तो उसे यह याद रखना चाहिए कि लोगों की ताकत से ही सत्तारूढ़ समूह को काम करने का अवसर मिला है। लोगों की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत होती हैं। सत्तारूढ़ समूह लोगों के मूलभूत सवालों का समाधान यदि नहीं खोज पाये तो लोग सत्ता की सारी शक्तियों को इतिहास में बदलने की सर्वोच्च शक्ति अपने दिल दिमाग में निरन्तर सहेजकर रखें होते हैंऔर जरूरत होने पर उसका भरपूर इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकते।सत्ता हमेशा इतिहास बन जाती रही हैं पर लोक समाज अपने आप में सनातन प्रवाह के रूप में निरन्तर नये नये रास्ते खोज कर लोकसमाज की शक्ति को हमेशा कायम बनाये रखता है।
सत्तारूढ़ जमाते लोकसमाज से शक्तिशाली नहीं हो सकती है लेकिन लोकसमाज से ही सत्तारूढ़ समूह बनने की ताकत हासिल होती हैं।यही लोकसमाज की लोकतांत्रिक जीवनी शक्ति हैं। सत्तारूढ़ समूह आभासी रूप में शक्ति सम्पन्नभले ही लगते हो पर लोकसमाज की मूल शक्ति या ताकत तो लोगों की ही होती है।इस बात को हर सत्तारूढ़ समूह को हमेशा याद रखना चाहिए। अपने समय में हासिल सत्ता की ताकत लोकसमाज को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने में लगेगी तो लोकसमाज और राज्य की शक्ति आपसी सहयोग समन्वय से हर दिन समृद्ध होगी अन्यथा आपसी अशांति में दोनों की शक्ति क्षीण अकारण होती ही रहेगी।
अनिल त्रिवेदी
स्वतंत्र लेखक और अभिभाषक
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