पिछले कुछ सालों से अपने देश के विभिन्न शहरों में पुस्तकें पढ़ने वालों की संख्या लगातार घट रही है इसी के साथ नामी गिरामी किताबों की दुकानें एक एक करके बंद होती जा रही हैं . और जो किसी तरह बची हुई हैं वे दुकान के बड़े हिस्से में बच्चों के खेल खिलोने , पर्फ़्यूम. कास्मेटिक्स रखने के लिए मज़बूर हैं .
ऐसे में लन्दन के सबसे फ़ैन्सी इलाक़े पिकडली में हैचार्ड में कुछ घंटे बिताना बड़ा ही सुखद अनुभव रहा. हैचार्ड पुस्तकों की विशालतम दुकान है जहां पुस्तक प्रेमियों की भीड़ लगी रहती है . यह महज़ लन्दन की ही नहीं वरन संभवतः दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तकों की दुकानों में से एक है .
हैचार्ड की स्थापना 1797 में व्यवसायी जॉन हैचार्ड द्वारा की गयी थी , जॉन पुस्तक प्रेमी और प्रकाशक भी था यही नहीं वह दास प्रथा के विरुद्ध के ज़ोरदार आवाज़ भी था.उसकी यह दुकान अपने इसी पते 187, पिकडली से निरंतर कार्यरत है . दुकान की बाहर की साज सज्जा को देख कर लगता है कि आप सच में किसी दो सौ वर्ष पुरानी जगह आ गए हों .
बकिंघम पैलेस से बहुत क़रीब होने के कारण हैचार्ड दो सौ वर्षों से शाही घराने की पसंदीदा दुकान रही है , तभी दुकान के मालिकों ने राज घराने से मिले तीनों वारंट शीशे की खिड़कियों में प्रमुखता से सजा कर रखे हुए हैं . अपनी स्थापना के प्रारम्भिक दिनों में ही इस दुकान ने शहर भर के पुस्तक प्रेमियों को आकर्षित करना शुरू कर दिया , प्रारम्भिक ग्राहकों में किंग ज़ोर्ज तृतीय के पत्नी शॉरले भी थीं जो नियमित रूप से यहाँ ख़रीदारी करने आती थीं .
दुकान चार मंज़िलों में फैली हुई है . अगर आप पुस्तक प्रेमी हैं तो आप की इच्छा बाहर निकलने की नहीं होगी , यहाँ न सिर्फ़ प्रमुख प्रकाशन गृहों की नवीनतम रिलीज़ मिल जाएँगी वरन ऐसी दुर्लभ पुस्तकें भी मिलेंगी जो आपको कहीं दूसरे स्टोर में शायद ही मिलें . मुझे यह देख कर आनंद आ गया कि सैम्यूअल बैकेट , डी एच लॉरेन्स , आइरिस मर्डाक, टेड ह्यूज़ , मार्गेट ऐट्वुड जैसे नामचीन लेखकों की मशहूर पुस्तकों की प्रथम आवृति भी भी यहाँ मौजूद हैं .
मैंने दुकान में बिताए चंद घंटों में पाया कि यहाँ का स्टाफ़ पुस्तकों के विषय वस्तु , लेखक के बारे में विशिष्ट जानकारियों का चलता फिरता गूगल हैं और पुस्तक प्रेमियों की हर जिज्ञासा का समाधान करने को तत्पर रहता है . इस समय दुकान का प्रबंधन जॉन हैचार्ड की आठवीं पीढ़ी के हाथ में है , उन्होंने दुकान को आधुनिक और सम-सामयिक बनाये रखने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की हैं . यही वजह है कि यहाँ पाठकों का ही नहीं लेखकों का भी ताँता लगा रहता है . लेखक अपनी नई प्रकाशित पुस्तकों की हस्ताक्षरित प्रति के लिए आने में गर्व का अनुभव करते हैं.
दुकान में एशिया और भारत को लेकर पुस्तकों का बड़ा सेक्शन है लेकिन विश्व की सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा हिंदी की पुस्तकों की कमी खटकती है.