सऊदी अरब के मीना में हज की एक रस्म अदा करने के दौरान पिछले दिनों मची भगदड़ में अब तक 769 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है। सऊदी अरब में मक्का मस्जिद के बाहर शैतान पर पत्थर फेंकने की रस्म अदा करने के दौरान हाजियों की भीड़ बेकाबू हो गई जिससे यह दर्दनाक हादसा पेश आया। इस दुर्घटना में 800 से अधिक लोग घायल भी हुए। ज़ाहिर है विश्व में कहीं भी इस प्रकार का कोई भी जनसमागम होता है तो स्थानीय स्तर पर प्रशासन द्वारा उसकी देख-रेख तथा व्यवस्था का पूरा जि़म्मा लिया जाता है। परंतु इसके बावजूद दुनिया के विभिन्न देशों में प्रशासनिक लापरवाही के चलते भीड़ के अनियंत्रित होने या भगदड़ मचने जैसी घटनाएं कभी-कभार हो ही जाती हैं। भारत में भी कुंभ मेले के दौरान कई बार ऐसे हादसे हो चुके हैं। सऊदी अरब में भी हज के दौरान ऐसी घटनाएं पहले भी कई बार हो चुकी हैं। बल्कि सऊदी अरब में तो हाजियों के ठहरने हेतु बनाए गए तंबुओं में आग लगने जैस हृदयविदारक घटना भी घटित हो चुकी है। 1997 में हाजियों के तंबुओं में लगी आग में 343 हाजी जि़ंदा जलकर मर गए थे जबकि पंद्रह सौ हाजी आग से बुरी तरह झुलस गए थे। भगदड़ मचने का भी सऊदी अरब का पुराना रिकॉर्ड है। यहां 1990 में मीना में अराफात के मैदान में मची भगदड़ में 1426 लोग मारे गए थे। 1994 में शैतान को पत्थर मारने की घटना में ही मची भगदड़ में 270 लोग मारे गए थे। 1998 में लगभग 120 हाजी ज़मारात ब्रिज के समीप भगदड़ में मारे गए थे। 2001 में 35 हज यात्री तथा 2003 में 14 हाजी 2004 में 251 तथा 2006 में 346 हाजी शैतान को पत्थर मारने की घटना के समय मारे गए। और यह वर्तमान ताज़ातरीन घटना जिसमें सऊदी अरब द्वारा तो 769 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की जा रही है परंतु ईरानी सूत्रों के अनुसार इस घटना में भी कम से कम 4100 लोग मारे गए हैं।
क्या उपरोक्त सभी घटनाओं से सऊदी प्रशासन यह कहकर अपनी प्रशासनिक नाकामियों पर पर्दा डाल सकता है कि यह सबकुछ ‘अल्लाह की मरज़ी’ से हो रहा है? अथवा ऐसी घटनाओं का घटित होना ‘अल्लाह की इच्छा थी’? परंतु सऊदी अरब के स्वास्थय मंत्री खालिद-अल-फालहे ने इसी प्रकार का बेशर्मी भरा बयान देकर अरब प्रशासन द्वारा बार-बार बरती जा रही लापरवाहियों पर एक बार फिर पर्दा डालने का काम किया है। पिछले दिनों मक्का मस्जिद में ही हुई एक बड़ी क्रेन दुर्घटना में भी 107 लोग मारे गए थे। इस के बाद भी अरब से ही एक जि़म्मेदार अधिकारी द्वारा यही कहकर अपनी गलतियां छुपाने की कोशिश की गई थी कि ‘यह सब अल्लाह की मरज़ी’ से ही हुआ है। परंतु दूसरी ओर सऊदी अरब के मीना में पिछले दिनों मची भगदड़ के लिए सऊदी अरब के प्रशासन को ही जि़म्मेदार ठहराया जा रहा है। इस घटना का मुख्य कारण अपर्याप्त बंदोबस्त तथा कुप्रबंधन ही बताया जा रहा है। यही वजह है कि सऊदी अरब के किंग सलमान ने इस हादसे के बाद हज के प्रबंधों की नए सिरे से समीक्षा किए जाने का आदेश दिया है। कुछ लोगों का मानना है कि दुर्घटना स्थल के पास के पांच रास्तों में से दो रास्तों को अनावश्यक रूप से प्रशासन द्वारा बंद कर दिया गया था जिसके कारण हाजियों की निकासी के रास्ते तंग हो गए। परिणामस्वरूप वहां भगदड़ मच गई। यह भी कहा जा रहा है कि मीना में शैतान को पत्थर मारने की रस्म के दौरान ज़हरीली गैस का रिसाव होने लगा जिससे भयभीत होकर हाजियों में भगदड़ मच गई। हालांकि सऊदी अरब के स्वास्थय मंत्रालय द्वारा ऐसी खबरों का खंडन भी किया गया है। ज़हरीली गैस फैलने का दावा सऊदी अरब के ही एक डॉक्टर की ओर से किया गया था जो अरब में ही डॉक्टरी का पेशा करता है।
इस घटना के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी बताया जा रहा है कि चूंकि उस दिन सऊदी अरब प्रशासन पूरे विश्व से आए हुए अपने गणमान्य अतिथियों के स्वागत में लगा हुआ था और उनके स्वागत व सुरक्षा के चलते एक तो दुर्घटना स्थल की ओर के कुछ रास्तों को बंद कर दिया गया था दूसरे इन्हीं अतिविशिष्ट लोगों की सुरक्षा में उन सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर दिया गया था जिन्हें दुर्घटना स्थल के क्षेत्र में तैनात किया जाना था। लिहाज़ा रास्ता बंद होने के साथ-साथ सुरक्षाकर्मियों की कमी भी दुर्घटना का एक कारण बनी। कुछ सूत्र इस घटना के लिए विदेशी हाजियों तथा अरब के सुरक्षाकर्मियों के मध्य भाषाई समस्या भी बता रहे हैं जबकि कुछ लोगों का कहना है कि यह भगदड़ केवल सऊदी अरब के बादशाह के वहां पहुंचने की वजह से हुई क्योंकि जब भी बादशाह स्वयं कहीं भी आते-जाते हैं तो उस क्षेत्र के सभी मार्ग बंद कर दिए जाते हैं और क्षेत्र की पूरी सुरक्षा व्यवस्था सुल्तान की सुरक्षा पर केंद्रित हो जाती है। परंतु उपरोक्त समस्त तथ्यों व कारणों को दरकिनार करते हुए सऊदी अरब के जि़म्मेदार मंत्री ऐसी घटनाओं के लिए स्वयं को जि़म्मेदार मानने या अपनी गल्ती स्वीकार करने के बजाए इसे भाग्य का लिखा अथवा संयोगवश हुई घटना या फिर अल्लाह की मरज़ी बताकर अपनी जि़म्मेदारी से बचने जैसा गैरजि़म्मेदाराना प्रयास कर रहे हैं।
इस घटना पर विमर्श करने का एक पहलू यह भी है कि क्या यदि हज यात्रा पर जाने से पूर्व हाजियों को यह बता दिया जाए कि वे हज से वापस नहीं आ पाएंगे और ‘अल्लाह की मजऱ्ी’ के मुताबिक वे भगदड़ जैसी किसी दुर्घटना का शिकार हो जाएंगे तो क्या ऐसे में कोई व्यक्ति हज यात्रा पर जाना चाहेगा?हमें इस कड़वे सच से इंकार नहीं करना चाहिए कि भले ही जन्नत जाने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति क्यों न रखता हो परंतु मरना कोई भी नहीं चाहता जबकि जन्नत मिलने या न मिलने की कल्पना मरणोपरांत ही साकार हो सकती है। निश्चित रूप से प्रत्येक हादसे के बाद केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के मानने वाले यही सोचकर अपने व अपने परिवार के लोगों को बहलाने अथवा उन्हें धैर्य बंधाने की कोशिश करते हैं कि अमुक घटना अल्लाह या ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही घटी है। परंतु इस प्रकार के वाक्य दरअसल केवल धैर्य बंधाने या आत्मसंतोष के लिए ही इस्तेमाल किए जाते हैं। जबकि ऐसी वास्तविकता हरगिज़ नहीं होती कि अल्लाह या ईश्वर अपने उन बंदों का बुरा चाहे या उन्हें संकट में डालना चाहे जिसे उसने स्वयं सर्वश्रेष्ठ प्राणी अर्थात् मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर पैदा किया है और इसी मानवजाति के ऐश-ो-आराम तथा जीवनयापन हेतु तरह-तरह की प्राकृतिक वस्तुएं पैदा की हैं। आिखर वह खुदा या ईश्वर अपने बंदों को किसी भगदड़ अथवा क्रेन हादसे में या किसी दुर्घटना में मारने की बात कैसे सोच सकता है? परंतु प्राय: ऐसी घटनाओं की जि़म्मेदारी से स्वयं को बचाने के लिए जि़म्मेदार लोग अल्लाह या ईश्वर को सीधे तौर पर जि़म्मेदार ठहरा देते हैं। अल्लाह या ईश्वर को ऐसी दुर्षटनाओं के लिए जि़म्मेदार ठहराना न्यायसंगत अथवा पुनीत कार्य हरगिज़ नहीं है।
यदि ऐसे ही कुतर्कों को समाज द्वारा स्वीकृति दे दी जाए फिर तो दुनिया में हर जगह घटने वाली सभी घटनाएं यहां तक कि सभी हत्याएं सभी आतंकी घटनाएं,सभी प्रकार की दुर्घटनाएं,दंगे-फसाद आदि को भी अल्लाह की मजऱ्ी ही स्वीकार कर लेना चाहिए? और इनसे निपटने के उपाय किए जाने की भी कोई ज़रूरत महसूस नहीं करनी चाहिए। हां प्राकृतिक विपदाओं को इनका अपवाद ज़रूर कहा जा सकता है। निश्चित रूप से बाढ़,सुनामी या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर इंसानी नियंत्रण कतई नहीं है। ऐसी विपदाओं में मरने वालों को मनुष्य द्वारा अपनी तकनीकी क्षमताओं से बचा पाना निश्चित रूप से एक चुनौतीर्पूा कार्य है। परंतु जहां आप नियमित रूप से प्रत्येक वर्ष कोई ऐसा आयोजन करते आ रहे हों जहां लाखों की भीड़ इक्_ी होती रहती हो वहां की व्यवस्था को चाक-चौबंद रखना तथा अपने अतिथियों की सुरक्षा की जि़म्मेदारी सुनिश्चित करना मेज़बान देश या मेज़बान प्रशासन का ही दायित्व है। और यदि प्रशासनिक रूप से मेज़बान प्रशासन अपने अतिथियों को सुरक्षा दे पाने में असफल रहता है तो निश्चित रूप से यह उसी की जि़म्मेदारी है। अल्लाह या ईश्वर प्रशासन को लापरवाही बरतने हेतु प्रोत्साहित नहीं करता। हां यदि इसी प्रकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए बार-बार अल्लाह के नाम का इस्तेमाल किया जाता रहा या ऐसी घटनाओं की जि़म्मेदारी स्वयं लेने के बजाए अल्लाह या ईश्वर पर मढऩे की परंपरा बदस्तूर जारी रही तो भविष्य में भी जि़म्मेदार प्रशासन स्वयं को इसके लिए पूरी तरह से तैयार व सक्षम नहीं कर सकेगा। लिहाज़ा अल्लाह को इन दुर्घटनाओं का जि़म्मेदार या उसकी मजऱ्ी से हुई दुर्घटना बताने के बजाए अल्लाह से तौबा करनी चाहिए और इस प्रकार की ऊल-जलूल व गैरजि़म्मेदाराना बातें कर अपनी जगहंसाई कराने के बजाए केवल उन प्रशासनिक बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनके कारण ऐसी दुर्घटनाएं बार-बार दरपेश आती हैं। और इन हादसों के लिए जि़म्मेदार अधिकारियों व भीड़ को नियंत्रित करने वाले योजनाकारों को भी उनकी अक्षमता के लिए दंडित किया जाना चाहिए। तनवीर जाफ़री