सब से पहले लैंड माइन याने बारूदी सुरंग के बारे में कुछ मौलिक तत्व समझ लेते हैं। हर व्यक्ति इतना तो जानता ही होगा कि ये वो विध्वंसक वस्तु होती है जिस पर मनुष्य का पाँव पड़े तो वो फट हाती है और उस मनुष्य के तो निश्चित ही, बल्कि साथ में नजदीक खड़े लोगों के भी चिथड़े उड़ा देती है, बहुत ही भयानक रूप से।
लेकिन हम इसका प्रयोजन समझ लें तो बेहतर होगा, इस लेख का विषय समझ आएगा। लैंड माइन शत्रु सेना के रास्ते में बिछाई जाती हैं ताकि उसे आगे बढ़ने से रोका जाए, उसके मार्ग में यह एक भय उत्पन्न करनेवाला अवरोध बने। चाहे जितने भी समय के लिए हो, शत्रु सेना को अपनी गति कम तो करनी ही पड़ती है और युद्ध में समय की बड़ी कीमत होती है। अब इस विषय का कनेक्शन बाद में जोड़ेंगे, फिलहाल इतनी जानकारी को ध्यान में रखिए।
अब *महाशय राजपाल* की बात करेंगे। वे एक आर्य समाजी थे। व्यवसाय से पुस्तक प्रकाशक थे। इतना सब जानते हैं कि उन्होंने जो एक विशेष पुस्तक प्रकाशित की उसके कारण उनकी हत्या हुई थी। अब उस समय को देखे बिना पूरा परिदृश्य नहीं दिखाई देगा।
1920 के बाद आर्यसमाज पंजाब में सक्रिय था, शुद्धिकरण जोरों पर था। यह बात नागवार गुजरकर स्वामी श्रद्धानंद की हत्या की गई, और बापू द्वारा उनके हत्यारे को भी “भाई” बुलवाया गया, फिर भी आर्य समाजी रुके नहीं। अब चूंकि कुछ एक्शन के लिए कोई कारण भी चाहिए, तो कुछ पुस्तिकाएँ छापकर बांटी गई। जानकारी के अनुसार उनमें दो पुस्तिकाओं के नाम थे – ‘कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी’ और ‘सीता का छिनाला।’ और भी कुछ नाम विदित हैं लेकिन अपुष्ट हैं इसलिए नहीं दिए जा रहे। ये दो नाम जाने माने हैं।
इसके बाद हिन्दू समाज की प्रक्षुब्ध प्रतिक्रिया केवल एक पुस्तिका छापने तक सीमित थी, कोई तोड़ फोड़ या खून खराबा नहीं। उस पुस्तिका में भी विधर्मियों के आदर्श का चरित्र चित्रण जो किया गया था उसके लिए सारे आधार उनके मान्यताप्राप्त साहित्य से ही लिए गए थे तथा भाषा कहीं भी स्तरहीन नहीं थी। हाँ, जो चित्रण था वो कितना भी सत्याधारित हो, आदर्श के घोषित गुणों पर प्रश्नचिह्न अवश्य लगा देता था।
इसी बात को लेकर विधर्मियों ने उग्रता से प्रतिरोध किया। उक्त पुस्तिका प्रतिबंधित कराने की मांग की और उस पुस्तिका को छापना आज भी प्रतिबंधित है, हालांकि आज वह नेट पर आसानी से उपलब्ध है और आज जितना साहित्य और जानकारी उपलब्ध है उनकी तुलना में उसका कंटेन्ट कुछ भी नहीं है। लेकिन उस समय में उसे विस्फोटक माना गया।
पुस्तिका छद्म नाम से छपी थी तो विधर्मियों द्वारा महाशय राजपाल से लेखक का नाम पता मांगा गया। उन्होंने मना कर दिया तो उन पर मुकदमा दायर कर दिया जिसे वे जीत गए कि लेखक की निजता सुरक्षित रखने का उनको अधिकार है। विधर्मियों को यह बात भी नागवार गुजरी और उनके खिलाफ वातावरण विषाक्त बनाया गया और एक दिन एक इल्म उद दीन नाम के एक लगभग अनपढ़ सामान्य युवा मजदूर ने उनकी नृशंस तरीके से सरेआम हत्या कर दी।
इल्म उद दीन को पकड़ गया, केस हुई, फांसी भी हुई। लेकिन पूरा समाज उसके साथ खडा रहा, नामचीन वकीलों ने उसकी पैरवी की और उसके जनाजे में पूरे शहर के मानों सारे विधर्मी पुरुष हाजिर रहे और जनाजे की नमाज में तो जानी मानी हस्तियों ने हाजरी लगाई।
इस बेशर्म सामाजिक समर्थन और शक्ति प्रदर्शन के बाद आर्य समाज का जोर कम हुआ।
हत्या के समर्थन में कारण क्या बताए थे? तौहीन और गुस्ताखी। इन्हें लैंड माइन याने बारूदी सुरंग कहने का कारण समझ तो गए होंगे अब?
राम मंदिर, 370, ज्ञानवापी पर जो माहौल बना है उसमें लैंड माइन याने बारूदी सुरंग को जरूरी समझा जाए यह स्वाभाविक बात है, कई बार आजमाई हुई स्ट्रैटिजी है। आजकल पाकिस्तानियों में एक विक्टिम कार्ड प्रचलित है – आप मेरे माँ, बाप, बहन को गाली दे सकते हैं, मैं बर्दाश्त कर लूँगा लेकिन ____ के खिलाफ कुछ भी कहा तो हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह इन्फेक्शन यहाँ भी मिलने लगा तो कोई आश्चर्य न करना।
सोशल मीडिया पर यह लैंड माइन अक्सर बिछाई मिल जाती है। एक व्यक्ति हिन्दू देवताओं को गालियां देता है या अश्लील फब्तियाँ कसता है, अगर उससे गुस्सा हो कर कोई हिन्दू उसी तरह का प्रत्युत्तर देता है तो अन्य तीन चार आइडी द्वारा हिन्दू के प्रत्युत्तर के स्क्रीनशॉट लेकर माहौल भड़काया जाता है। मानों बैट्स्मन को गेंद इस तरह फेंकी जा रही है कि तय जगह कैच जाएगा ही। इसे युद्धनीति में रिफ्लेक्सिव कंट्रोल थ्योरी भी कहते हैं। दो वर्ष पहले हुए बंगलोर के दंगे ऐसे ही भड़काए गए थे।
अस्तु, नूपुर शर्मा जी की बात करते हैं।
राम मंदिर, 370, ज्ञानवापी पर जो माहौल बना है उसे टकराने के लिए लैंड माइन याने बारूदी सुरंग की जरूरत थी। एक ऐसे लैंड माइन पर नूपुर शर्मा का पाँव पड गया है। हो सकता है उनकी जगह किसी और का भी पड सकता था। डिबेटस को चेक करें तो समझ आएगा कितनी जगह मज़ाक आदि द्वारा हिंदुओं को उकसाया गया।
वैसे नुपूर शर्मा की बात करें तो उन्होंने जो भी जिक्र किया है वह सभी बाते अधिकृत साहित्य से हैं, लेकिन यहाँ बात वर्चस्ववादी मानसिकता की है जो मानती है कि अन्य धर्मी की जगह उसके जूती के नोंक के नीचे ही रहनी चाहिए। जज़िया का निर्देश – अपमानित हो कर दें – और इसी आया के तफ़सीर में उमर के सुलहनामे जैसे खून खौलानेवाले दस्तावेज का समावेश कि इसका अमल कैसे करना है, इतिहास में विधर्मी आक्रान्ताओं का चरित्र आदि सभी साक्षी हैं इस मानसिकता के।
लंबा हो गया लेख, लेकिन इतना तो आवश्यक था। आशा है आप को बारूदी सुरंग की बात समझ आई हो। पसंद आया हो तो अवश्य अपने परिचितों को भी अवगत कराएँ।