मुंबई। 17वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ 2022) की एक मास्टर क्लास में बोलते हुए, श्री जोशी ने कहा, “हम विविधता के बारे में बात करते हैं, लेकिन विविधता कैसे आएगी जब तक कि फिल्म निर्माण का लोकतंत्रीकरण नहीं होता। यदि चुनिंदा लोगों का ही चुना हुआ झुंड फिल्में बनाता रहा, तो हमें समान सीधी कथाओं वाली फिल्में ही मिलती रहेंगी।” उन्होंने कहा कि हमें असली फिल्में तभी मिलेंगी जब विविध पृष्ठभूमि से आने वाले लोग फिल्में बनाना शुरू करेंगे और इसी तरह हमारा सिनेमा समृद्ध हो सकता है।
श्री जोशी ने कहा कि फिल्म निर्माण का केंद्र बिंदु विचार होना चाहिए, कहानी कहने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि प्रक्रिया पर। उन्होंने कहा कि कहानियां कल्पना से आती हैं। ‘गांधी’ तथा ‘गांधी माई फादर’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कथा इस बात से आती है कि आप उसे कैसे देखते हैं।
“एक ही कहानी को एक नई दृष्टि के साथ देखने पर उसे अलग तरह से कहा जा सकता है।” ‘रंग दे बसंती’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इसमें क्रांतिकारियों की विषय-वस्तु को एक नए दृष्टिकोण से देखा गया है।
‘हजार बार यहां से ज़माना गुज़रा है, नई नई सी ही कुछ तेरी रह गुजर फिर भी।’ भले ही कहानी पहले भी एक हजार बार कही जा चुकी हो फिर भी इसे अनोखे तरीके से हजार बार फिर कहा जा सकता है, क्योंकि हर आदमी एक अनकही कहानी, अधूरा सपना, अनुभव के खजाने के अलावा कुछ नहीं है। प्रसून जोशी ने कहा कि, हर कोई अपने नजरिए से हमेशा एक सुंदर कहानी जाह सकता है। उन्होंने कहा कि हम भारत के इतिहास और इसकी समृद्ध संस्कृति से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
श्री जोशी ने कहा, “परम सत्य को समझना बहुत कठिन है, जिसे अलग-अलग लोग अलग-अलग तरह से समझते हैं। हर किसी के पास एक अद्वितीय और प्रामाणिक दृष्टिकोण होता है। “आप हर जगह नहीं हो सकते हैं, इसलिए आपको अपने वास्तविक नजरिए से विषय को देखना चाहिए। इससे कहानी दिलचस्प और आकर्षक बनेगी।”
लेखक ने ‘भाग मिल्खा भाग’ के निर्माण से जुड़ी एक दिलचस्प घटना सुनाई। जब वे फिल्म के लिए मिल्खा सिंह से जानकारिया ले रहे थे तब कई सवालों के जवाब के बाद उस धावक के कहा “आप केवल मेरे जीवन के बारे में पूछ रहे हैं, और खेल के बारे में कुछ नहीं?”
जोशी ने कहा कि वह मैदान पर जीत या हार के बजाय मानवीय प्रयासों के बारे में जानने में रुचि रखते हैं। “मैं भावनाओं को पकड़ना चाहता था। तथ्य तो पहले से ही उपलब्ध थे”। सिनेप्रेमियों के साथ बातचीत करते हुए जोशी ने ‘तारे जमीं पर’ का उदाहरण दिया और कहा, “शब्द और रूपक हमेशा हमारी जड़ों से निकलते हैं। किसी को अपनी जड़ों और वास्तविकता से खुद को अलग नहीं करना चाहिए क्योंकि उनका हमारी लेखन शैली पर बहुत प्रभाव पड़ता है और हमें सुंदर शब्दों और रूपकों को लाने में मदद करता है।”
प्रसून जोशी ने युवा उम्मीदवारों को अपने स्वयं के पहले अनुभव और उनके बारे में कैसा महसूस होता है, के आधार पर कहानियां लिखना शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने टिप्पणी की कि “आप जो जानते हैं और आप जो महसूस करते हैं उसके बारे में लिखें। आप इसके बारे में सबसे अधिक सहज होते हैं। अगला चरण दूसरों के अनुभवों से लेकर लिखना होगा।”
सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार और लेखक अनंत विजय ने किया।
प्रसून जोशी एक प्रसिद्ध कवि, लेखक, गीतकार, पटकथा लेखक और संचार विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने काम से आलोचनात्मक और लोकप्रिय प्रशंसा दोनों हासिल की है।
ओगिल्वी एंड माथर और मैककैन एरिकसन सहित प्रमुख विज्ञापन एजेंसियों में अपने लंबे और विपुल करियर के माध्यम से, उन्होंने शक्तिशाली और व्यापक विज्ञापन अभियानों के माध्यम से कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लिए सफल ब्रांड बनाए हैं।
एक गीतकार के रूप में, ‘तारे ज़मीं पर’ (2007) और ‘चटगांव’ (2012) फिल्मों में जोशी ने सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते हैं। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया है।