भारत सनातन सभ्यता को समझने वाला देश हैं। भारतीय समाज में इन दिनों ऐसी हलचलों का हल्ला गुल्ला जरूरत से ज्यादा चल रहा है जिससे आभास होता है कि भारत में तेजी से व्यापक सोच का दायरा दिन प्रतिदिन घटता जा रहा है। भारत की कई राजनैतिक जमाते संकीर्ण सोच के उभार को ही अपना एक मेव राजनैतिक कार्यक्रम मान रही है।संकीर्ण मानसिकता की आंधी से उलट एक बुनियादी परिवर्तन भारत में अपने आप हो रहा है जिसकी हम पहले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।पहले जब संकीर्ण मानसिकता की आभासी आंधी नहीं थी, उस काल का भारतीय समाज विदेश यात्रा खासकर समुद्र पार की यात्रा को लेकर अजीब आशंकित मन रखता था।
भारत की अगड़ी और शिक्षित जातियों में युवाओं के विदेश जाने पर सहज सहमति नहीं थी।कई जातियां तो समुद्र पार यात्रा में धर्म भ्रष्ट होने की आशंका से ग्रस्त रहती थी। समुद्र पार विदेश यात्रा करने वाले भारतीय से कई तरह के आचरणगत प्रतिबंधों के पालन की वचनबद्धता का पालन करने की अपेक्षा परिवार और समाज दोनों को होती थी।आज का समाज एक ऐसे भारत में अपने आप बदल रहा है। जिसमें आज किसी युवा द्वारा समुद्र पार जाना या विदेश यात्रा करना एक सामान्य घटना है। जो चर्चा का विषय भी नहीं बनता।भारतीय परिवार और समाज युवाओं को विदेश यात्रा से रोकने या किसी तरह की आशंका या मर्यादा के पालन का विचार भी मन में नहीं लाता है ।
आज के भारतीय परिवार अपने युवाओं द्वारा विदेश यात्रा करने पर प्रसन्न ही होते है। विदेश यात्रा पर प्रसन्न होना और भारतीय परिवारों में वैश्विक समुदाय का दृष्टिकोण उभरना भारतीय समाज में चुपचाप हो रहा महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव है।आज भारत में सभी वर्गों के युवा पढ़ने , नौकरी, व्यापार, या धूमने के लिए बड़ी संख्या में दुनिया भर के देशों में जाते ही रहते हैं। भारत के महानगर से लेकर छोटे गांव कस्बे तक में हमें ऐसे परिवार सामान्यतः मिल जाते हैं जिनके सदस्य विदेश में न केवल पढ़ने गए और वहीं नौकरी करने लगे और लम्बे समय से वहां रहने लगे। भारतीय युवा लड़कें और लड़कियां बराबरी से दुनिया में बड़ी संख्या में जाने लगे हैं। युवाशक्ति के बड़े पैमाने पर दुनिया भर के देशों में जाने और बसने से संयुक्तऔर एकल परिवारों के युग से आगे बढ़कर भारत के शहर, कस्बों और गांवों में भी वैश्विक परिवार दिखाई देने लगें हैं। भारत के गांव कस्बों से शहरों और महानगरों में जाने का क्रम तो बड़े पैमाने पर जारी है ही। भारत के हर हिस्से से दुनिया भर में जाने,कमाने और बसने का क्रम भी आम बात हो गयी हैं।
भारत की सरकारे भले ही वैश्विक दृष्टिकोण से काम नही कर पा रहीं हों ,अपने सामाजिक राजनीतिक संकुचित सोच से भी उबरना ही नहीं चाह रही हों। पर भारतीय समाज में एक ही परिवार के सदस्यों का अलग अलग देशों में रहने बसने से नये वैश्विक भारतीय परिवारों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी गति से वृद्धि होते रहने का क्रम बढ़ता ही जा रहा है।अभी हाल ही में यूक्रेन और रूस के युद्ध की शुरुआत में देश के राजनेताओं और बड़े पूंजी के कर्ताधर्ताओं को यह तथ्य पहली बार पता चला की भारतीय समाज के गांव, कस्बों और शहरों के पच्चीस हजार से ज्यादा छात्र अपने प्रयासों से चिकित्सा शिक्षा के लिए छोटे से देश यूक्रेन में अध्ययनरत हैं। देश की सरकारें देश की बड़ी आबादी के अनुसार चिकित्सा शिक्षा हेतु महाविद्यालयों की व्यवस्था करने की लोकदृष्टि भले ही विकसित नहीं कर पा रही हो पर भारत के गांव कस्बों शहरों के युवा लड़कें लड़कियों ने अपनी डाक्टरी की पढ़ाई के लिए भारत की सरकारों के भरोसे रहकर अपने सपने साकार करने में इंतजार करने से बेहतर अपने लिए अवसर खोजने के लिए वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाया। भारत की राजनीति कलही और संकीर्ण मानसिकता से ओतप्रोत हो गई है। पर भारत का युवा जो पढ़ना और पढ़कर निरन्तर आगे बढ़ रहा है वह अपनी जरूरतों के लिए छलांग लगाकर दुनिया को अपना घर बनाना सीख गया है।
सूचना प्रौद्योगिकी के युग में वैश्विक और स्थानीय परिवारों की जुगलबंदी भारतीय समाज में चुपचाप बढ़ती ही जा रही है। भारत की राजनीति में निरन्तर बढ़ती कलह और संकीर्ण राजनीतिक हलचलों से दूर भारतीय युवा की वैश्विक छलांग सीमाओं से परे भारत में उभरते वैश्विक परिवार को हर दिन समृद्ध और व्यापक जीवनशैली देने के क्रम का विस्तार कर रही है। संकीर्ण राजनीतिक हलचलों से दूर वैश्विक भारतीय परिवारों का उदय भारतीय समाज में हो रहा उल्लेखनीयऔर मौलिक बदलाव है।
अनिल त्रिवेदी
गांधीवादी चिंतक
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