प्रस्तुत पुस्तक भाषा विज्ञान पर आधारित है। इस पुस्तक में भाषा की उत्पत्ति सम्बन्धित सभी मतों का उल्लेख कर उनकी समालोचना की है। वैदिक और मानुषी वाक् का स्वरूप इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। जिससे पाठको को यह स्पष्ट हो जायेगा कि प्राचीन आर्य विद्वानों के भाषा विषयक विचार कल्पना मात्र नहीं थे, बल्कि वे सत्य विचार थे। उन विद्वानों की उहा सटीक और वास्तविक थी। ईसाई यहूदी आदि गुटों के विद्वानों के भाषा सम्बन्धित विचार किस प्रकार पक्षपात युक्त हैं यह लेखक ने अनेक प्रमाणों द्वारा दर्शाया है। आक्सफोर्ड अंग्रेजी कोष की कई भ्रान्तियाँ इस पुस्तक में दर्शायी गयी हैं। अन्य भाषाओं और संस्कृत से तुलना कर बताया है कि संस्कृत ही सभी भाषाओं की जननी है तथा जो लोग प्राकृत और तमिल आदि भाषाओं को संस्कृत से पूर्व बताते हैं उनके मतों का निराकरण इस पुस्तक में किया गया है।
इस पुस्तक में लेखक ने भाषा की उत्पत्ति से प्रारम्भ करते हुए भाषा की वृद्धि, ह्रास, भाषा परिवर्तन, वर्ण-विमर्श, आदि भाषा, इंडोयूरोपियन भाषा मत की समीक्षा करते हुए ईरानी, हित्ती, यावन, द्रविड़, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी पंजाबी आदि के अनेको शब्दों के उदाहरण प्रस्तुत पुस्तक में विवेचन हेतु रखे हैं।
भारतीय संस्कृति का इतिहास
पंडित भगवतदत्त ने अपनी प्रतिभा के बल पर वैदिक साहित्य की विविध विधाओ का ऐतिहासिक सर्वेक्षण एवं मूल्याङ्कन कर वैदिक विद्वत समुदाय को चकित कर दिया |
इसमें पाश्चात्य विद्वानों तथा अंध अनुयायी भारतीय इतिहासकारों की कालगणनाओं तथा समूचे इतिहास को मात्र दो -तीन सहस्राब्दियों में सीमित कर देने के दुष्प्रयत्नों का खंडन किया गया है | साथ ही पुराणोक्त राज वंशावलियों की सहायता से भरतखंड के अत्यंत प्राचीन इतिहास को क्रमबद्ध और व्यवस्थित किया गया है |
वस्तुतः हमें भारतीय- परंपरा का ज्ञान भूल जा रहा है ,अतः लेखक ने उसके पुनर्जीवन का यह प्रशंसनीय का प्रयास किया है |
इस पुस्तक में भूमि सृजन से आरंभ करके उत्तरोत्तर युगों के क्रम से घटनाओं का उल्लेख है | अति विस्तृत विषय को यहां थोड़े स्थान में ही लिपिबद्ध किया गया है,
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लेखक – पंडित भगवद्दत्त जी रिसर्च स्कॉलर