अहसास ही नहीं था कि राता रानी माता जी का मन्दिर और उसका प्राकृतिक परिवेश इतना मनोहारी, रमणीक और चित्ताकर्षक होगा। पहाड़ों की गोद में स्थित मनोकामना पूर्ण करने वाला माता जी के मन्दिर तक पहुंचने के लिए सुरम्य घुमावदार घाटियों और हरियाली से आच्छादित परिवेश से हो कर जाना किसी पर्वतीय स्थल होने का आभास कराता है।
जी हां ! ऐसा खूबसूरत नजारा देखने को मिला जब हाल ही में एक परिजन के शिशु के जन्मदिन के कार्यक्रम में यहां जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। कोटा से मै और मेरी पत्नी कार से दोपहर बाद करीब तीन बजे रवाना हुए। कोटा से झालावाड़ मार्ग का वह हिस्सा जो कोटा शहर में आता है उसे पार करने में कभी यातायात दबाव के चलते पहले जहां आधा से एक घंटे का समय लगता था अब नगरीय विकास मंत्री धारीवाल जी के इस रोड को सिग्नल मुक्त बनाने के प्रयासों से मात्र सोलह मिनट में पार कर लिया। कोटा से झालावाड़ पहुंचने में लगने वाला तीन घंटे का समय फोर लेन राष्ट्रीय उच्च मार्ग बन जाने से डेढ़ घंटे में पूरा हो गया। रास्ते में बरसात और दरा घाटी के सौंदर्य का आंनद लेते हुए करीब ढाई घंटे समय में हम राता रानी मन्दिर पहुंच गए।
फोर लेन मुख्य मार्ग पर झालावाड़ से आगे 28 किमी दूरी पर स्थित असनावर कस्बे के बाईं ओर एक रास्ता करीब 5 किमी का मन्दिर तक ले जाता है। असनावर मुुुख्य मार्ग
पर पुलिस चौकी के सामने से बाईं ओर मुड़ कर समीप ही दाईं तरफ का रास्ता मन्दिर तक जाता है। रास्ते में छोटे – छोटे गांव के बाद असली मनोहारी धुमावदार पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है जिसके दोनों ओर कहीं – कहीं चट्टानें और घाटियां हैं। कई मोड़ इतने रमणीक हैं कि ठहर कर कुछ देर प्राकृतिक नजारों का आंनद लिया एवं मोबाइल से कैमरे में कैद किया। रास्ते से ही उजाड़ नदी और मुकंदरा पर्वत श्रंखला का के रुपहले दृश्य की छटा अत्यंत मोहक है। बरसात में सम्पूर्ण क्षेत्र हरियाली चादर ओढ़ लेता है।
प्रकृति के चित्ताकर्षक नजारों का आंनद लेते हुए हम राता रानी माता जी मन्दिर पहुंच गए। यहां एक कुछ दुकानें हैं जिन पर मुख्य रूप से पूजन सामग्री मिलती है। मन्दिर का ऊंचा शिखर दूर से ही नजर आने लगता है। मन्दिर परिसर के मुख्य द्वार से हो कर मन्दिर पहुंचते हैं। सामने मन्दिर के पार्श्व में पुराना पीपल का वृक्ष दिखाई देता है जिस पर आने वाले भक्तों ने अपनी मनोकामना के श्रद्धा डोरे बांध रखे थे। हमने मन्दिर के सम्मुख वाले मुख्य प्रवेश द्वार से प्रवेश कर माता रानी के दर्शनों लाभ लिया।
गर्भ गृह में देवी की दो मूर्तियां हैं। दाईं वाली मूर्ति अन्नपूर्णा देवी की है जिसे राता रानी की छोटी बहन माना जाता है और समीप वाली माता राता देवी की है। मूर्तियों पर छत्र सुशोभित हैं और एक त्रिशूल दिखाई देता हैं। माता का मन्दिर छोटे – छोटे रंगीन कांच के सजावटी टुकड़ों से सजाया गया है जो अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होता है। यहां की छ टा अत्यंत आलौकिक है। गोलाकार सभा मंडप के तीन और प्रवेश द्वारों पर कलात्मक तोरण द्वार ऊपर छतरियां और ऊंचा शिखर मन्दिर की शोभा बढ़ाते हैं।
मन्दिर के सामने वाले द्वार पर दर्शन की सुविधा की दृष्टि से लम्बी रेलिंग लगाई गई है जिससे महिला और पुरुष श्रद्धालुओं की प्रथक – प्रथक लाइनें लगती हैं। इसके पहले एक हवन कुंड बना है। मन्दिर परिसर के सामने दाईं ओर एक और हवन कुंड एवं दूसरी ओर छोटा शिव मन्दिर दर्शनीय है।
इस धार्मिक और रमणीक स्थान पर वर्ष में दो बार नवरात्रों पर भव्य मेले लगते हैं जिनमें राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। कई श्रद्धालु यहां की पैदल यात्रा कर पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए धर्मशाला बनी है और भोजन प्रसादी बनाने के लिए भोजनशाला बनाई गई है। सुरक्षा के लिए एक पुलिस चौकी स्थापित कर दी गई है। कभी छोटा सा मन्दिर था जो अब श्रद्धालुओं, दानदाताओं और जिला प्रशासन के सहयोग से एक अच्छा बड़ा आकर्षक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो गया है।
धार्मिक स्थल के साथ – साथ ट्रेकर्स एवं बाइक राइडर्स के लिए भी एक दम उपयुक्त स्थल है। पर्यटन प्रेमियों के लिए आकर्षक यादगार छोटे ट्रिप के लिए बेहतर पर्यटन स्थल है। आप कहीं आसपास धूमने जाने का विचार बना रहे हैं तो निसंदेह यहां का कार्यक्रम बना सकते हैं। आपके साथ बच्चे हैं तो कुछ खाने का समान साथ अवश्य ले जाएं। अगर आप बस से जा रहे हैं तो असनावर उतर कर आगे की यात्रा किराए की जीप से या पैदल करनी होगी।निकटतम रेलवे स्टेशन 32 किमी दूर झालावाड़ स्टेशन है। यहां से बस एवं टैक्सी उपलब्ध हैं।