रचनाकार अपने परिवेश और संस्कार के साथ अर्जित अनुभवों से सृजन सन्दर्भों को विकसित ही नहीं करता वरन् उसे संरक्षित भी करता है। यह भाव और स्वभाव ही एक रचनाकार के सामाजिक सरिकारों को परिलक्षित करता है।
इन्हीं सन्दर्भों को अपने भीतर जागृत करते हुए अपने रचनाकर्म में सतत् रूप से सक्रिय हैं राजस्थान की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और शैक्षिक नगरी कोटा के निवासी लेखक, पत्रकार और पूर्व वरिष्ठ जन सम्पर्क अधिकारी डॉ.प्रभात कुमार सिंघल।
विद्यार्थी काल से ही इनके कला, संस्कृति और साहित्यिक विचारों, व्यवहार, कार्यशैली और लेखन के साथ कुशल आयोजन और प्रबंधन को देखने – समझने का अवसर मिला है। सामाजिक समरसता और समन्वय को समर्पित प्रभात् सिंघल जी अपने समभाव और दृष्टिकोण से अपने सृजन कर्म और व्यवहार के प्रति सजग और चेतन होकर निरन्तर सृजन यात्रा कर रहैं हैं।
आपने अपने सरकारी सेवा काल में सभी वर्ग के सहकर्मियों को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति विकसित की और सतत् रूप से इसे अपने व्यवहार में संरक्षित और पल्लवित रखा। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति इनके कार्य- व्यवहार से प्रभावित रहा और आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। अपने कार्य-व्यवहार से श्री सिंघल ने सभी वर्ग के व्यक्तियों की हर संभव मदद की, उनकी समस्या और पीड़ा में भागीदार बने और सभी से पूरा सादर एवं स्नेह भाव रखते हुए अपने सहज स्वभावानुरूप अपने कार्य को समर्पित रहे।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल अपने सेवाकाल के पश्चात् निरन्तर सृजन रत हैं। वे समाज के प्रतिभाशाली, अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्तियों, बच्चों इत्यादि पर लिखते समय उन्हें प्रोत्साहन देने और प्रेरित करने का भाव सदैव मन में रखते हैं।
अपने सकारात्मक भाव के साथ-साथ सभी को साथ लेकर चलना, टीम भावना से कार्य करना, सभी का विनम्र भाव से सम्मान करना आदि के कारण ये सभी राजनीतिक व्यक्तियों, धर्माचार्यों, समाजसेवियों, पत्रकारों, कलाकारों,साहित्यकारों, अधिकारियों, सह कर्मियों, कलाकारों, उद्यमियों और समाज के अन्य वर्गो में लोकप्रिय हैं।
डॉ. सिंघल अपने सांस्कृतिक लेखन से सभी धर्मों पर समान रूप से लेखन करते हुए समाज में निरन्तर कोमी एकता और सदभाव का संदेश दे रहे हैं। इन सन्दर्भों में उनकी 2018 में प्रकाशित ‘आराध्य तीर्थ’ पुस्तक एक है जिसमें सभी धर्म के आस्था स्थलों को पूरी श्रद्धा के साथ सम्मान दिया गया हैं। इन्होंने जहाँ भारत के सभी प्रमुख मंदिरों पर लिखा वहीं देश के स्थापत्य पर ‘भारतीय पर्यटन में इस्लामिक आर्किटेक्चर’ पुस्तक को साकार किया। इनकी स्वयं की और संयुक्त लेखक के साथ लिखी दो दर्जन से अधिक पुस्तकों में सभी धर्मो की सामाजिक व्यवस्था, रीति-रिवाज और संस्कृति के दर्शन होते हैं। इनमें इनकी स्वयं की प्रमुख पुस्तकें हैं- जैन मंदिर, रोमांचक साहसिक पर्यटन, पर्यटन और संग्रहालय, मन्दिर संस्कृति, हमारा भारत हमारी शान इत्यादि तथा संयुक्त लेखन में कोटा एक विहंगम दृष्टि (संयुक्त अख्तर खान अकेला), पर्वतीय पर्यटन (संयुक्त प्रो. प्रमोद कुमार सिंघल) ये है हमारी रंग बिरंगी बूंदी (संयुक्त शिखा अग्रवाल), अद्भुत राजस्थान (संयुक्त प्रमोद कुमार सिंघल), भारत में समुद्र तटीय पर्यटन (संयुक्त अनुज कुमार कुच्छल), भारत की विश्व विरासत (संयुक्त अनुज कुमार कुच्छल) इत्यादि तथा सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘वर्ल्ड हेरिटेज ग्लोबल टू लोकल’ (संयुक्त अनुज कुमार कुच्छल, शिखा अग्रवाल) एक चर्चित पुस्तक है।
इस प्रकार से अपने शोधात्मक और रचनात्मक लेखन से आप समाज और देश में सांस्कृतिक एकता और आपसी सदभाव कायम रखने की सार्थक पहल कर रहे हैं।
ऐसे समभाव और विचारशील लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल का जन्म कोटा में 15 अक्टूबर 1953 को हुआ। एम. ए.(इतिहास), पत्रकारिता एवं जन संचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा में शैक्षिक योग्यताधारी प्रभात जी ने ‘राजपुताने में पुलिस प्रशासन (1857-1947)’ में पी.एचडी. की है। सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग, राजस्थान में 20 फरवरी 1979 को सहायक जन सम्पर्क अधिकारी पद पर नियुक्त सिंघल साहब संयुक्त निदेशक (जनसम्पर्क) के पद से 31 अक्टूबर 2013 की सेवा निवृत्त हुए। तथापि निरन्तर लेखन से समाज की एकता और सांस्कृतिक समन्वय को बनाए रखने की दिशा में प्रयासरत हैं।
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विजय जोशी
174- बी, आरकेपुरम, सेक्टर बी,
कोटा-324010 (राजस्थान)