भारत के 53वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के भारतीय पैनोरमा खंड में दिखाई जा रही फिल्म अरियप्पु के निर्देशक महेश नारायणन ने कहा कि ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और पारंपरिक सिनेमा थिएटर सह-अस्तित्व में बने रहने वाले हैं। वह फिल्म महोत्सव के दौरान पीआईबी द्वारा आयोजित इफ्फी टेबल टॉक्स में मीडिया और महोत्सव में शामिल प्रतिनिधियों से बात कर रहे थे।
टेबल टॉक्स के विषय पर और अधिक प्रकाश डालते हुए, महेश नारायणन ने कहा कि पहले के समय में स्वतंत्र फिल्म-निर्माताओं के पास अपनी फिल्मों को प्रसारित करने के लिए दूरदर्शन के अलावा कोई और दूसरा विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा, “लेकिन अब ऐसे कई मंच उपलब्ध हैं, जो स्वतंत्र फिल्म-निर्माताओं का समर्थन करते हैं। कुछ मंचों के माध्यम से एक फिल्म निर्माता किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाए रह सकता है। लेकिन हर प्लेटफॉर्म हर फिल्म को स्वीकार नहीं करेगा। यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उनके पास किस तरह के अभिनेता हैं और वित्तपोषण एवं बजट के मामले में उन्हें किस तरह की संभावना हासिल है।”
निर्देशक ने कहा कि लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सिनेमा को सामूहिक रूप से देखना समाप्त हो जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि फिल्म महोत्सव की सुंदरता सामूहिक रूप से देखे जाने में है। उन्होंने कहा, “मेरे लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म बनाना बहुत मुश्किल है। सिनेमाघरों में, लोग एक विशिष्ट फिल्म देखने हेतु स्क्रीन के सामने बैठने के लिए एक निश्चित समय खर्च करते हैं। लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म में, लोगों के पास स्किप करने, फॉरवर्ड करने, रिवाइंड करने या जो वे देख रहे हैं उसे बदलने के लिए कई विकल्प होते हैं। फिल्म निर्माताओं के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए फिल्में बनाना चुनौतीपूर्ण है।”
फिल्म अरियप्पु के बारे में बताते हुए, महेश नारायणन ने कहा कि यह श्रमिक वर्ग और उनकी समस्याओं के बारे में एक प्रवासी की कहानी है। उन्होंने कहा, “यह फिल्म इस बारे में भी बताती है कि महामारी ने कारखानों में काम करने वाले कुशल मजदूरों के साथ कैसा व्यवहार किया और उनके जीवन में होने वाली नाजुक समस्याओं के साथ परिस्थितियां कैसे बदलती हैं।” यह फिल्म हमारे समय के सामाजिक रूप से प्रासंगिक एक विषय- आधुनिक तकनीक द्वारा पारस्परिक संबंधों की मध्यस्थता- से संबंधित है। यह स्त्री-पुरूष संबंधों के जटिल विषय से भी जुड़ी एक शक्तिशाली फिल्म है।
इस फिल्म को दिल्ली में कोविड महामारी के दूसरे चरण के दौरान कई कठिनाइयों से जूझते हुए एक सीमित दल के साथ शूट किया गया था। इस फिल्म के अखिल भारतीय स्वरूप की ओर इशारा करते हुए, महेश नारायणन ने कहा कि भले ही इसकी कहानी केरल के एक प्रवासी जोड़े से संबंधित है, लेकिन सभी पात्र मलयालम, हिंदी और तमिल जैसी कई भाषाएं बोलते हैं।
इस फिल्म के प्रोड्यूसर शेबिन बैकर, एक्ट्रेस दिव्यप्रभा पीजी और सिनेमैटोग्राफर शानू जॉन वर्गीस ने भी बातचीत में हिस्सा लिया।
सारांश
‘अरियप्पु’, दिल्ली के निकट स्थित मेडिकल दस्ताने के एक कारखाने में काम करने वाले केरल के एक अप्रवासी जोड़े हरीश और रेशमी की कहानी है। वे बेहतर जीवन के लिए विदेश जाने की इच्छा रखते हैं। कोविड महामारी लॉकडाउन के दौरान जब फ़ैक्ट्री के कर्मचारियों के बीच एक छेड़छाड़ किया हुआ वीडियो सामने आता है, तो यह एक भानुमती का पिटारा खोल देता है जोकि इस जोड़े की नौकरी और शादी के लिए ख़तरा बन जाता है।
निर्देशक और निर्माता के बारे में
केरल से संबंध रखने वाले महेश नारायणन एक फिल्म संपादक, लेखक, निर्देशक, छायाकार और निर्माता हैं। उनकी फिल्में लोकार्नो, मॉस्को, रॉटरडैम, गोवा और शंघाई फिल्म महोत्सव में दिखाई जा चुकी हैं। शेबिन बैकर एक पुरस्कार प्राप्त भारतीय फिल्म निर्माता है, जिनकी मलयालम में टेक ऑफ, चार्ली, अरियप्पु और बॉक्स-ऑफिस पर कमाई करने वाली थन्नरमाथन दिनंगल और सुपर सरन्या जैसी एक दर्जन से अधिक फिल्में हैं।