कविताएं और गीत जो व्यापकता लिए हैं, किसान की पीड़ा कहते हैं, मातृभूमि और देश भक्ति के लिए उद्वेलित करते हैं, धार्मिक उन्मादों और जातीय संकीर्णता से ऊपर हैं, जनजागरण के संदेशों से ओतप्रोत हैं, हृदय को स्पर्श करती श्रृंगार, प्रेम और विरह की कोमल भावनाएं हैं, नैतिकता की बातें करती हैं और समसामयिक विषयों से जुड़े हैं, ऐसे गीतकार है हाड़ोती के बद्री लाल दिव्य। हिन्दी और राजस्थानी भाषा के बहुआयामी कवि व गीतकार बद्री लाल दिव्य का साहित्य विविधताओं से सजा किसी खूबसूरत गुलदस्ते के कम नहीं है। जिस प्रकार गुलदस्ते में विभिन्न प्रकार और रंगों के फूल और उनकी खुशबू होती है वैसे ही इनके साहित्य का गुलदस्ता भी विविध विषयों के फूल, रंग और खुशबू गीतों और कविताओं में महकता है। साहित्यकार और समीक्षक इस महक को अपने – अपने नज़रिए से महसूस करते हैं।
इन्होंने हिन्दी व राजस्थानी कविताओं के माध्यम से देश में एक विशेष पहचान बना कर हाड़ोती का नाम रोशन किया है। नया साल हर बार आता है, देखिए कवि क्या कहता है …….
जा नही रहा ,आलोकित हूँ,
और रहूंगा,सदा के लिए।
सो कर तुम जगते हो,अपनी तारीख बदलए
अपना साल बदलते हो, मेरी ओट में।
चंद पंक्तियों में साल परिवर्तन को लेकर कितनी गहराई छुपी है देखते ही बनती है
इनकी पहली रचना भी दृष्टव्य है जिसमें किसान की पीड़ा को लेकर इन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की………
” यो पसीनो बहातो चाल्यौ भारत रो करसाण,भारत रौ करसाण रै यौ निरधण रो भगवान।”
कविताओं में देशभक्ति की भावनाओं को का भारत के संविधान को आधार बना कर क्या खूब कहा है इन्होंने……..
“मत उड़ाओ धज्जियाँ संविधान की,
उसमें रूह बसी है इंसान की।”
कवि दिव्य की कविताओं में न केवल देश भक्ति की भावनाऐं है अपितु उनकी संवेदनाओं में माँ का हाहाकार करता जीवन भी है और मातृभूमि के लिए उत्सर्ग के साथ-साथ सामाजिक परिवेश के प्रति गहरी चिन्ता भी है। वे कहते हैं ………….
” आज के कर्णधार/सपूत है या कपूत/यदि हाँ सपूत है तो/संभालो अपनी मातृभूमि को/फैलाओ दिव्य-दृष्टि ।”
धार्मिक उन्मादों और जातिगत संकीर्णताओं से ऊपर हिन्दुस्तान कविता का व्यापक परिवेश भी देखिए…………
“जिस मुल्क में रहते सिक्ख ईसाई/
हिन्दु और मुसलमान है।/उसी का नाम हिन्दुस्तान है।”
एक अच्छे राष्ट्र के विकास के भावों का एहसास कराती कविता में कवि का आह्वान गौरतलब है………….
“नव सृष्टि का निर्माण करो/दुष्टों के तुम प्राण हरो/भय,भूख,भ्रष्टाचार मिटाओ/राग,द्वेष,ईष्या, दूर भगाओ।”
** समाज में होने वाले अंधरूनी हमलों के लिए भी देश की रखवाली करने वालों से जागरुक रहने की बात करते हैं… चिड़कल्याँ चुगगी सारो खेत रूखाळा जाग तो सरी।”
ऐसे ही संदेश परक और भावपूर्ण काव्य रचनाओं से समाज का मनोरंजन करने वाले हिंदी और राजस्थानी भाषा के लोकप्रिय रचनाकार पिछले तीस सालों से कवि सम्मेलनों में अपने गीतों से सभी का मन मोह रहे हैं।
कृतियां : *म्हारा हिवड़ा रा मोती* (राजस्थानी काव्य-संग्रह) राज,भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के आर्थिक सहयोग से, *शहीद की माँ से पूछना” कविता संग्रह,,राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से और *मेरी उड़ान* (कविता-संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। *नरक और स्वर्ग* कविता-संग्रह, *घरती री सौरम* (राजस्थानी गीत), *कड़कोल्या* राजस्थानी व्यंग्य और *मन अमृत कर लेय* (दोहा संग्रह ) प्रकाधनाधीन हैं। आप की रचनाएं देश की कई प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी केंद्र से भी कई बार कवियों काप्रसारण किया जा चुका है तथा स्थानीय चैनल पर साक्षात्कार व कविता पाठ भी कर चुके है।
सम्मान : आपको समय – समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा काव्य श्री सम्मान, राष्ट्र भाषा रत्न,शिक्षाविद् की मानद उपाधि, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान, हिरदे कवि रत्न सम्मान, साहित्य शिरोमणि सम्मान, मेहर श्री सम्मान, भारत गौरव सम्मान, राष्ट्र गौरव सम्मान, कर्मयोगी साहित्य-गौरव सम्मान आदि पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा गया है।
परिचय : सहज,सरल व्यक्तित्व के धनी कवि बद्री लाल दिव्य का जन्म ग्राम राजपुरा में जिला कोटा में एक निर्धन परिवार में 9 दिसम्बर1959 में स्व0श्री धन्ना लाल मेहरा के परिवार में हुआ। आपने वाणिज्य और हिंदी विषयों में स्नातकोत्तर, बी.,एड. की शिक्षा प्राप्त की और दीक्षा विभाग से सेवा निवृत अधिकारी हैं। आप अपने पिता की स्मृति में हर साल दो साहित्यकारों को “चम्बल साहित्य श्री सम्मान “से सम्मानित करते हैं। आप चम्बल साहित्य संगम कोटा के अध्यक्ष भी हैं।
चलते – चलते हाड़ोती के लोकप्रिय गीतकार के एक प्रसिद्ध राजस्थानी श्रृंगार गीत की बानगी भी देखिए …
कुम कुम सूँ कागज पै लिखद्यूँ, गौरी थारौ नांव।गौरी थारो गांव री,यौ गौरी थारौ गांव।।
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